बाहुबली पाकिस्तान में रिलीज होने जा रही है। निर्देशक एसएस राजामौली इससे खुश हैं। उन्होंने अब तक की बाहुबली की विदेश यात्राओं में पाकिस्तान की यात्रा को सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाली बताया है। उन्होंने पाकिस्तान की कराची इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल को बाहुबली को रिलीज करने का मौका देने के लिए धन्यवाद बोला है। ऐसे में सवाल है कि क्या फिल्म पाकिस्तानी दर्शकों को पसंद आएगी? ऐसे में हमने उन कारणों का विश्लेषण किया, जिनकी वजह से भारतीय दर्शकों को फिल्म पसंद आई।
बाहुबली के बाद बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित फिल्में आईं-गईं। पर वैसा प्रभाव देखने को नहीं मिला, जैसा जबकि पिछले साल अप्रैल में 'बाहुबली 2: दी कंक्लूजन' की रिलीज के वक्त दिखा था। बाहुबली ने देश में उत्सव जैसा माहौल बना दिया था। तीन सप्ताह तक जिन सिनेप्रेमियों ने फिल्म नहीं देखी थी, वे हीन भावना के शिकार होने लगे थे। जैसे कोई अपराध किया हो। बाहुबली को लोगों ने जरूरी काम के तौर पर देखा।
फिल्म ने पहले दिन (करीब 100 करोड़), पहले वीकेंड (200 करोड़ पार), हिन्दी में सबसे ज्यादा कमाई (500 करोड़ पार), ओवरसीज में सबसे ज्यादा कमाई (200 करोड़ पार) और फिर लाइफटाइम कमाई (1000 करोड़ पार) के कितने ही रिकॉर्ड तोड़े। बॉक्स ऑफिस इंडिया डॉट कॉम के मुताबिक फिल्म को 10 करोड़ से ज्यादा लोगों ने सिनेमाघर में आकर देखा। फिल्म इतनी बड़ी कैसे बनी? इसके पीछे क्या यहीं कारण थे?
1. कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा
बाहुबलीः दी बिगनिंग मजबूत निर्देशन, दुरुस्त पटकथा और सधे हुए अभिनय के दम पर हिट हो गई थी। लेकिन भाग दो के हिट होने का प्राथमिक कारणों में एक यह सवाल भी था, कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? यह करीब दो सालों तक गूंजता रहा। पर लेखक-निर्देशक और पूरी यूनिट ने न केवल सवाल का सधा हुआ जवाब दिया, बल्कि करीब दो सालों तक इसे छिपाए रखने में कामयाब रहे। यहां तक कि जब दर्शक सिनेमाहॉल से निकले तो उन्होंने दूसरों को नहीं बताया।
"अच्छा तो बाहुबली देख ली? हां। तो बताओ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? इसके लिए तो तुम्हें फिल्म देखनी पड़ेगी।" ऐसी बातचीत आम हो गई। मतलब साफ था कि लेखक-निर्देशक अपने मिशन में कामयाब हो गए। दर्शकों उनकी भाषा बोलने लगे।
2. दोबारा देखने को मजबूर करने वाला अमरेंद्र बाहुबली का किरदार
रिलीज से पहले हुई चर्चाओं ने बाहुबली को शुरुआती दर्शक दिए। लेकिन बाहुबली की सफलता उसके दोबारा देखे जाने और अपने दर्शकों को प्रचारक में तब्दील करना रहा। "बाहुबली देख ली?" यह आपसी बातचीत का जैसे जरूरी हिस्सा हो गया। दर्शक जो ढूंढते गए, कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा, उसका जवाब तो पाए ही साथ ही एक और चीज ले आए, "क्या आदमी था अमरेंद्र बाहुबली"।
फिल्म में दो बाहुबली हैं, अमरेंद्र और महेंद्र। भाग एक में राजामौली ने दोनों को स्थापित कर दिया था। लेकिन भाग दो में उन्होंने अमरेंद्र के किरदार को अधिक महत्व दिया। कई बार संशय होता है कि राजामौली ने न केवल अमरेंद्र के किरदार को उभारा, बल्कि कटप्पा सरीखे किरदारों खुलकर उभरने नहीं दिया। वह चाहते थे अमरेंद्र जन-मानस के पटल पर पूरी जगह पाए।
इसमें अभिनेता प्रभाष ने भी क्या खूब साथ दिया अपने निर्देशक का। बाहुबली भाग आई तो चर्चाएं हुईं कि बाहुबली की भूमिका में हृतिक रोशन होते तो कमाल हो जाता। कुछ इंटरटेमेंट वेबसाइट पर खबरें प्रकाशित हुईं कि राजामौली को बॉलीवुड किरदारों के साथ एक बार बाहुबली और बनानी चाहिए। लेकिन भाग दो के बाद सबने एक सुर में कहा, प्रभाष के अलावा अमरेंद्र का किरदार कोई और कर ही नहीं सकता था।
3. हिन्दी की उम्दा डबिंग से बढ़ा कैनवास
बाहुबली की हिन्दी डबिंग किसी मूल हिन्दी फिल्म सी है। वरना दक्षिण की अच्छी फिल्में लचर डबिंग चलते हिन्दी दर्शकों को ग्राह्य नहीं होतीं। लेकिन बाहुबली की हिन्दी डबिंग आर्टिस्ट्स की आवाज इतनी दमदार है कि कहीं-कहीं मूल आवाजों पर भारी पड़ती है। असल में एसएस राजामौली अपनी फिल्म के लिए पारंपरिक डबिंग आर्टिस्ट चुनने के बजाए मशहूर टीवी एक्टर व बॉलीवुड के कई फिल्मों में काम चुके अभिनेता शरद केलकर को चुना। अन्य किरदारों के लिए भी उन्होंने शानदार चयन किए। इसके लिए उन्होंने बाकयदे वायस टेस्ट लिए थे।
इसका नतीजा ये निकला कि बाहुबली के हिन्दी संस्करण ने 500 करोड़ से ज्यादा का व्यापार किया। कोई हिन्दी फिल्म इससे पहले तक इतनी कमाई हिन्दी दर्शकों से नहीं कर पाई थी। तमिल, तेलगू और हिन्दी तीनों भाषाओं को समान अधिकार रखने वाला कोई शख्स इस फिल्म हिन्दी में देखना चाहेगा। इसकी यही वजह रही कि बाहुबली हिन्दी में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी।
बाहुबली के हिट होने का सबसे बड़ा कारण यही रहा कि इसने भाषाई बैरियर को तोड़ा। वरना कितनी ही दक्षिण की फिल्मों का हूबहू बॉलीवुड कॉपी करता है। वांटेड, सिंघम, गजनी, दृश्यम जैसी मूल फिल्मों के बारे में हिन्दी के लोग नहीं जानते। लेकिन बॉलीवुड में रीमेक हुई यही फिल्में कामयाब हैं। ऐसे में बाहुबली ने इस बाधा को पार किया।
4. बजट का सटीक इस्तेमाल
भारत की सबसे ज्यादा लागत वाली बाहुबली के बजट का एसएस रारामौली ने सटीक इस्तेमाल किया। अब फिल्म बनाने तरीके बदले हैं। प्रचार पर होने वाले खर्च, निर्माण पर होने वालों खर्च को चुनौती देने लगा है। क्योंकि फिल्म कामयाबी अब रिलीज के आसपास छुट्टी हो और फिल्म जबर्दस्त प्रचार किया गया हो, इस पर निर्भर करने लगी है।
लेकिन राजामौली को अपनी फिल्म पर भरोसा था। उन्होंने बजट का बड़ा हिस्सा वीएफएक्स पर खर्च किया। बाहुबली के मुख्य वीएफएक्स सुपरवाइजर वी श्रीनिवास तीन बार नेशनल अवार्ड जीतने शख्स हैं। उन्होंने वीएएफएक्स के लिए 17 कंपनियों से करार किया था। इनमें लॉस एंजिल्स की ताऊ फिल्म्स, चीन की डांसिग डिजिटल, पार्ट 3 और दक्षिण कोरिया की मार्को ग्राफ भी थीं। ये वो कंपनियां हैं जो दुनियाभर के युद्ध आधारित फिल्मों केलिए वीएफएक्स तैयार करती हैं।
5. मैथोलॉजिकल फिल्म के साथ न्याय
भारत में 'रामायण', 'महाभारत' टीवी सीरियल बहुत पसंद किए गए। 'मुगले आजम', 'जोधा-अकबर' जैसी फिल्में भी लोगों ने पसंद की। लेकिन इनके बीच राजा-रानी और उनके साम्राज्य पर अधारित बहुत सी फिल्मों को नकार दिया गया। वजह तकनीकी तौर उस दौर को न दिखा पाना।
शायद इसीलिए राजामौली ने एक काल्पनिक कहानी चुनी। ताकि किसी पहले बनी किसी छवि को स्थापित करने की जिम्मेदारी न रहे। बल्कि खुद से पूरा साम्राज्य बसाना हो। उन्होंने इस बात का बहुत बारीक ध्यान रखा है। कहानी हिन्दू राजा-रानी साम्राज्य के दौर की है। फिल्म का हर हिस्सा बात को स्थापित करता चलता है। महल की बनावट, सोने की मूर्ति स्थापित करना, युद्ध से पहले बलि चढ़ाना, कुल देवता की पूजा, शिवलिंग का जलाभिषेक, राज परिवार के लोगों को देश से निकालना, धनुष-तीर, तलवार, रथ, युद्ध के दृश्य सब मिलकर कहानी को स्थापित करते हैं।
6. सहयोगी कलाकारों का जबर्दस्त अभिनय
बाहुबली का हर कलकार मानो उसी किरदार के लिए बना हो। बाहुबली में मुख्य कलाकार प्रभाष, राना डग्गुबती, अनुष्का शेट्टी और तमन्ना भाटिया के अलावा कटप्पा यानी सत्यराज, शिवगामी देवी यानी राम्या कृष्णन, बिज्जल देव यानी नसीर, कुमार वर्मा यानी शुभराजू , यहां तक सेतुपति यानी राकेश वरू तक अपने किरदारों में एकदम सटीक बैठते हैं।
फिल्में बड़ी बनने में उसके सहयोगी कलाकारों की अहम भूमिका होती है। 'शोले' में एक डायलॉग बोलने वाले मैकमोहन यानी सांभा हो या 'दंगल' की गीता-बतीता का किरदार निभाने वाली चारों अभिनेत्रियां। जब सहयोगी कलाकारों के काम दर्शकों को याद रह जाए तो फिल्म की उम्र बढ़ जाती है।
7. याद रह जाने वाले दृश्यों की बुनावट
बाहुबली में ऐसे दृश्यों की एक शृंखला है, जो दिमाग में रजिस्टर हो जाते हैं। वे फिल्म खत्म होने के बाद भी आंखों के सामने घूमते हैं। बाहुबली का एंट्री शॉट वे एक विशाल गाड़ी लाकर हो रहे बहक रहे हाथी से टकराते हैं। देवसेना को बचाने के लिए एक बार तीन तीर चलाना। देवसेना को तीन तीर चलाने का तरीका बताना। भल्लालदेव के राज्याभिषेक का पूरा दृश्य। सेतुपति के गला काटने का दृश्य। बाहुबली के मरने का दृश्य। बाहुबली की सफलता में इन दृश्यों की महती भूमिका है।