स्वरा भास्कर मामलाः पहली अवमानना तो अदालत के फैसले पर सवाल पूछने वाला ही करता है?
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: August 24, 2020 05:58 IST2020-08-24T05:58:41+5:302020-08-24T05:58:41+5:30
स्वरा भास्कर ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संबंध में कथित तौर पर अपमानजनक बयान दिए थे, जिसके बाद उन पर अवमानना की कार्यवाही करने की मांग की गई थी.

अटॉर्नी जनरल के इनकार करने के बाद याचिकाकर्ता उषा शेट्टी ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से सहमति मांगी है.
अदालत की अवमानना को लेकर दो चर्चित मामले हैं- एक वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का, जिसका नतीजा सोमवार को सामने आएगा, तो दूसरा मामला स्वरा भास्कर का है जिसमें बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर के खिलाफ अवमानना का मामला चलाने की सहमति देने से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इनकार कर दिया है.
स्वरा भास्कर ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संबंध में कथित तौर पर अपमानजनक बयान दिए थे, जिसके बाद उन पर अवमानना की कार्यवाही करने की मांग की गई थी. खबर है कि अटॉर्नी जनरल के इनकार करने के बाद याचिकाकर्ता उषा शेट्टी ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से सहमति मांगी है.
उल्लेखनीय है कि कोर्ट की अवमानना के कानून के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल या फिर सॉलिसीटर जनरल की सहमति आवश्यक है.दरअसल, अदालत के किसी भी फैसले के खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी कोर्ट की मानहानि है, लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि किसी भी फैसले पर प्रतिक्रिया मांगी ही क्यों जाती है.
इन दिनों टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट में अदालतों के विभिन्न निर्णयों पर भी चर्चा की जाती है, इस दौरान उकसाने वाले सवाल भी पूछे जाते हैं, इन सवाल-जवाब में अक्सर अदालतों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष अवमानना होती है. कोर्ट को इस ओर ध्यान देना चाहिए. यही नहीं, सोशल मीडिया पर तो कोर्ट को लेकर कई अमर्यादित टिप्पणियां की जाती रही हैं, इस पर नियंत्रण कौन करेगा?