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रहीस सिंह का ब्लॉग: अमेरिकी चुनाव के बाद बदलेगी यूक्रेन युद्ध की दिशा

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 3, 2024 10:45 IST

आर्थिक दृष्टि से देखें तो एक तरफ जी-7 के रूप में विकसित अर्थव्यवस्थाएं तो दूसरी तरफ ब्रिक्स इकोनमीज सहित कुछ अन्य इकोनमिक ब्लॉक। ये एक दूसरे के साथ नहीं चल रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे के विरुद्ध बहुत कुछ रणनीतियों को अपनाते हुए भी दिख रहे हैं।

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ठळक मुद्दे दुनिया इस समय तेजी से बंटती हुई नजर नहीं आ रही हैएक तरफ मास्को-बीजिंग और उनके सहयोगी देश हैंदूसरी तरफ अमेरिका और नाटो देश

एक बार यह विचार करके देखें कि क्या दुनिया इस समय तेजी से बंटती हुई नजर नहीं आ रही है, जिसमें एक तरफ मास्को-बीजिंग और उनके सहयोगी देश हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका और नाटो देश। आर्थिक दृष्टि से देखें तो एक तरफ जी-7 के रूप में विकसित अर्थव्यवस्थाएं तो दूसरी तरफ ब्रिक्स इकोनमीज सहित कुछ अन्य इकोनमिक ब्लॉक। ये एक दूसरे के साथ नहीं चल रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे के विरुद्ध बहुत कुछ रणनीतियों को अपनाते हुए भी दिख रहे हैं। 

इस स्थिति में एक तरफ रूस की परिसंपत्तियों को फ्रीज करना, फिर यूक्रेन को देने पर सहमति जताना और फिर स्विट्जरलैंड में बैठकर शांति की बात करना, रूस को मुंह चिढ़ाने जैसा नहीं लगता? सच तो यह है कि पश्चिमी दुनिया ने मास्को, कीव और क्रीमिया को तो देखा, लेकिन यह पड़ताल नहीं की थी कि रूस और यूक्रेन सांस्कृतिक व आर्थिक रूप से सदियों से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे जिन्हें षड्यंत्र के माध्यम से तोड़ दिया गया।  खैर नवंबर 2024 तक की प्रतीक्षा कीजिए। नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में यदि ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो यह तय मानिए कि इस युद्ध का परिणाम निकलेगा और दिशा भी कुछ अलग होगी।

वर्तमान वैश्विक स्थिति को देखें तो यूरेशियाई मैदान में एक युद्ध छिड़ा हुआ है। ऊपरी तौर पर तो इसे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के रूप में ही प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन यह सच नहीं है, सच्चाई तो यह है कि इसमें एक तरफ रूस है जिसके पीछे चीन खड़ा हुआ है और दूसरी तरफ यूक्रेन है जिसके साथ अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, जापान सहित लगभग वे सभी देश खड़े हैं या परोक्ष रूप से लड़ रहे हैं जो या तो नाटो के सदस्य हैं या जो अमेरिकी खेमे का हिस्सा हैं। अब अगर यह लड़ाई केवल दो राष्ट्रों के बीच नहीं हो रही है तो इसका असर भी दो राष्ट्रों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। इसका असर व्यापक है विशेषकर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर, इतना प्रभावशाली कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी जैसे दबाव को महसूस कर रही है। 

अंतिम बात यह है कि क्या इतिहास स्वयं को दोहराता है. ध्यान रहे कि पिछली सदी के तीसरे दशक में मित्र राष्ट्रों द्वारा हिटलर की जर्मनी और मुसोलिनी की इटली के खिलाफ जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे, उनके परिणाम क्या रहे थे? क्या वे हिटलर और मुसोलिनी को रोक पाए थे? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को ‘वार क्रिमिनल’ भी घोषित कर चुके हैं। लेकिन क्या इसके बाद भी पुतिन कमजोर दिखे? अब तक तो नहीं। इसके विपरीत वे यह बताने में बहुत हद तक सफल रहे हैं कि यह सीधी रेखा में चलने वाला युद्ध नहीं है। इसमें महाशक्तियों की उच्चाकांक्षाएं और ‘ग्रेट गेम’ शामिल हैं। यह एक जटिल और बहुआयामी युद्ध है जिसमें इंफोर्मेशन वार, इकोनमिक वार अथवा ट्रेड वार, जियो-पालिटिकल वार और वार आफ आइडेंटिटी जैसी विशेषताएं भी शामिल हैं।

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