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ब्लॉग: जस्टिन ट्रूडो के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सख्त रुख

By हरीश गुप्ता | Published: October 05, 2023 9:57 AM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा के 41 राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया। इसके साथ ही भारत की ओर से कहा गया है कि कनाडा आतंकवादियों और चरमपंथियों को भारते के खिलाफ हिंसा की खुलेआम वकालत करने वाले लोगों का समर्थन कर रहा है।

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ठळक मुद्देप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो को अपने निशाने पर लिया हैपीएम मोदी ने कनाडा के खिलाफ भविष्य में इस पर पुनर्विचार की कोई संभावना नहीं हैभारत ने कनाडा को घेरते हुए कहा कि कनाडा चरमपंथियों का खुलेआम समर्थन कर रहा है

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के लिए दरवाजे बंद करने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो को अपने निशाने पर लिया है। पीएम मोदी ने कनाडा के खिलाफ अपना रुख सख्त कर लिया है और भविष्य में इस पर पुनर्विचार की कोई संभावना नहीं है। जब कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने आरोप को सार्वजनिक करते हुए कहा कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में ‘भारत सरकार के एजेंट’ शामिल थे, तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वाशिंगटन में कहा कि ये आरोप भारत की नीति के अनुरूप नहीं थे और उन्होंने आरोपों को ‘बेतुका और प्रेरित’ बताया। उन्होंने ट्रूडो पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत के खिलाफ अपने आरोप के समर्थन में कोई सबूत पेश नहीं किया है।

हालांकि, वाशिंगटन ने कहा कि यह आई 5 देशों के गठबंधन (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के बीच साझा खुफिया जानकारी है और भारत को इसमें सहयोग करना चाहिए। लेकिन, ऐसा लगता है कि पीएम मोदी इस मुद्दे को छोड़ने के मूड में नहीं हैं। भारत सरकार ने भारत में मौजूद 41 कनाडाई राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया। भारत ने कनाडा और वाशिंगटन को दृढ़ता से बताया कि कनाडा का ‘आतंकवादियों, चरमपंथियों और भारत के खिलाफ हिंसा की खुलेआम वकालत करने वाले लोगों के प्रति उदार रवैया’ है और वह उन्हें शरण दे रहा है। 

सवाल यह है कि कनाडा भारत के खिलाफ सबूत सार्वजनिक क्यों नहीं कर रहा है? दरअसल कनाडा किसी भी जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकता क्योंकि वियना समझौते के तहत, किसी भी देश द्वारा राजनयिकों की जासूसी नहीं की जा सकती है और उन्हें ऐसी किसी भी कार्रवाई से छूट हासिल है। यदि कनाडा आधिकारिक तौर पर भारत के साथ खुफिया जानकारी साझा करता है, तो यह स्थापित हो जाएगा कि कनाडा या अमेरिका ने कनाडा में काम करने वाले राजनयिकों की अवैध रूप से जासूसी की थी। इस तरह के खुलासे के निज्जर हत्याकांड से भी ज्यादा दूरगामी परिणाम होंगे। शायद ट्रूडो को इस बात का अहसास नहीं था कि वह एक अलग भारत के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं। पीएम मोदी के लिए कनाडा एक ऐसा देश है, जहां ‘भारत के खिलाफ संगठित अपराध के तार मानव तस्करी, अलगाववाद, हिंसा, जबरन वसूली और आतंकवाद से जुड़े हैं।’

पीएम मोदी ने कनाडाई पीएम से दृढ़ता से कहा कि वे वहां स्वतंत्र रूप से सक्रिय भारत विरोधी आतंकवादियों की सूची पर कार्रवाई करें जो उन्होंने 2018 में उन्हें सौंपी थी। कथित तौर पर मोदी ट्रूडो के प्रति सख्त रहे जब वे दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर मिले थे लेकिन ट्रूडो ने कुछ नहीं किया और मोदी ने अपनी शैली में काम करने का फैसला किया। यह याद रखना चाहिए कि मोदी ने अमेरिका से दृढ़तापूर्वक कहा था कि भारत उसके लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद रूसी तेल का आयात जारी रखेगा। मोदी ने वाशिंगटन से कहा कि रूस से तेल आयात करना उसके ‘तेल सुरक्षा और राष्ट्रीय हित’ का हिस्सा है। अमेरिका को इसे नजरंदाज करना पड़ा।

एक बड़ा सामरिक बदलावपीएम मोदी ने एक बड़ा नीतिगत बदलाव किया था जब उन्होंने 2019 में बालाकोट में आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए भारतीय बलों को पीओके के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक करने की अनुमति दी। भारत की घोषित नीति थी कि वह दुश्मन पर हमला करने के लिए कभी भी सीमा पार नहीं करेगा और सिर्फ खुद का बचाव करेगा। लेकिन, बालाकोट ने सब कुछ बदल दिया और मोदी ने पाकिस्तान के अंदर सीधा हमला करने का फैसला किया। दुनिया भर में हमारी शीर्ष खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं, इस पर नजर रखने वालों का कहना है कि मोदी के आक्रामक रवैये के लिए काफी हद तक अजित डोभाल जिम्मेदार हैं, जो पिछले दस सालों से पीएमओ में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) हैं। डोभाल इंदिरा गांधी के समय से काम कर रहे हैं और पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ हैं। यह वही थे जिन्होंने 2005 में दुबई में दाऊद इब्राहिम को खत्म करने के लिए एक ज्ञात आतंकवादी गिरोह का इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी। डोभाल इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख थे और उसी साल जनवरी में सेवानिवृत्त हुए थे। लेकिन उन्होंने भारतीय एजेंसियों को उनके कार्यों में सहायता देना जारी रखा। 

उल्लेखनीय है कि तब सरकार का नेतृत्व डॉ. मनमोहन सिंह कर रहे थे। यह अलग बात है कि तब मुंबई पुलिस की बेवकूफी के कारण ऑपरेशन विफल हुआ था। डॉ. सिंह के एनएसए एम.के. नारायणन 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास परिसर में हुए विस्फोटों के बाद, जिसमें रक्षा सहकारी रवि मेहता और विदेश सेवा अधिकारी वी. वेंकटेश्वर राव सहित 58 लोग मारे गए थे, जांच में शामिल हो गए। नारायणन ने सभी पुलिस प्रमुखों से कहा, ‘बातचीत के दिन खत्म हो गए हैं. यह कार्रवाई का समय है।’ डोभाल मुस्कुरा रहे थे क्योंकि उन्होंने हमेशा कहा था कि ‘पाकिस्तान से उसकी भाषा में बात करें’ और ‘आक्रामक रक्षा’ आज का सिद्धांत होना चाहिए। यदि हाल के दिनों में पाकिस्तान, इटली और अन्य जगहों पर एक दर्जन से अधिक कट्टर आतंकवादियों का सफाया किया गया है, तो यह याद रखना चाहिए कि भारत ने मोदी के शासन के अंतर्गत अपनी नीति बदल दी है। भारत ने पश्चिमी दुनिया को बता दिया है, ‘अगर हम पैसा कमाने के लिए आपको अपना बाजार दे रहे हैं, तो इसकी एक कीमत चुकानी पड़ेगी और कनाडा को आतंक के खिलाफ कदम उठाना ही होगा।’

एक गुमनाम नायकइस नए युग के एक गुमनाम नायक रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख सामंत गोयल हैं, जो 1984 के पंजाब कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं, जो जून 2023 तक चार साल तक इस पद पर रहे। भारत के बाहर के अधिकांश गुप्त ऑपरेशन के लिए उनके नेतृत्व में रॉ को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। नि:संदेह, डोभाल इन एजेंसियों में क्या हो रहा है, उस पर अपनी कड़ी नजर रख रहे थे। भारत विरोधी ताकतों को ‘सुरक्षित पनाहगाहों’ में शरण लेने के लिए पाकिस्तान भागने के लिए मजबूर कर देने में मिली भारी सफलता के बाद सामंत गोयल आराम कर रहे हैं। पाकिस्तान की भाषा बदल गई है और भारत के साथ शांति समझौते के लिए जनता का दबाव बढ़ रहा है।

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