किसी विचारधारा नहीं, अवसर से प्रेरित हैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
By रहीस सिंह | Updated: August 2, 2025 05:18 IST2025-08-02T05:18:30+5:302025-08-02T05:18:30+5:30
न जाने क्यों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ‘मागा’ (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) में चेयरमैन माओ त्से तुंग की ‘कल्चरल रिवोल्यूशन’ की झलक दिखती है.

file photo
अतीत के आईने में वर्तमान को देखने पर बहुत कुछ ऐसा लगता है कि जैसे वह स्वयं को दोहरा रहा हो. हां, समय के साथ उसके बाहरी आवरण में फर्क हो सकता है लेकिन अंदर बहुत कुछ वैसा ही है. इसमें पुनः ग्लोबलाइजेशन बिखरता हुआ और संरक्षणवाद उभरता हुआ दिख रहा है. इसमें एकाधिकारवादी और अधिनायकवादी प्रवृत्तियां भी उसी तरह से पनपती हुई दिख रही हैं जैसी कि 19वीं और 20वीं सदी में दिखी थीं. ठीक इसी प्रकार से न जाने क्यों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ‘मागा’ (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) में चेयरमैन माओ त्से तुंग की ‘कल्चरल रिवोल्यूशन’ की झलक दिखती है.
दुनिया इसे किस तरह से और किस स्केल पर देखेगी या नहीं देखेगी, यह अलग बात है. यदि ऐसा है तो फिर सवाल यह उठता है कि क्या ट्रम्प के बाद अमेरिका में पुनः सुधारवादियों को आना पड़ेगा? वैसे तो दुनिया के कई देशों में शासनाध्यक्षों में विशेष प्रकार की सनक देखी जा सकती है लेकिन ‘मागा’ और ‘अमेरिका फर्स्ट’ डोनाल्ड ट्रम्प में माओ जैसी सनक को दिखा रहा है.
चूंकि अमेरिका लोकतांत्रिक देश है और दुनिया 1960 अथवा 1970 के दशक से बहुत आगे निकलकर 21वीं सदी के ढाई दशक पार कर चुकी है, इसलिए हू-ब-हू पुनरावृत्ति नहीं हो सकती लेकिन यदि उसका कुछ भी अंश इनमें मौजूद है तो यह 21वीं सदी की आधुनिक दुनिया पर प्रश्नचिन्ह तो लगा ही रहा है.
दरअसल मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) ट्रम्प के पॉलिटिकल-इकोनॉमिक मॉडल का वह हिस्सा है जो अमेरिकियों को एक सपना बेच रहा है. सपना यह कि डोनाल्ड ट्रम्प एकमात्र ऐसे अमेरिकी नेता हैं जो अमेरिका के वैभव को पुनः लौटा सकते हैं. इसके लिए ट्रम्प ने एक ऐसी जमात खड़ी कर ली है जो कुछ वैसा ही करती दिख रही है जो माओ का ‘गैंग ऑफ फोर’ और ‘रेड गॉर्ड्स’ करते हुए दिख रहे थे.
कैपिटल हिल की घटना इसी तरह का एक उदाहरण हो सकती है. यही कारण है कि ट्रम्प की इडियोसिटी भी उनके अनुयायियों में भावनात्मक लहर पैदा कर गई. अन्यथा 76 साल के इस व्यक्ति में अमेरिकी वोटर्स ने ऐसा क्या देख लिया था जो जीत का इतिहास उसके नाम लिख देते! एक बात और, डोनाल्ड ट्रम्प विचारधारा से नहीं बल्कि अवसर से प्रेरित व्यक्ति हैं.
यह बात अब उनके आदर्शवादी समर्थक हजम नहीं कर पा रहे हैं और उनकी लोकप्रियता इन्हीं पर निर्भर करती है. यही वह विरोधाभास है जो ट्रम्प और उनके आंदोलन के बीच की दूरी को बढ़ाता है. जैसे-जैसे यह दूरी बढ़ेगी ट्रम्प की सफलता संदिग्ध होती जाएगी. दूसरी तरफ जल्द ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था उन्हें जवाब दे सकती है.
ट्रम्प का ‘द वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ (ओबीबीबी) जो ‘मागा’ फैंटसी की तरह ही है, यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है. उल्लेखनीय है कि पिछले दो दशकों में अमेरिका का संघीय बजट घाटा औसतन जीडीपी का 6.7 प्रतिशत रहा. अब ट्रम्प का ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ एक्ट बन चुका है और बहुत से अर्थशास्त्री यह अनुमान लगा रहे हैं कि बजट घाटा इसी स्तर पर बना रहेगा.
देश का कर्ज-जीडीपी अनुपात अगले कुछ वर्षों में 106 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर को पार कर जाएगा. टैरिफ से आय बढ़ेगी लेकिन इतने भर से घाटा नहीं रुकेगा. मतलब देश धीरे-धीरे वित्तीय आपदा की ओर बढ़ेगा.कुल मिलाकर माओ के समय के लियू शाओकी और डेंग शियाओपिंग की तरह ही ट्रम्प का विरोध करने वाले कार्लसन और स्टीव बैनन जैसे लोग भी हैं.
लेकिन ट्रम्प विरोध स्वीकार नहीं कर सकते बल्कि उनकी कोशिश तो खुद को राष्ट्र का एकमात्र रक्षक घोषित करने की होगी. ऐसे में सुधारवादियों, बुद्धिजीवियों आदि का दमन अवश्यंभावी हो जाएगा. हो सकता है इस सबसे ट्रम्प अपने अनुयायियों के बीच मसीहाई छवि गढ़ने में कामयाब हो जाएं जो आज के दौर में मुश्किल नहीं है, लेकिन अमेरिका का क्या होगा?