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शोभना जैन का ब्लॉग: विस्तार के बाद क्या मजबूत होगा ब्रिक्स?

By शोभना जैन | Published: August 25, 2023 10:14 AM

ब्रिक्स का फिलहाल विस्तार तो हो गया है और प्राप्त संकेतों के अनुसार आने वाले वर्षों में समूह में कुछ और देशों को भी शामिल किए जाने की संभावना है, लेकिन सवाल कई हैं।

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असहमतियों को पाटते हुए दुनिया की छह सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के समूह 'ब्रिक्स' ने छह और देशों को आज 'सर्वसहमति' से समूह में शामिल कर लिया। दक्षिण अफ्रीका की राजधानी जोहान्सबर्ग में 15वीं ब्रिक्स शिखर बैठक में असहमतियों को दूर करने के लिए सभी पांच सदस्य देशों ब्राजील, भारत, चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका के शिखर नेताओं के बीच हुए गहन विचार-विमर्श के बाद यह ऐलान किया गया। 

ब्रिक्स क्लब के वर्तमान अध्यक्ष दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने तीन दिवसीय शिखर बैठक की समाप्ति से पूर्व कहा कि अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ब्रिक्स का पूर्ण सदस्य बनने के लिए आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया है। नए सदस्य एक जनवरी 2024 से ब्रिक्स का हिस्सा बन जाएंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी छह देशों का स्वागत करते हुए कहा कि 'भारत ने हमेशा ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन किया है। भारत का हमेशा मानना रहा है कि नए सदस्यों को जोड़ने से ब्रिक्स एक संगठन के रूप में मजबूत होगा। हम ब्रिक्स के विस्तार के पक्षधर रहे हैं, सभी नए 6 सदस्य देशों से भारत के अच्छे संबंध रहे हैं।' 

ब्रिक्स का फिलहाल विस्तार तो हो गया है और प्राप्त संकेतों के अनुसार आने वाले वर्षों में समूह में कुछ और देशों को भी शामिल किए जाने की संभावना है, लेकिन सवाल कई हैं। 

क्या समूह की सदस्यता के लिए कोई नियम बनाए गए हैं? विस्तारित समूह सिर्फ संख्या बल बढ़ जाने से क्या अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा? क्या पहले से ही अलग-अलग धुरियों पर खड़े देशों के साथ कुछ और भूराजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों के भी समूह में शामिल होने से समूह वाकई मजबूत हो पाएगा? नए सदस्य देशों के पुराने देशों के साथ जो संबंध रहे हैं, उससे समूह की मूल भावना पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा या फिर समूह गुटबाजी में उलझ कर तो नहीं रह जाएगा? 

और फिर जैसा कि विदेश नीति के एक जानकार के अनुसार एक तरफ जहां चीन और रूस ब्रिक्स जैसे समूह को पश्चिमी देशों की वर्चस्वता की कथित नीति को टक्कर देने और उससे जुड़े जी-7 और जी-20 जैसे पश्चिमी देश बहुल समूहों के विकल्प के रूप में बनाए जाने के लिए इस्तेमाल किए जाने पर जोर देते रहे हैं, ऐसे में बढ़े हुए संख्या बल और समूह के एजेंडे के बीच तालमेल कैसे बनेगा? 

यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि चीन ने इस समूह में पाकिस्तान को भी शामिल किए जाने की वकालत की। उसकी दलील थी कि समूह में विकासशील देशों को भी जगह मिलनी चाहिए। पाकिस्तान ने इसी वर्ष समूह की सदस्यता दिए जाने के लिए आवेदन किया था। भारत ने पाकिस्तान के आवेदन पर नियमों पर खरा न उतरने की वजह से कड़ा विरोध जताया था।

राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने हालांकि आशावादी मुद्रा में कहा कि इस शिखर सम्मेलन ने लोगों के बीच आदान-प्रदान और मित्रता एवं सहयोग बढ़ाने के महत्व की पुष्टि की। 

उन्होंने कहा, 'हमने जोहान्सबर्ग की दो घोषणाओं को अपनाया, जो वैश्विक आर्थिक, वित्तीय और राजनीतिक महत्व के मामलों पर प्रमुख ब्रिक्स संदेशों को प्रतिबिंबित करती है। यह उन साझा मूल्यों और सामान्य हितों को प्रदर्शित करता है जो पांच ब्रिक्स देशों के रूप में हमारे पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग का आधार हैं।' 

भारत इस समूह में नये सदस्यों को लाए जाने का तो पक्षधर रहा है, लेकिन उस का कहना रहा है कि एक तो यह सर्वसहमति से होना चाहिए और दूसरा इस तरह की सदस्यता के लिए नियम बनाए जाने चाहिए, जैसा कि आसियान या ऐसे ही समूहों में होता रहा है। भारत को आसियान समूह का पूर्णकालिक सदस्य बनाए जाने से पहले पर्यवेक्षक और फिर डायलॉग पार्टनर का दर्जा देने के बाद ही पूर्णकालिक सदस्य बनाया गया। 

सदस्यता के मुद्दे पर भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील और दूसरी तरफ चीन और रूस के बीच असहमतियों के बावजूद गहन मंत्रणा के बाद आखिर इन छह देशों को 'सर्वसहमति' के आधार पर समूह में शामिल कर लिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिण अफ्रीका की ब्रिक्स अध्यक्षता में 'ग्लोबल साउथ' के देशों को विशेष महत्व दिए जाने के कदम का स्वागत किया। 

ग्लोबल साउथ वे देश हैं जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है। ये देश मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, करीब 40 देशों ने ब्रिक्स से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है। ब्रिक्स विश्व की 41 फीसदी आबादी, 24 फीसदी वैश्विक जीडीपी और 16 फीसदी वैश्विक कारोबार का प्रतिनिधित्व करता है।

 अधिकारियों के अनुसार ब्रिक्स देशों से इस समूह में शामिल होने के लिए कम से कम 23 देश संपर्क कर चुके हैं। जरूरी है कि ब्रिक्स जैसे समूह को किसी भी महाशक्ति के प्रभाव से मुक्त रखा जाए, तभी ब्रिक्स समूह प्रभावी हो सकेगा और अपने एजेंडा पर काम कर सकेगा।

टॅग्स :BRICSIndia
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