अजीम प्रेमजी: दानवीरता में कर्ण को मात देने वाला धनकुबेर, अब तक दान किए 21 अरब डॉलर

By भाषा | Updated: June 9, 2019 15:45 IST2019-06-09T15:45:49+5:302019-06-09T15:45:49+5:30

1966 में अजीम स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, जब अचानक उनके पिता का निधन हो गया और उन्हें अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापिस लौट आना पड़ा। 21 बरस के अजीम पर अपने परिवार के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी आन पड़ी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और साबुन, जूते, बल्ब और हाइड्रोलिक सिलेंडर जैसे उपभोक्ता उत्पाद बनाने शुरू किए।

Azim Premji about life and interesting facts donate $21To His Charitable wipro founder | अजीम प्रेमजी: दानवीरता में कर्ण को मात देने वाला धनकुबेर, अब तक दान किए 21 अरब डॉलर

अजीम प्रेमजी: दानवीरता में कर्ण को मात देने वाला धनकुबेर, अब तक दान किए 21 अरब डॉलर

कहते हैं धन की हवस कभी खत्म नहीं होती, इनसान जितना कमाता है उससे ज्यादा कमाने की उधेड़बुन में लगा रहता है। किसी से उसकी गाढ़ी कमाई के सौ रूपए भी दान देने को कहा जाए तो वह देने से पहले सौ बार सोचता है, लेकिन दानवीरता में महाभारत काल के कर्ण को भी मात देने वाले अजीम प्रेमजी अपने गाढ़े पसीने की कमाई से अब तक एक लाख 45 हजार करोड़ रूपए की राशि दान कर चुके हैं।

देश के उद्योग जगत के लिए एक प्रेरणा और एक मिसाल कायम करने वाले अजीम प्रेमजी 21वीं शताब्दी के शुरू में दुनिया के सबसे धनवान व्यक्तियों में शामिल थे। उन्होंने साबुन से शुरूआत करके साफ्टवेयर में अपनी बादशाहत कायम की और इतना धन कमाया कि गिनने में कई पीढ़ियां लग जाएं।

जानिए कौन है अजीम हाशम प्रेमजी

24 जुलाई 1945 में बम्बई 'अब मुंबई' में जन्मे अजीम हाशम प्रेमजी के पिता मोहम्मद हाशम प्रेमजी एक जाने माने व्यापारी थे और देश के व्यापारियों में उनका अच्छा नाम था। अजीम के जन्म के समय उनके पिता ने वेस्टर्न इंडियन वेजीटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड की स्थापना की। वह उस समय बहुलता से इस्तेमाल होने वाले वनस्पति का उत्पादन करते थे। अजीम के जन्म के दो बरस बाद ही देश का बंटवारा हो गया। कहते हैं कि अजीम के शिया मुस्लिम परिवार को जिन्ना ने पाकिस्तान चलने को कहा, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का निर्णय किया।

1966 में अजीम स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, जब अचानक उनके पिता का निधन हो गया और उन्हें अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापिस लौट आना पड़ा। 21 बरस के अजीम पर अपने परिवार के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी आन पड़ी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और साबुन, जूते, बल्ब और हाइड्रोलिक सिलेंडर जैसे उपभोक्ता उत्पाद बनाने शुरू किए। प्रेमजी ने 1977 ने कंपनी को नया नाम दिया विप्रो और नये नामकरण के दो बरस बाद ही कंपनी को पंख लगने लगे।

दरअसल 1979 में भारत सरकार ने आईबीएम से देश छोड़कर जाने को कहा और अजीम प्रेमजी को कंप्यूटर व्यवसाय में हाथ आजमाने का मौका मिल गया। उनका यह नया कदम बेहद सफल साबित हुआ और देखते ही देखते विप्रो ने कंप्यूटर के विश्व बाजार में अपना एक खास मुकाम बना लिया। 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में तो अजीम प्रेमजी दुनिया के सबसे अमीर कारोबारियों की कतार में शुमार हो गए। उन्होंने 21वीं शताब्दी में भी अपना यह रूतबा बनाए रखा। इतने विशाल कारोबार और अरबो खरबों डॉलर के मालिक होने के बावजूद अजीम प्रेमजी को उनकी सादगी और परोपकार की भावना के लिए जाना जाता है।

2001 में उन्होंने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की, जो देश के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक शिक्षा का स्तर सुधारने की दिशा में काम कर रहा है। इसी वर्ष प्रेमजी ने अपनी कंपनी की 34 परसेंट हिस्सेदारी परोपकार के लिए दान कर दी, जिसका मूल्य 52,750 करोड़ रुपए है। उनके द्वारा इससे पहले दान की गई राशि को भी जोड़ लिया जाए तो उनके परोपकार के कामों के लिए दान की गई कुल रकम 1,45,000 करोड़ रुपये (21 अरब डॉलर) हो गई है, जो विप्रो लिमिटेड के कुल आर्थिक स्वामित्व का 67 फीसदी है।

बिल गेट्स और वॉरेन बफेट की ओर से शुरू की गई पहल 'द गिविंग प्लेज' पर हस्ताक्षर करने वाले अजीम प्रेमजी पहले भारतीय थे। वह भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के सबसे बड़े दानवीर हैं। हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति अर्जित करने वाले धनकुबेरों की भीड़ में अजीम प्रेमजी सबसे अलग नजर आते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी कमाई में से दान का हिस्सा कभी कम नहीं होने दिया। 

Web Title: Azim Premji about life and interesting facts donate $21To His Charitable wipro founder

कारोबार से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे