Thackeray Movie Review: बाल ठाकरे के अंदाज को दिखाने में चूक गई नवाजउद्दीन सिद्दकी की 'ठाकरे', उम्मीद से रह गई कहीं पीछे
By मेघना वर्मा | Updated: January 25, 2019 15:10 IST2019-01-25T15:10:26+5:302019-01-25T15:10:26+5:30
Thackeray Movie Review in hindi: पूरी फिल्म का ज्यादा पार्ट ब्लैक एंड व्हाइट में दिखाया गया है। वहीं फिल्म में दिखाए गये दंगे और पत्थरबाजी आपको अधूरे से दिखाई देंगे। वहीं बाल ठाकरे की वो चमक और रूतबा दिखाने में भी डायरेक्टर कहीं चूक गए।

Thackeray Movie Review: बाल ठाकरे के अंदाज को दिखाने में चूक गई नवाजउद्दीन सिद्दकी की 'ठाकरे', उम्मीद से रह गई कहीं पीछे
फिल्म- ठाकरे
एक्टर - नवाउद्दीन सिद्दकी, अमृता राव
डायरेक्टर - अभिजीत पानसे
स्टार - 2.5/5.0
'अगर देश की सेवा करना अपराध है तो हां मैं अपराधी हूं', कटघरे में खड़े नवाजउद्दीन सिद्दकी जब इस अंदाज में बात कहते हैं तो सिर्फ पर्दे के अंदर की जनता ही नहीं बल्कि थिएटर की जनता भी तालियां पीटना शुरू कर देती है। महाराष्ट्र में रहने वाले मराठियों को उनका हक दिलाने और महाराष्ट्र की राजनीति बदलने वाले बाला साहब ठाकरे पर बनी फिल्म ठाकरे, बड़े पर्दे पर आज रिलीज हो गई है। शिव सेना के मुखिया यानी बाल ठाकरे का किरदार बॉलीवुड के 'शेर' यानी "नवाजउद्दीन सिद्दकी" ने निभाया है। फर्स्ट डे फर्स्ट शो, कैसी रही फिल्म आइए हम बताते हैं आपको।
बाल ठाकरे की जिंदगी पर है कहानी
मराठा समुदाय के लिए काम करने वाले और अपनी अंगुली के एक इशारे से देश की वित्तीय राजधानी की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल ठाकरे की जिंदगी और उनके राजनितीक सफर को बयां करती है फिल्म ठाकरे। ‘महाराष्ट्र मराठियों का है,’ के नारे के साथ कैसे बाल ठाकरे मराठी समुदाय के हीरो बन गए इसी कहानी को दिखाती है फिल्म। राम मंदिर का मसला हो या इमरजेंसी का समय फिल्म में मराठी इतिहास को बाल ठाकरे के नजरिए से दिखाने की कोशिश की गई है।
फिल्म की शुरूआत ही है कमजोर
ठाकरे फिल्म के शुरूआत बाल ठाकरे के कोर्ट रूम से दिखाई गई है। बाल ठाकरे की जिंदगी और महाराष्ट्र में उनकी पकड़ को दिखाने वाली ये कहानी शुरूआत से ही आपको कनेक्ट नहीं कर पाती। लगभग दो घंटे की फिल्म में बाल ठाकरे जैसी हस्ती की जिंदगी को फिल्मना मुश्किल है। शायद इसीलिए ठाकरे के जवानी के दिन इतनी स्पीड में बीत जाते हैं कि आपको कुछ समझ ही नहीं आता। जब तक आप फिल्म में ठहराव पाएंगें तब तक बाल ठाकरे महाराष्ट्र के बेटे बन चुके होंगे।
डायरेक्शन है कमजोर
1960 से 70 के दशक का वो दौर जब पूरा महाराष्ट्र बाल ठाकरे की जुबां समझता था, डायरेक्टर अभिजीत पानसे उसे पर्दे पर दिखाने में चूक गए। फिल्म की शुरूआत में चल रहे कार्टून से मराठी लोगों का दर्द समझ तो आया मगर दिल को भाया नहीं। पूरी फिल्म का ज्यादा पार्ट ब्लैक एंड व्हाइट में दिखाया गया है। वहीं फिल्म में दिखाए गये दंगे और पत्थरबाजी आपको अधूरे से दिखाई देंगे। वहीं बाल ठाकरे की वो चमक और रूतबा दिखाने में भी डायरेक्टर कहीं चूक गए।
फ्लैशबैक में है पूरी कहानी
ठाकरे फिल्म की कहानी ज्यादातर फ्लैशबैक में है। जिसमें कटघरे में खड़े नवाजउद्दीन यानी बाल ठाकरे पर राम मंदिर तोड़वाने का आरोप लगता है। कोर्ट रूम से ही कहानी शुरू होती है महाराष्ट्र के शेर, बाला साहेब ठाकरे की। कब क्या हुआ और बाल ठाकरे कैसे बाला साहेब ठाकरे बने इस सफर को दिखाया गया है।
नवाज की एक्टिंग भी नवाब है
फिल्म में नवाज की एक्टिंग जान डालती है। उनका मेकअप उनका लुक और उनका अंदाज तीनों ही ठाकरे के अंदाज से मिलता है। पहला सीन जब बाल ठाकरे कटघरे में अपना हाथ रखते हैं या जब मराठा भवन में पत्थरबाजी होने के बाद ठाकरे उसका मुआयना करते हैं इन सभी सीन्स का बैकग्राउंड म्यूजिक कमाल का है। म्यूजिक ही है जो आपको कुछ सीन्स पर तालियां बजाने पर मजबूर करेगी। वहीं अमृता राव की एक्टिंग भी ठीक-ठाक ही है।
ये हैं कुछ जानडालने वाले डायलॉग्स
1. फिल्म के कुछ डायलॉग्स दिल छू जाने वाले हैं जैसे
2. लोग अपनी नौकरी से प्यार करते हैं अपने काम से नहीं।
3. आदमी की ताकत उनके छाती के इंच के नाप से नहीं लगती।
4. बजा पुंगी, हटा लुंगी
5. इस देश में अलग-अलग धर्म का अलग-अलग लोकतंत्र है।
6. जब बाल ठाकरे मुंबई चलाता है तो दिल्ली भी जल कर लाल हो जाती है।
7. देश की पुलिस को छोड़ दिया जाए तो आधे घंटे भी नहीं लगेंगे दंगों की राजनीति खत्म करने में।
8. जिस रंग की गोली मुझे छू कर गुजरेगी वो रंग देश से मिट जाएगा।
ट्रेलर से उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा
इस प्वाइंट पर ध्यान देना बहुत जरूर है क्योंकि ठाकरे का ट्रेलर देखकर लोग इस फिल्म की ओर खिंच रहे हैं मगर वो गलत हैं। ट्रेलर को देखकर फिल्म से जो उम्मीद की जा रही थी वो कहीं खरी नहीं उतरती। उल्टा फिल्म आपको निराश जरूर कर जाएगी।


