नृत्य की मूर्त संवाहक शिल्पकला!

By डॉ शिवाकान्त बाजपेयी | Published: May 1, 2019 06:57 PM2019-05-01T18:57:32+5:302019-05-02T14:56:30+5:30

इंटरनेशनल डांस डे बैले नृत्य के जनक ज्यां जॉर्जेस नोवेरे की जयंती के मौके हर साल 29 अप्रैल को मनाया जाता है।

world dance day 29 april International Dance Day Jean-Georges Noverre birth anniversary | नृत्य की मूर्त संवाहक शिल्पकला!

इंटरनेशनल डांस डे की शुरुआत 1982 में हुई जब यूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय थियेटर इंस्टीट्यूट की डांस कमेटी ने 29 अप्रैल को ‘वर्ल्ड डांस डे’ के रूप में नामांकित किया।

भारतीय शास्त्रों में वर्णित 64 कलाओं में से एक नृत्य कला का प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आज की आधुनिक दुनिया में भी विशिष्ट महत्व है और माना जाता है कि प्रारम्भ में यह प्रसन्न होने पर मनुष्य द्वारा किया जाता था और कालांतर में यह नृत्य दैवीय-मानवीय उद्गारों, कथानकों को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम तथा संस्कृति का संवाहक बन गया।

वैसे तो प्रति वर्ष ‘डांस फार्म’ बैले के जनक जीन जॉर्ज नोवेरे के जन्म दिवस 29 अप्रैल को सम्पूर्ण दुनिया में विश्व नृत्य दिवस(वर्ल्ड डांस डे) के रूप में  मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1982 से हुई, जिसे यूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय थियेटर इंस्टीट्यूट की डांस कमेटी ने 29 अप्रैल को ‘वर्ल्ड डांस डे’ के रूप में नामांकित किया है। इस आयोजन का मूल उद्देश्य लोगों को नृत्य की महत्ता के बारे में अवगत कराना एवं नृत्य की विभिन्न शैलियों का संरक्षण है। यही इस आयोजन का संक्षिप्त इतिहास है। नृत्य का इतिहास भी उतना ही पुराना है, जितना दुनिया की सभ्यताओं का और हर सभ्यता में इसके संदर्भ ज्ञात होते हैं।

प्राचीन सभ्यताओं विशेषकर भारतीय सभ्यता-संस्कृति में भी नृत्य का विशेष महत्व रहा है और विभिन्न अवसरों पर इसके निजी और सार्वजनिक प्रदर्शन भी आयोजित किए जाते थे। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र इस विधा का प्राचीनतम प्रामाणिक, सुव्यवस्थित ग्रंथ है। वैसे तो प्रागैैतिहासिक काल से ही शैल-चित्र कला के रूप में इसके प्रमाण मिलने लगते हैं, जब आदि मानव घुमक्कड़ जीवन व्यतीत  करता था तो मनोरंजन आदि के लिए नृत्य आदि का आयोजन करता था। साथ ही इनको शैल-चित्र कला के माध्यम से अभिव्यक्त भी करता था। किंतु इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व हड़प्पाई सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता) के हड़प्पा नामक पुरास्थल की खुदाई से प्राप्त कांस्य निर्मित नृत्य सुन्दरी की मूर्ति है, जो कि नृत्यरत है और वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में प्रदर्शित है। यही नहीं, इसके अतिरिक्त देश भर में फैले हजारों की संख्या में निर्मित प्राचीन मंदिरों में भी नृत्यरत देवताओं, नृत्यांगनाओं एवम् उपासकों की मूर्तियां मंदिरों की बाहरी दीवारों में और कभी-कभी आंतरिक भागों में भी उत्कीर्ण दिखाई देती हैं।

भगवान शिव का तांडव नृत्यु

 यूं भी भगवान शिव की तांडव नृत्य वाली नटराज प्रतिमा तो नृत्यकला के उद्गम की आदिमूर्ति स्वीकार की जाती है। तंजौर स्थित बृहदेश्वर मंदिर में तो भगवान शिव की  नृत्यरत अनेक भाव-भंगिमाएं अंकित हैं। इसके साथ ही नृत्यरत भगवान गणेश और कृष्ण लीला की प्रतिमाओंं का भी विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के उदाहरण प्राय: जैन और बौद्ध कला में भी ज्ञात होते हैं।

इस संदर्भ में एक अत्यंत महत्वपूर्ण उदाहरण लगभग 7 वीं सदी ईसवी में निर्मित औरंगाबाद बौद्ध गुफाओं में गुफा क्रमांक-7 का है, जिसके गर्भ गृह में ही भगवान बुद्ध की प्रतिमा के सम्मुख पार्श्व में संगीत वादकों के साथ नृत्यरत नर्तकी का अद्वितीय एवं अनूठा चित्रण है। इसी प्रकार नृत्य में प्रयुक्त होने वाली विभिन्न मुद्राओं तथा भाव-भंगिमाओं को भी मूर्तिकला-चित्रकला से ग्रहण किया गया प्रतीत होता है, जिनके प्रेरक उदाहरण के रूप में अजंता-एलोरा का भी उल्लेख किया जा सकता है, क्योंकि जहां शिल्पकला मूर्त रूप में होती है वहीं नृत्यकला जीवंत स्वरूप में होती है और यह देवालयों में उत्कीर्ण देवांगनाओं, अप्सराओं आदि से प्रभावित होती है। 

प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि नृत्यकला के विकास का एक धार्मिक पहलू भी रहा है तथा राज्याश्रय के अतिरिक्त मंदिरों में देवताओं के सम्मुख भी नृत्य की एक रोचक परंपरा रही है। इसीलिए प्राचीन मंदिरों विशेषकर उड़ीसा के मंदिरों में तो नट मण्डप का भी निर्माण किया गया था, जिन्हें आज भी देखा जा सकता है। इसी प्रकार दक्षिण भारत के मंदिरों में तो नृत्य करने वाली नृत्यांगनाओं के समूह देवदासी के रूप में ही प्रसिद्ध हो गए।
नृत्यकला के लोकव्यापीकरण के रूप में तो गरबा नृत्य आज लगभग हर घर में लोकप्रिय है। वर्तमान में जहां नृत्यकला महत्वपूर्ण व्यवसाय के रूप में चिह्नित है और नृत्यांगनाओं तथा कोरिओग्राफर्स को समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वहीं दूसरी ओर इसे लोगों द्वारा तनाव दूर करने और वजन कम करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा रहा है। खैर! जो भी हो, नृत्य ने आज जीवन के हर अवसर पर अपनी पैठ और स्वीकार्यता स्थापित कर ली है, इसलिए  विश्व नृत्य दिवस के अवसर पर हमें भांगड़ा करने से भी गुरेज नहीं करना चाहिए।
 

Web Title: world dance day 29 april International Dance Day Jean-Georges Noverre birth anniversary

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