Hotel Mumbai Review: 26/11 आतंकी हमले में 'ताज' की कहानी, आंखें नम कर देगी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 30, 2019 08:36 AM2019-11-30T08:36:17+5:302019-11-30T08:36:17+5:30
26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आंतकी हमले को बड़े पर्दे पर एक बार फिर से लेकर आए हैं निर्देशक एंथोनी मारस। सीन दर सीन यह फिल्म आपको उस हादसे के करीब ले जाती है और संवेदनाओं से भर देती है।
26 नवंबर 2008 का दिन मुंबई समेत पूरा देश कभी भी भूल नहीं सकता. इस दिन 9 से 10 आतंकवादियों ने मुुंबई में जगह-जगह हमले किए थे. इसी आतंकी हमले पर सबसे पहले राम गोपाल वर्मा ने एक फिल्म बनाई थी. हालांकि उस फिल्म को दर्शकों ने ज्यादा पसंद नहीं किया था. इसके बाद एक डाक्युमेंट्री भी आई थी, जिससे प्रेरणा लेकर निर्देशक एंथनी मारस ने 26/11 के दिल दहलाने वाले हमले को 'होटल मुंबई' के टाइटल के साथ बड़े पर्दे पर उतारा है.
इस फिल्म में निर्देशक ने हर सीन में रोमांच तो भर दिया है, साथ में इसकी बेहद संवेदनशील तरीके से प्रस्तुति भी की है. यह फिल्म मुंबई के प्रसिद्ध होटल ताज पर हुए आतंकवादी हमले को केंद्र में रख कर बनाई गई है. इस होटल में डेविड डंकन (आर्मी हेमर) उनकी पत्नी (नाजनीन बोनिडी), रूसी बिजनेसमैन (जेसन आइजैक) जैसे वीआईपी अतिथियों के स्वागत की जोरदार तैयारियां चल रही हैं. होटल के चीफ शेफ हेमंत ओबेरॉय (अनुपम खेर) अपनी टीम को जरूरी मार्गदर्शन कर रहे हैं.
इसी दौरान पता चलता है कि वेटर अर्जुन (देव पटेल) ने पैर में शूज नहीं पहने हैं. इसलिए उसे घर जाने के लिए कह दिया जाता है. लेकिन अर्जुन यह कहकर मिन्नतें करता है कि उसकी पत्नी गर्भवती है और उसे नौकरी की बड़ी जरूरत है. उसे फिर से टीम का हिस्सा बनाया जाता है. वीआईपी अतिथियों के स्वागत की तैयारियों के बीच उन्हें इस बात की जरा भी भनक नहीं लगती है कि सीएसटी स्टेशन, लियोपोल्ड कैफे जैसी जगह पर आतंकवादी हमला हुआ है. जब यह जानकारी उन तक पहंुचती है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है.
आतंकवादी होटल ताज में घुस कर नरसंहार करना शुरू कर देते हैं. उस दिन अर्जुन और हेमंत ओबेरॉय 'अतिथि देवो भव:' के सही मायने बता देते हैं. दोनों मिल कर अपने होटल के हर अतिथि की जान कैसे बचाते हैं, इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव करने के लिए आपको थिएटर में जाकर फिल्म देखनी होगी. ऑस्ट्रेलियन एंथनी मारस ने 'होटल मुंबई' से निर्देशन के क्षेत्र में पदार्पण किया है. ताज होटल के भीतर हुए इस खूनी संघर्ष को देखते समय कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
इस पूरे घटनाक्रम को केवल दो घंटे में समेटने की चुनौती को डायरेक्टर ने न केवल बड़ी ही खूबी के साथ संभाला, बल्कि वह इस परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण भी हुए हैं. एक ओर रोमांच और थ्रिलर दिखाते समय दूसरी ओर उन्होंने संवेदनशीलता को कहीं भी गंवाया नहीं है और यही इस फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता है. 'होटल मुंबई' देखते समय यह एंथनी मारस की बतौर डायरेक्टर पहली ही फिल्म होने का कहीं भी आभास नहीं होता है. ताज में फंसे लोग, वहां के कर्मचारियों का साहस दिखाते हुए मेहमानों को बचाने के लिए उनके द्वारा की गई भागदौड़ आदि को निर्देशक ने बखूबी पर्दे पर उतारा है. फिल्म शुरू से अंत तक दर्शकों को बांधे रखती है. कई सीन देखते समय आंख से आंसू बहने लगते हैं.
इन तमाम खूबियों का पूरा श्रेय निर्देशक को जाता है. देव पटेल, अनुपम खेर, आर्मी हेमर, जेसन आइजैक, नाजनीन बोनिडी, विपिन शर्मा आदि कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. फिल्म के एक सीन में विदेशी महिला की जान बचाने के लिए देव पटेल अपनी पगड़ी उतारते हैं. यह सीन दिल को छू जाता है. अनुपम खेर ने भी अपने किरदार को बड़े संयम और संवेदनशील तरीके से निभाया है. फिल्म की एडिटिंग, सिनेमैटोग्राफी, डायलॉग आदि सबकुछ दमदार हंै. 26/11 के हमले की याद आ जाए तो उसके जख्म दोबारा हरे हो जाते हैं. आतंकी हमले के चलते लहुलुहान ताज और वहां का दिल दहलाने वाला प्रसंग बड़े पर्दर्े पर देखने के लिए आपको जरूर थिएटर में जाना चाहिए.