Missing Movie Review: सस्पेंस से भरी है मिसिंग, फिर भी फिल्म में बहुत कुछ है मिस

By ऐश्वर्य अवस्थी | Updated: April 6, 2018 15:57 IST2018-04-06T13:01:23+5:302018-04-06T15:57:23+5:30

फिल्म ‘मिसिंग’ की करी जाए तो यह एक सस्पेंस थ्रिलर है, जिसका ट्रेलर दर्शकों को खूब पसंद आया था लेकिन क्या फिल्म दर्शकों को उतनी ही पसंद आ पायेगी ?

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Missing Movie Review: सस्पेंस से भरी है मिसिंग, फिर भी फिल्म में बहुत कुछ है मिस

19 साल पहले आई सायकोलॉजिकल थ्रिलर 'कौन' ने दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दिए थे। राम गोपाल वर्मा की इस फिल्म में उर्मिला मातोंडकर के साथ मनोज बाजपेयी के अभिनय की शानदार बानगी देखने को मिली थी। रिलीज 'मिसिंग' भी उसी परंपरा का निर्वाह करती नजर आती है। कौन के आधार पर बनी फिल्म मिसिंग इस हफ्ते रिलीज हो गई है। फिल्म ‘मिसिंग’ की करी जाए तो यह एक सस्पेंस थ्रिलर है, जिसका ट्रेलर दर्शकों को खूब पसंद आया था लेकिन क्या फिल्म दर्शकों को उतनी ही पसंद आ पायेगी ? तो आइए जानते है कि फिल्म के पहले भाग में दर्शकों को क्या क्या मसाला देखने को मिलेगा


फिल्म की कहानी

फिल्म बड़े दिलचस्प अंदाज से शुरू होती है, जहां सुशांत दुबे (मनोज बाजपेयी) अपनी पत्नी अपर्णा (तब्बू) और 3 साल की बीमार बच्ची तितली के साथ रात के एक बजे मॉरीशस के एक रिजॉर्ट में चेक इन करता है। जब सुबह दोनों पति-पत्नी की आंख खुलती है, तो उनके पास उनकी बेटी नहीं होती है और उनको पता चलता है कि उनकी बेटी तितली कहीं गायब हो गई है। काफी खोजबीन के बाद वहां के पुलिस अफसर (अन्नू कपूर) को बुलाया जाता है। पुलिस की पड़ताल में इस दंपति के बारे में अजीबो-गरीब बातें सामने आती हैं।

सुशांत पुलिस को बताता है कि तितली का कोई अस्तित्व नहीं है और उसकी पत्नी अपर्णा मानसिक बीमारी की शिकार है। उसी मनोदशा के कारण उसने एक काल्पनिक तितली की कहानी गढ़ ली है। इतना ही नहीं जैसे-जैसे पुलिस की तफ्शीश आगे बढ़ती जाती है, कहानी उलझती जाती है और एक पॉइंट ऐसा आता है जब पुलिस को इस पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर भी शक होने लगता है। क्या वाकई तितली नाम की कोई बच्ची है ही नहीं? अगर है, तो वह कहां गायब हो गई? तमाम बातें देखने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। 

संगीत व डॉयलाग

अगर फिल्म के संगीत की बात की जाए तो बैकग्रांड में कई जगह हम हल्की की म्यूजिक मोहित कर सकती है लेकिन ऐसा कोई भी गाना नहीं है जो आपकी जुबान पर चढ़े। वहीं अपने दमदार बोलने के अंदाज के लिए जाने, जाने वाले मनोज बाजपेयी के वे डॉयलाग भी कहीं मिस से लगे। फिल्म में कोई भी ऐसा डॉयलाग नहीं है याद रखा जाए। 

फिल्म में क्या है खास 

टीवी की दुनिया में धमाल करने वाले निर्देशक मुकुल अभ्यंकर की फिल्म निर्देशक के रूप में पहली फिल्म है। थ्रिलर फिल्म के रूप में उन्होंने अच्छी कोशिश की है, मगर  फिल्म के शुरू होने के कुछ देर बाद ही दर्शक आगे होनेवाले घटनाक्रम के बारे में जान जाता है। प्रेडिक्टिबल होने के बावजूद निर्देशक ने इसे ग्रिपिंग बनाया है, मगर टुकड़ों में।

 ज्यादातर जगहों पर यह फिल्म अपनी पकड़ खो देती है और ऐसा लगता है कि इस सीन की यहां जरुरत ही नहीं थी। फिल्म कई बार आगे होने वाले सीन को पहले से ही पेश कर रही है। स्क्रीनप्ले बहुत कमजोर है। क्लाइमैक्स तक आते-आते आप फिल्म की परिणति जान जाते हैं और रोमांच खो देते हैं। फिल्म में सुदीप चटर्जी का कैमरावर्क कमाल का है। साथ ही तीनों कलाकारों के अभिनय की बात की जाए तो बेहतरीन है। कमजोर कहानी के बाद भी ये तीनों कलाकार  आपको बांधने का काम कर सकते हैं।

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