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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ राजद्रोह के महाभियोग का सबक, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Updated: January 16, 2021 14:56 IST

अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने गत 13 जनवरी को देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल समाप्त होने से महज सात दिन पहले उनके खिलाफ ‘अपने देश के खिलाफ राजद्रोह’ करने को लेकर महाभियोग प्रस्ताव पारित कर ही दिया.

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ठळक मुद्देअमेरिकी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी राष्ट्रपति पर दूसरी बार महाभियोग लगा.घटनाक्रम से तो साफ है कि ट्रम्प 20 जनवरी से पहले इस्तीफा देने वाले नहीं हैं. सीनेट में उनके खिलाफ ट्रायल का पूरा होना संभव नहीं है, यानी 20 जनवरी तक वे राष्ट्रपति बने रहेंगे.

असाधारण घरेलू सुरक्षा हालात के मद्देनजर स्टेनगनों से लैस अमेरिकी सुरक्षा कर्मियों के सुरक्षा घेरे में अमेरिकी संसद भवन कैपिटल हिल में आखिरकार अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने गत 13 जनवरी को देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल समाप्त होने से महज सात दिन पहले उनके खिलाफ ‘अपने देश के खिलाफ राजद्रोह’ करने को लेकर महाभियोग प्रस्ताव पारित कर ही दिया.

अमेरिकी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी राष्ट्रपति पर दूसरी बार महाभियोग लगा और  वह भी दूसरी बार जब उनके कार्यकाल के समाप्त होने में महज चंद दिन ही बचे थे. खुद ट्रम्प की  रिपब्लिकन पार्टी के दस सदस्यों के समर्थन से पारित 25वें संशोधन के इस्तेमाल यानी महाभियोग प्रस्ताव पारित होने का अमेरिकी राजनीति ने क्या सबक लिया.

उसके क्या परिणाम हो सकते हैं, उसे अमेरिकी संसद की अध्यक्ष के नाते इस प्रस्ताव के पारित होने की मोहर लगाने वाली नैन्सी पेलोसी की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है,  ‘‘मैं बहुत भारी मन से इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रही हूं, मैं जानती हूं कि इसके हमारे देश के लिए क्या मायने हैं, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, भले ही वह अमेरिका का राष्ट्रपति क्यों न हो.

हम लोग जानते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने बगावत के लिए उकसाया, हम सभी के देश के खिलाफ हथियारबंद बगावत को हवा दी. उन्हें जाना ही चाहिए. वो राष्ट्र के लिए साफ तौर पर एक मौजूदा खतरा हैं. मैं आपके सामने संविधान के एक अधिकारी बतौर खड़ी हूं.’’ निश्चय ही इस प्रस्ताव को पारित करके अमेरिकी सांसदों ने न केवल ऐसी अत्यंत कटु स्थिति से कड़ाई से निपटने का संदेश दिया है बल्कि भविष्य के लिए भी दृष्टांत पेश किया है.

वैसे अभी तक के घटनाक्रम से तो साफ है कि ट्रम्प 20 जनवरी से पहले इस्तीफा देने वाले नहीं हैं. उनका कार्यकाल 20 जनवरी को पूरा हो रहा है. सीनेट में इस प्रस्ताव पर चर्चा कराने की कोई समय-सीमा नहीं है लेकिन लगता तो यही है कि 20 जनवरी से पहले ये  ट्रायल खत्म नहीं हो पाएगा जिस दिन जो बाइडेन को राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई जाएगी और इतने कम समय में सीनेट में उनके खिलाफ ट्रायल का पूरा होना संभव नहीं है, यानी 20 जनवरी तक वे राष्ट्रपति बने रहेंगे.

संकेत हैं कि ट्रायल 19 जनवरी से शुरू हो सकता है, जो मार्च तक चल सकता है. सीनेट में ट्रायल के दौरान अगर दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पारित होता है तो हो सकता है कि उन्हें दोबारा किसी भी पब्लिक ऑ़फिस के अयोग्य ठहरा दिया जाए, यानी यह हो सकता है कि ट्रम्प की 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में  उम्मीदवारी पर भी रोक लग जाए.

गत दिनों कैपिटल हिल पर ट्रम्प समर्थक उत्पातियों के दीवारें फांद कर, रस्सियों के जरिये संसद भवन में घुसने, भवन के अंदर बेलगाम होकर उत्पात मचाने की तस्वीरें न केवल अमेरिका के लिए बल्कि दुनिया भर के लोकतंत्न समर्थकों के लिए विचलित करने वाली थीं. वहीं महाभियोग की कार्रवाई के दौरान  गत 13 जनवरी को इन उत्पातियों को दूर रखने के लिए संसद भवन परिसर को जिस तरह से अभेद्य किला बना दिया गया, वह आने वाले समय की आहट को लेकर गंभीर आशंकाएं दर्शाता है.

ऐसे में विदेश नीति के एक जानकार के इस मत से सहमति स्वाभाविक ही है कि ट्रम्प और उनके हुड़दंगी और उत्पाती समर्थकों के साथ चुनाव हारने की स्थिति में  ऐसे ही मंसूबे वाले दुनिया भर के नेताओं और उनके समर्थकों को भी यह बात समझ आई होगी कि लोकतंत्न में विजय, पराजय दोनों को सहजता और शालीनता से स्वीकार करना चाहिए. संविधान की धज्जियां उड़ाने के परिणाम गंभीर होंगे.

गौरतलब है कि गत छह जनवरी को कैपिटल हिल (संसद) में जब राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन की जीत पर संसद में मुहर लगाई जा रही थी तो वहां कार्यवाही में व्यवधान डालने की मंशा से ट्रम्प के उकसावे पर उनके समर्थकों द्वारा संसद भवन के अंदर घुस कर हिंसा का तांडव व अराजकता फैलाने की वजह से ट्रम्प के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में कार्रवाई बतौर यह प्रस्ताव लाया गया. इस हिंसा में पांच लोग मारे गए जिसमें एक पुलिस अधिकारी भी शामिल था.

अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी एफबीआई ने कैपिटल हिल में 6 जनवरी को दंगा करने वालों के खिलाफ 160 से अधिक मामलों में जांच शुरू कर दी है. भारतीय मूल के चार सांसदों एमी बेरा, रो खन्ना, राजा कृष्णामूर्ति और प्रमिला जयपाल ने महाभियोग के पक्ष में समर्थन दिया.

 बहरहाल आगामी 20 जनवरी के शपथ ग्रहण समारोह से पहले अमेरिका की राजधानी में ऐसा नजारा है जैसा अमेरिका के किसी भी नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में नहीं देखा गया. अभूतपूर्व सुरक्षा बंदोबस्त है. ट्रम्प के समर्थकों की वेबसाइट पर  इस दौरान प्रदर्शनों के लिए जुटने की  सूचनाएं हैं.

समारोह से पहले अशांति की आशंकाओं के मद्देनजर राजधानी में आपातकाल लागू कर दिया गया है, पर्यटकों की आवाजाही पर पाबंदी लगा दी गई है. हमेशा  खुले में होने वाले समारोह के बारे में अभी तक तय नहीं हो पा रहा है कि समारोह खुले में करें या बंद स्थल पर.

ट्रम्प की विभाजनकारी नीतियों से उपजे ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ जैसे आंदोलन के बाद अब नए राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर यह विभाजन अमेरिका जैसे मजबूत लोकतंत्न के लिए निश्चय ही अच्छा नहीं है, लेकिन संसद ने आखिरकार आखिरी कदम बतौर जिस तरह से महाभियोग प्रस्ताव की पहल की, वह एक संकेत तो है ही कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं, चाहे वह राष्ट्रपति ही क्यों नहीं हो, और उस का कार्यकाल चंद दिन बाद भले ही समाप्त होने वाला हो.  

टॅग्स :अमेरिकाडोनाल्ड ट्रंपजो बाइडन
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