शोले@50: संवाद, पात्र और दृश्य लोकप्रिय, "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" तो सभी...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 14, 2025 05:59 IST2025-08-14T05:57:55+5:302025-08-14T05:59:29+5:30

50 Years Of Sholay: संजीव कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी, जया बच्चन और ‘गब्बर सिंह’ का किरदार निभाने वाले अमजद खान समेत सभी कलाकारों ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया।

50 Years Of Sholay Dialogues Characters Scenes Itna sannata kyun hai bhai everyone characters still alive in India collective consciousness Dharmendra, Amitabh Bachchan | शोले@50: संवाद, पात्र और दृश्य लोकप्रिय, "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" तो सभी...

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Highlightsबैठक में देर से आने वाला कोई व्यक्ति जब कहता है, "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" तो सभी मुस्कुरा उठते हैं।ठाकुर, जय, वीरू, बसंती और गब्बर ही ऐसे कलाकार नहीं हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं।लोग इतने शांत क्यों हैं या मैकमोहन, जो सांबा के रूप में प्रसिद्ध हुए और बस एक संवाद "पूरे पचास हज़ार" बोला।

50 Years Of Sholay: जब संवाद, पात्र और दृश्य लोकप्रिय लोककथाओं का हिस्सा बन जाते हैं, राष्ट्रीय स्मृति के ताने-बाने में समा जाते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं, तब सिनेमा का जादू महसूस होता है। "शोले" ऐसी ही फिल्म है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने फिल्म देखी है या नहीं। इस फिल्म को रिलीज़ हुए 50 साल हो गए हैं। यह एक ‘कल्ट क्लासिक’ बन चुकी है जिसे आज भी लोग देखते हैं और जिसका ज़िक्र लगभग हर मौके पर किया जाता है। और फिर, बैठक में देर से आने वाला कोई व्यक्ति जब कहता है, "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" तो सभी मुस्कुरा उठते हैं।

जुड़ाव तुरंत हो जाता है। इस फिल्म से सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं। रमेश सिप्पी की यह उत्कृष्ट कृति, जिसमें हास्य और रोमांस, मारधाड़ और त्रासदी का मिश्रण था, 15 अगस्त, 1975 को रिलीज हुई थी और इसकी अवधि तीन घंटे से ज़्यादा थी। शुरुआत में इसे दर्शकों से जबरदस्त प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन बाद के हफ़्तों में इसका जादू छा गया।

50 Years Of Sholay: संजीव कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी, जया बच्चन और ‘गब्बर सिंह’ का किरदार

यही वह समय था जब 70 मिमी के परदे पर इतिहास रचा जा रहा था। संजीव कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी, जया बच्चन और ‘गब्बर सिंह’ का किरदार निभाने वाले अमजद खान समेत सभी कलाकारों ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया। लेकिन ठाकुर, जय, वीरू, बसंती और गब्बर ही ऐसे कलाकार नहीं हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं।

एक-दो दृश्यों में मौजूद कई चरित्र कलाकारों को भी याद किया जाता है। कुछ को उनके संवादों के लिए याद किया जाता है। ए.के. हंगल द्वारा निभाया गया वृद्ध व अंधा पिता, जो इस बात से अनजान है कि उसका बेटा मारा गया है और वह पूछ रहा है कि लोग इतने शांत क्यों हैं या मैकमोहन, जो सांबा के रूप में प्रसिद्ध हुए और बस एक संवाद "पूरे पचास हज़ार" बोला।

50 Years Of Sholay: भारतीय संस्कृति और आम बोलचाल का हिस्सा

मौसी, सूरमा भोपाली, 'अंग्रेजों के ज़माने के जेलर', कालिया याद हैं। ये फिल्म के कई किरदारों में से कुछ हैं, जो दर्शकों को हंसी से लेकर, डर तक महसूस कराते हैं। हर किरदार अपने आप में नायाब है। सलीम-जावेद की प्रसिद्ध पटकथा लेखक जोड़ी के एक सदस्य जावेद अख्तर ने कहा, "ये (संवाद) भारतीय संस्कृति और आम बोलचाल का हिस्सा बन गए हैं।

50 साल पहले बनी एक फिल्म और आज तक इसके संवाद स्टैंड-अप कॉमेडी में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके संदर्भ दूसरी फिल्मों में भी इस्तेमाल किए जाते हैं और भाषा में भी, यहां तक कि राजनीतिक भाषणों और अन्य जगहों पर भी।" सलीम खान के साथ मिलकर इस फिल्म की पटकथा लिखने वाले अख्तर ने कहा कि फिल्म का कैनवास ऐसा था कि यह कालातीत हो गई।

50 Years Of Sholay: बसंती (हेमामालिनी) हो या खामोश विधवा राधा (जया बच्चन)

अख्तर ने कहा, "इसमें सभी मानवीय भावनाओं का मिश्रण था। इसके लिए कोई सचेत प्रयास नहीं किया गया। यह बस हो गया।" फिल्म विद्वान, इतिहासकार और ‘क्यूरेटर’ अमृत गंगर के अनुसार, ‘‘यह ऐसी बेहतरीन फिल्म है जिसमें सब चीजें थीं। भोजन की ऐसी थाली जिसमें कई व्यंजन होते हैं।’’ उनके विचार से, जनता की कल्पना पर इस तरह का प्रभाव डालने वाली एकमात्र अन्य फिल्म "मुगल-ए-आज़म" है।

उन्होंने कहा, "'शोले' बिना किसी भव्यता के जादू करती है, लेकिन इसमें शब्दों की ताकत है।" "मुगल-ए-आज़म" एक ऐतिहासिक प्रेमकथा है, जबकि "शोले" आज़ादी के बाद के ग्रामीण भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित है। महिला किरदारों से फिल्म में चार चांद लग जाता है, चाहे वो बड़बोली व तांगा चलाने वाली बसंती (हेमामालिनी) हो या खामोश विधवा राधा (जया बच्चन)।

बसंती और वीरू के बीच के चुलबुले रोमांस को जय और सफ़ेद साड़ी पहनने वाली विधवा के बीच के अनकहे प्यार के साथ खूबसूरती से पेश किया गया है। और दोनों ही आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। प्रतिशोधी ठाकुर (संजीव कुमार) एक ईमानदार और प्रगतिशील व्यक्ति है जो चाहता है कि उसकी बहू को फिर से प्यार मिले।

50 Years Of Sholay: जो डर गया, समझो मर गया", "पचास, पचास कोस...

सलीम-जावेद न सिर्फ़ समय के साथ चलने की कोशिश कर रहे थे, बल्कि उससे आगे भी थे। उनकी कल्पना ने हिंदी सिनेमा के सबसे चर्चित खलनायक को जन्म दिया। गब्बर सिंह, बिना किसी पृष्ठभूमि वाले डाकू ने ख़तरनाक शब्द को नयी परिभाषा दी। उनके कई संवाद बार-बार दोहराये जा चुके हैं—"कितने आदमी थे", "जो डर गया, समझो मर गया", "पचास, पचास कोस..."

फिल्म इतिहासकार, लेखक और अभिलेख विशेषज्ञ एस एम एम औसजा ने कहा कि ‘शोले’ उन दुर्लभ घटनाओं में से एक है, जब फिल्म के हर विभाग ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, "यह एक अनोखा मामला है जहां सब कुछ सही जगह और सही समय पर हुआ। चरित्र-चित्रण बहुत अच्छा था और रमेश सिप्पी ने सभी कलाकारों से जिस तरह काम लिया, वह अनुकरणीय है।"

औसजा ने कहा, "इसके अलावा, इसमें सभी तरह की भावनाएं हैं। कॉमेडी से लेकर त्रासदी तक। इसमें वो हर भावना है जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं।" जावेद अख्तर के बेटे और अभिनेता-फिल्मकार फरहान अख्तर ने कहा कि आप किसी भी भारतीय से मिलिए और "शोले" पर चर्चा शुरू कीजिए, तो शत-प्रतिशत वे आपसे बात करेंगे।

50 Years Of Sholay: आप बार-बार देख सकते हैं और जहां चाहें वहां से देख सकते

फरहान ने कहा, "यह ऐसी चीज़ है जो हमें एक खास तरह से जोड़ती है। यह एक मुख्यधारा की, मनोरंजक फिल्म थी जो अपने समय के हिसाब से अनूठे रूप से बनाई गई थी...तकनीकी रूप से, यह एक बहुत ही बेहतरीन फिल्म है। यह एक अद्भुत फिल्म है जिसे आप बार-बार देख सकते हैं और जहां चाहें वहां से देख सकते हैं।"

सलीम-जावेद "शोले" से पहले ही "ज़ंजीर", "सीता और गीता" और "दीवार" जैसी हिट फ़िल्में दे चुके थे। कई दृश्य भारत की सामूहिक चेतना में बस गए हैं। पचास साल बाद भी, ऐसे लोग हैं जो विरोध में पानी और मोबाइल टावर पर चढ़ जाते हैं। नशे में धुत वीरू के उस मशहूर दृश्य की याद दिलाते हैं जब वह पानी के टावर पर चढ़ जाता है और तब तक नीचे नहीं उतरता जब तक बसंती की मौसी मान नहीं जातीं।

50 Years Of Sholay: "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" गाना उनके रिश्ते को दर्शाता

फिर जय और वीरू के बीच दोस्ती है, एक स्थायी दोस्ती जो एक सिक्के में अभिव्यक्त होती है- जय अक्सर अपनी बात मनवाने के लिए सिक्का उछालता है और उसके मरने के बाद ही वीरू को पता चलता है कि सिक्के के दो ‘हेड’ हैं। "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" गाना उनके रिश्ते को दर्शाता है।

फिल्म में आर डी बर्मन का संगीत आज भी न केवल गीतों के लिए, बल्कि इसके जोशीले बैकग्राउंड स्कोर के लिए भी याद किया जाता है, जो फिल्म के आगे बढ़ने के साथ बदलते मूड को दर्शाता है। "महबूबा महबूबा" गीत को बर्मन ने ही आवाज दी थी। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही एक साझा स्मृति की तरह, "शोले" भी आज भी ज़िंदा है। 


Web Title: 50 Years Of Sholay Dialogues Characters Scenes Itna sannata kyun hai bhai everyone characters still alive in India collective consciousness Dharmendra, Amitabh Bachchan

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