वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: मालदीव में यामीन की हार से लोकतंत्र की जीत
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 26, 2018 05:18 AM2018-09-26T05:18:14+5:302018-09-26T05:18:46+5:30
मालदीव में ऐसा भारत-विरोधी वातावरण बना दिया गया था कि हमारे प्रधानमंत्री का दौरा सभी पड़ोसी देशों में हो गया लेकिन मालदीव में नहीं हुआ।
मालदीव में अब्दुल्ला यामीन की हार और विरोधी दलों के संयुक्त उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की जीत के अर्थ क्या हैं? पहला, यह कि यह दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की विजय है।
मालदीव के लोगों ने बता दिया है कि वे ही संप्रभु हैं, सर्वोच्च हैं। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि राष्ट्रपति यामीन हार जाएंगे, क्योंकि उन्होंने जीतने के लिए साम, दाम, दंड, भेद- सबका इस्तेमाल कर लिया था।
लेकिन फिर भी मालदीव के 90 प्रतिशत मतदाताओं ने यामीन को प्रचंड बहुमत से हरा दिया। उम्मीद है कि नवंबर में वे अपना कार्यकाल पूरा होने पर सोलिह को सत्ता सौंप देंगे। यदि वे कोई तिकड़म करें तो भारत के लिए ठीक मौका होगा कि वह सोलिह और नशीद के निमंत्रण पर मालदीव में सैन्य-हस्तक्षेप करे और वहां के लोकतंत्र की रक्षा करे।
यामीन ने अपने शासन-काल में चीन के हाथों मालदीव को गिरवी रख दिया था। मालदीव के सात बड़े द्वीपों पर चीन का निर्माण-कार्य चल रहा है।
मालदीव को विदेशों से मिले कर्ज का 70 प्रतिशत अकेले चीन ने दिया है। चीन जैसी हरकत मलेशिया, श्रीलंका, पाकिस्तान और बर्मा में कर रहा है, उससे भी ज्यादा वह मालदीव में कर रहा है।
जो चीन-मालदीव मैत्री-सेतु करीब 8 करोड़ डॉलर में बन रहा था, उसके अब यामीन चीन को 30 करोड़ डालर देने को तैयार थे। भारतीय कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे माले के हवाई अड्डे तथा अन्य निर्माण कार्यों को भी रोक दिया गया था।
मालदीव में ऐसा भारत-विरोधी वातावरण बना दिया गया था कि हमारे प्रधानमंत्री का दौरा सभी पड़ोसी देशों में हो गया लेकिन मालदीव में नहीं हुआ। इब्राहिम सोलिह, जिन्हें प्यार से ‘इबू’ कहा जाता है, के शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी को माले जाना चाहिए।
आशा है, ‘इबू’ अपने वरिष्ठ नेता मोहम्मद नशीद को कोलंबो से माले बुला लेंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि विरोधी पार्टियों के गठबंधन की इस सरकार को वे अच्छी तरह चलाएं। इबू और नशीद के नेतृत्व में अब हम नए मालदीव के दर्शन करेंगे।