Hichki Movie Review: सिर्फ टॉरेट सिंड्रोम के बारे में ही नहीं और भी बहुत कुछ सिखाती है रानी मुखर्जी की ये फिल्म
By भारती द्विवेदी | Published: March 23, 2018 01:55 PM2018-03-23T13:55:17+5:302018-03-23T13:55:17+5:30
Hichki Movie Review: फिल्म हिचकी साल 2008 में आई हॉलीवुड फिल्म 'फ्रंट ऑफ द क्लास' पर आधारित है।
फिल्म का नाम: हिचकी
डायरेक्टर: सिद्धार्थ पी मल्होत्रा
स्टार कास्ट: रानी मुखर्जी, हर्ष मायर, सुप्रिया पाठक, सचिन पिलगांवकर, कुणाल शिंदे
समय: 1 घंटा, 58 मिनट
रेटिंग: 3/5
हिचकी के साथ रानी मुखर्जी ने चार साल बाद पर्दे पर वापसी की है। और कह सकते हैं कि अच्छी वापसी की है। 118 मिनट की इस फिल्म का प्रमुख चेहरा रानी मुखर्जी और फोकस उनकी हिचकी (टॉरेट सिंड्रोम) के ऊपर है। लेकिन फिल्म का हर किरदार कहानी के साथ जुड़ता चला जाता है। हर किरदार अपने रोल के साथ के साथ न्याय करता है। ये फिल्म हम टॉरेट सिंड्रोम (स्पीच डिसऑर्डर) के बारे में अवेयर करती है कि ऐसी भी कोई बीमारी होती है। फिल्म का उद्देश्य ये है कि अपनी कमियों को अपनी मजबूती बनाओ।
फिल्म की कहानी
नैना माथुर (रानी मुखर्जी) जिसे टॉरेट सिंड्रोम नाम की बीमारी है। टॉरेट सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसकी वजह से नैना को बार-बार कहीं भी, कभी हिचकी आनी शुरू हो जाती है। खासकर के वो स्ट्रेस, इमोशनल या खुश हो तो ये हिचकी और बढ़ जाती है। इस बीमारी की वजह से नैना को 12 स्कूलों से स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट देकर निकाल दिया जाता है। नैना को लगता है कि वो नॉर्मल है, उसकी मां (सुप्रिया पाठक) और भाई को लगता है कि वो नॉर्मल है लेकिन दुनिया और नैना के पापा (सचिन पिलगांवकर) के लिए वो नॉर्मल नहीं था। नैना एक आम बच्चे की तरह ही चाहती है कि उसके क्लास के बच्चे, टीचर, उसके पापा या पूरी दुनिया नॉर्मल समझ लेकिन ऐसा होता नहीं है।
अपनी प्रॉब्लम से जूझती नैना बाथरूम में खुद को बंद कर के रोती है, चिल्लाती है, अपनी हिचकी को रोकने के लिए टॉयलेट पेपर मुंह में ठूंसती है (ये सीन आपको कहीं ना कहीं कनेक्ट करेंगे) कोई तो उसकी दिक्कत को समझे।
नैना की लाइफ बदलती हैं उसके स्कूल के प्रिंसिपल की वजह से जो छोटी नैना से प्रॉमिस करते हैं कि उसे स्कूल में आम बच्चों की तरह ही ट्रीट किया जाएगा।
नैना बड़ी होती है। टीचर बनना चाहती है लेकिन टॉरेट सिंड्रोम की वजह से 18 स्कूलों ने नैना के एप्लीकेशन को रिजेक्ट कर दिया है। जिसे स्कूल से वो पढ़कर बड़ी हुई है, खुद उसे स्कूल ने उसके एप्लीकेशन को 5 बार रिजेक्ट किया है। जिस स्कूल ने नैना को 5 बार रिजेक्ट किया है, एक दिन वहीं से नैना को जॉब ऑफर मिलता है। नैना को उस स्कूल में 9F क्लास का टीचर बनाया जाता है। एक ऐसा क्लास जहां कोई भी टीचर टिकता नहीं है। नैना उस क्लास की टीचर बनती है फिर शुरू होती उसकी लाइफ की स्ट्रगल। 9F क्लास क्या है, क्यों वहां कोई टीचर टिकता नहीं है। नैना को क्या-क्या झेलना पड़ता है इसके लिए आपको हिचकी देखनी पड़ेगी।
अभिनय
पूरी फिल्म का दरोमदार रानी मुखर्जी के कंधों पर है और वो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाती हैं। जब भी फिल्म की किरदार नैना को टॉरेट सिंड्रोम का अटैक आता है और वो उस पर काबू करने की कोशिश करती है या परेशान होती है तो रानी को देखकर लगता ही नहीं कि वो एक्टिंग कर रही हैं। मां रोल में सुप्रिया पाठक के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं है। पिता के रोल में सचिन पिलगांवकर के ठीक लगे हैं। 9F के 14 छात्रों में सबने अच्छा काम किया है लेकिन आतिश के रोल में हर्ष मायर ने बेहतर काम किया है। आपको बता दें कि हर्ष मायर को आप सबने 'आई एम कलाम' फिल्म में देखा है। हर्ष इस फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड भी जीते चुके हैं।
ये फिल्म क्यों देखें
टॉरेट सिंड्रोम से लड़ती रानी मुखर्जी की एक्टिंग के लिए। साथ ही उस एजुकेशन सिस्टम को समझने के लिए कि कैसे बड़े-बड़े स्कूल आपका वर्गीकरण करते हैं। अगर आप पैसे वाली फैमिली से हैं तो स्कूल के टीचर से लेकर स्टाफ तक आपको अलग ट्रीटमेंट देता है। अगर आपको सोशल इशू में दिलचस्पी हो तो जरूर देखें।
फिल्म क्यों ना देखें
इस फिल्म को ना देखने कि कोई वजह नहीं है। हां अगर आप एक्शन, कॉमेडी या रोमांटिक फिल्म को पसंद करते हैं तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है।