बिहार पेयजल संकटः गर्मी बढ़ते ही सूखने लगे हलक?, पटना, गया, भोजपुर, नवादा और नालंदा में भूजल स्तर से...

By एस पी सिन्हा | Updated: April 9, 2025 15:39 IST2025-04-09T15:38:14+5:302025-04-09T15:39:04+5:30

Bihar drinking water crisis: नदी से ताल-तलैया व आहर-पोखर तक में पानी कम होने लगा है। सोन तटीय क्षेत्रों में पेयजल संकट होने लगा है, क्योंकि सोन नदी भी सूखने लगी है।

Bihar drinking water crisis heat increases throats drying up Ground water level falling in Patna, Gaya, Bhojpur, Nawada and Nalanda | बिहार पेयजल संकटः गर्मी बढ़ते ही सूखने लगे हलक?, पटना, गया, भोजपुर, नवादा और नालंदा में भूजल स्तर से...

सांकेतिक फोटो

Highlightsचापाकल से पानी निकलना बंद हो गया है।दो माह में भूजल स्तर छह इंच तक गिरा है।कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

पटनाः बिहार गर्मी बढ़ते ही लोगों के हलक सूखने लगे हैं। पेयजल का संकट लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हाल यह है कि अप्रैल माह में ही कई जिलों में भूजल स्तर चिंताजनक स्तर तक गिर गया है। इसका असर खेती, फल उत्पादन और ग्रामीण जीवन पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित पटना, गया, भोजपुर, नवादा और नालंदा जिले के ग्रामीण इलाके हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पटना के ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का स्तर 32 से 39 फुट पर पहुंच गया है। वहीं, गया के इमामगंज, डुमरिया और बांकेबाजार के कुछ गांवों में जलस्तर 80 फ़ुट के आसपास है।

अधिकतर चापाकल से पानी निकलना बंद हो गया है। पानी की किल्लत से आम जनों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। जबकि भोजपुर जिले में भी करीब दो माह में भूजल स्तर छह इंच तक गिरा है। नदी से ताल-तलैया व आहर-पोखर तक में पानी कम होने लगा है। सोन तटीय क्षेत्रों में पेयजल संकट होने लगा है, क्योंकि सोन नदी भी सूखने लगी है।

जहानाबाद की 4 पंचायतों में जलस्तर चेतावनी स्तर से भी नीचे है। सीवान में स्थिति सामान्य है। बक्सर शहर के कई मोहल्लों में चापाकल से पानी गिरना बंद हो गया है। नालंदा के परवलपुर, बेन, इस्लामपुर और एकंगरसराय प्रखंडों की करीब 38 पंचायतें पानी के मामले में डेंजर जोन में हैं। इन पंचायतों में 50 फुट या उससे भी नीचे भू-जलस्तर है।

वहीं, कैमूर के पहाड़ी क्षेत्रों में पांच से दस फुट तथा मैदानी भाग में एक से दो फुट भूजल स्तर नीचे चला गया है। बताया जा रहा है कि गर्मी और पानी की कमी का सबसे गहरा असर आम और लीची की फसल पड़ा है। पानी की कमी की वजह से टिकोले (कच्चे आम) गिरने लगे हैं। इस वजह से उत्पादन में 40 फीसदी तक गिरावट की आशंका जताई जा रही है।

लीची के मंजर (फूल) सूख कर झड़ने लगे हैं। उत्पादन का चक्र पूरी तरह से प्रभावित। किसानों का कहना है कि यदि बारिश या सिंचाई की कोई वैकल्पिक व्यवस्था जल्द नहीं हुई, तो इस साल का फलों का सीजन पूरी तरह बर्बाद हो सकता है।

हालांकि स्थानीय प्रशासन ने जल संकट को लेकर कई जगह टैंकर से जलापूर्ति शुरू की है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के लिए रोजाना लंबी लाइनें लग रही हैं। महिलाएं और बच्चे कई किलोमीटर दूर जाकर पानी भरने को मजबूर हैं। स्कूलों और सामुदायिक भवनों में पानी की उपलब्धता संकट में है।

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