विजेता: जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी, यानी 'इच्छाशक्ति की कहानी'
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 18, 2025 18:09 IST2025-09-18T17:39:14+5:302025-09-18T18:09:16+5:30
संकट की घड़ी में भी वह साहस, जज्बा, हिम्मत और हौसले के दम पर निर्णायक जीत हासिल करता है।

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कथा-साहित्य और तुलनात्मक पौराणिक कथाओं में नायक की खोज या नायक की यात्रा, जिसे 'मोनोमिथ' भी कहा जााता है, कहानियों का सामान्य टेम्पलेट है जिसमें एक नायक शामिल होकर एक साहसिक मिशन पर जाता है, जहां अनूठे और आश्चर्यजनक शक्तियों से उसका सामना होता है, लेकिन उस एक संकट की घड़ी में भी वह साहस, जज्बा, हिम्मत और हौसले के दम पर निर्णायक जीत हासिल करता है।
डॉ. राजेश के. अग्रवाल द्वारा आरकेजी मूवीज़ के बैनर तले डॉ. राजेश के. अग्रवाल द्वारा निर्मित और 'माय फ्रेंड गणेशा', 'माय फ्रेंड गणेशा 2','एक्स रेः द इनर इमेज' और 'जलसोः ए फैमिली इन्विटेशन' जैसी फिल्मों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर चुके निर्देशक राजीव एस. रुईया के डायरेक्शन में बनी 19 सितम्बर को थिएटरों में आने वाली 'विजेता : जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी' भी एक ऐसे ही साहस, जज्बाधारी, हिम्मतवाले और हौसलेमंद नायक की कहानी है।
'विजेता' में मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी दिखाई गई है। यह फिल्म चुनौतियों पर विजय पाकर सफलता पाने की एक अविश्वसनीय, लेकिन सच्ची कहानी पर आधारित एक सशक्त सिनेमाई सफर पर ले जाती है और दर्शकों को 'ज़ीरो से हीरो' बनने के लिए प्रेरित करती है।
फिल्म 'विजेता' धैर्य और विजय के मिश्रण से उपजे एक सशक्त संघर्ष की एक सच्ची गाथा की झलक दिखाती है। इसीलिए यह फिल्म अपनी भावनात्मक गहराई और सिनेमाई भव्यता के कारण दर्शकों के बीच पहले से ही विशेष चर्चा पा रही है।
प्रेरणादायक :
कहानी की शुरुआत एक साधारण परिवेश में कड़ी मेहनत करते एक युवक के दृश्यों से होती है और यह शुरुआत ही उसके विनम्र आरंभ का प्रतीक भी साबित होता है। इसके बाद इसकी कहानी विश्वासघात, प्रतिद्वंद्विता और अंडरवर्ल्ड की दुनिया से मिलने वाली धमकियों के बीच तेजी से आगे बढ़ती है, जो नायक के संघर्ष करने के जज्बे की तीव्रता को शिद्दत से दिखाती है।
कहानी का चरम बिंदु उस सीन में नजर आता है, जहां मुख्य पात्र राजेश एक दहाड़ती भीड़ के सामने सीना ठोककर शान से खड़ा है। और, यहां यह कहने में हिचक नहीं कि यही सीन फिल्म की टैगलाइन — 'जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी' को सार्थक करता है। कुल मिलाकर कहें तो चर्चित गीतकार और लेखक संदीप नाथ द्वारा लिखी गई पटकथा इस फिल्म को व्यक्तिगत संघर्षों और जीवन से बड़े टकरावों को परदे पर जीवंत करती है। खास बात यह है कि यह फिल्म निर्माता राजेश के. अग्रवाल के जीवन पर आधारित है।
इस फिल्म के जरिये उन्होंने खुद के कोलकाता के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर वैश्विक कारोबारी नेता बनने तक की कहानी बयां की है। कुल मिलाकर 'विजेता' सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह याद दिलाती है कि धैर्य, नैतिकता और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव इंसान की किस्मत को बदल सकते हैं। फिल्म इसी भावना को उजागर करती है, एक कहानी कैसे संघर्ष से शुरू होकर विजय में बदलती है। इसी वजह से 'विजेता' को इस साल की सबसे प्रेरणादायक फिल्मों में से एक माना जा रहा है।
कहानी :
'विजेता' की कहानी डॉ. राजेश के. अग्रवाल की प्रेरणादायी यात्रा से प्रेरित है। कोलकाता का 17 वर्षीय राजेश, अपने पिता और बड़े भाई के साथ एक मध्यमवर्गीय परिवार में रहता है, जो मौसमी मफलर का व्यवसाय चलाता है। महत्वाकांक्षी और उद्यमी, राजेश बाजार में एक कमी को पहचानता है और बनियान निर्माण का व्यवसाय शुरू करता है, जो उसकी मेहनत और ईमानदारी के दम पर देखते ही देखते सफलता का कीर्तिमान गढ़ने लगता है। उसकी शादी मंजू नामक युवती से होती है, जो बाद में राजेश की एक कर्मठ सहयोगी साथी साबित होती है।
जैसे-जैसे बनियान का कारोबार फल-फूल रहा है, उसी दौरान राजेश कंटेनर सप्लाई का कारोबार भी शुरू कर देता है, जो लाभदायक व्यवसाय साबित होता है। इसी दौरान राजेश और मंजू के चार बच्चे होते हैं, लेकिन जिंदा नहीं बचते हैं। वहीं, राजेश की मां विजयलक्ष्मी का भी कैंसर से निधन हो जाता है। इसके बाद राजेश के जीवन में व्यक्तिगत त्रासदियों का दौर शुरू हो जाता है।
अपनी मां की अंतिम इच्छा के अनुसार राजेश का परिवार मुंबई से एक बच्चे को गोद लेता है, जिससे उनके जीवन में आशा की किरण लौट आती है। उसके बाद राजेश अपने बनियान व्यवसाय का विस्तार करने के लिए मुंबई आ जाता है, और बाद में अपने भाई को भी अपने साथ आने के लिए मना लेता है।
लेकिन, जैसे ही जीवन स्थिरता की ओर कदम बढ़ाता है, परिवार को कानूनी परेशानियों का सामना करने के साथ अंडरवर्ल्ड से जबरन वसूली की धमकियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन, चुनौतियों के बीच, राजेश अपने परिवार की रक्षा और एक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्पित रहता है और अंतत: विजय हासिल करके ही दम लेता है।
अभिनय :
इस फिल्म में राजेश की भूमिका में रवि भाटिया दमदार रोल में हैं। रवि पूरी फिल्म में छाए हुए हैं या यूं कहिए कि पूरी फिल्म उन्हीं के मजबूत कंधों पर टिकी है। उनके किरदार में जीत—हार से लेकर संघर्ष, अवसाद, आशा— निराशा सबका मिश्रण है और सभी रूप मेंं वह बेजोड़ साबित हुए हैं। उनके पिता की भूमिका में दिग्गज अभिनेता ज्ञान प्रकाश ने उनका अच्छा साथ दिया है।
फिल्म में दीक्षा ठाकुर, गोदान कुमार, प्रीटी अग्रवाल जैसे अन्य कलाकार भी शामिल हैं, जो राजेश अग्रवाल के जीवन को आकार देने वाले लोगों और रिश्तों को जीवंत करते हैं। इस फिल्म से मूल रूप से अयोध्या की रहने वाली भारती अवस्थी भी बॉलीवुड में डेब्यू कर रही हैं और अपनी पहली ही फिल्म से अभिनय की अमिट छाप छोड़ी है।
निर्देशन :
फिल्म की पूरी शूटिंग भोपाल में ही हुई है। निर्देशक ने फिल्म के हर एंगल में न केवल अपनी पैनी निगाह रखी है, बल्कि किस कलाकार से क्या और कैसा काम लेना है, यह भी बखूबी कर दिखाया है। फिल्म का छायांकन भी अद्भुत है। बीते हुए समय को दिखाने के लिए सेपिया टोन का इस्तेमाल, संघर्ष के लिए गहरे कंट्रास्ट का उपयोग और विजयोल्लास के लिए भव्य दृश्य का फिल्मांकन कहानी की वास्तविक नाटकीयता में गहरे रंग भरता है।
कुल मिलाकर सामान्य से खास बनने की कहानी कहने वाली फिल्म 'विजेता' युवाओं को बेहद प्रभावित करने वाली है, क्योंकि यह केवल वित्तीय सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि लचीलेपन, नैतिकता और सभी बाधाओं से ऊपर उठने की इच्छाशक्ति की कहानी है। राजेश के. अग्रवाल की यात्रा ऐसी है जिसे दुनिया को देखने की जरूरत है।
विजेता : जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी, यानी 'इच्छाशक्ति की कहानी'
निर्माता : राजेश के. अग्रवाल
निर्देशक : राजीव एस. रुईया
लेखक- संदीप नाथ
कलाकार : रवि भाटिया, भारती अवस्थी, ज्ञान प्रकाश, दीक्षा ठाकुर, गोदान कुमार, प्रिटी अग्रवाल नीरव पटेल
स्टार: ****
