विकास मिश्र का ब्लॉगः ईरान को क्या वाकई तबाह कर देगा अमेरिका?

By विकास मिश्रा | Published: May 14, 2019 07:24 AM2019-05-14T07:24:33+5:302019-05-14T07:24:33+5:30

ईरान को तबाह करने के लिए अमेरिका ने उस पर पाबंदी लगा दी है. पहले भारत सहित कुछ देशों को छूट दी थी लेकिन अब वह भी खत्म हो गई है. ईरान वाकई परेशानी में है लेकिन उसने झुकने से इनकार कर दिया है. उसने कहा है कि यदि संकट नहीं सुलझा तो होरमुज जलसंधि मार्ग को बंद कर देगा.

nuclear weapon: Will Iran really destroy America? | विकास मिश्र का ब्लॉगः ईरान को क्या वाकई तबाह कर देगा अमेरिका?

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अमेरिका और ईरान में तकरार इस कदर बढ़ गई है कि अमेरिका ने एक युद्धपोत तो तैनात कर ही दिया है, यह घोषणा भी कर दी है कि वो मध्य-पूर्व में लड़ाकू विमान और बमवर्षक विमान भेजने जा रहा है. अमेरिका ने इसका कारण ईरान की ओर से हमले की आशंका को बताया है लेकिन अमेरिका की इस बात पर भरोसा करना कठिन है कि ईरान जैसा छोटा सा देश उस पर हमला करेगा. 

आपको याद होगा कि अमेरिका ने इराक पर हमले के पहले रासायनिक हथियारों का हव्वा खड़ा किया था. पूरी दुनिया में उसने हल्ला मचाया कि इराक के पास भारी मात्र में रासायनिक हथियार हैं. इराक को नहीं रोका गया तो दुनिया में अनर्थ हो जाएगा. इस भूमिका के बाद उसने सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने की नीयत से इराक पर हमला बोल दिया था. अब एक बार फिर लग रहा है कि अमेरिका वही कहानी ईरान के साथ दोहराने जा रहा है. उसने ईरान की सेना की एक शाखा इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर को विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया है.  ईरान ने अपनी इस फौज का इस्तेमाल इराक के साथ जंग में भी किया और सीरिया में भी किया है. 

ईरान को तबाह करने के लिए अमेरिका ने उस पर पाबंदी लगा दी है. पहले भारत सहित कुछ देशों को छूट दी थी लेकिन अब वह भी खत्म हो गई है. ईरान वाकई परेशानी में है लेकिन उसने झुकने से इनकार कर दिया है. उसने कहा है कि यदि संकट नहीं सुलझा तो होरमुज जलसंधि मार्ग को बंद कर देगा. अगर ईरान के  तेल के जहाज जलसंधि मार्ग से नहीं जाएंगे तो बाकी देशों के तेल के जहाज भी जलसंधि को पार नहीं कर पाएंगे. जाहिर सी बात है कि इससे अमेरिका बौखला गया है. यदि किसी जहाज पर ईरान ने वाकई हमला कर दिया तो जंग छिड़ सकती है. इसका असर निश्चय ही पूरी दुनिया पर पड़ेगा.

स्वाभाविक सा सवाल है कि अमेरिका और ईरान के बीच इस दुश्मनी का कारण क्या है? यदि आप इतिहास को खंगालें तो पता चलेगा कि इसके लिए पूरी तरह से अमेरिका ही दोषी है. कुछ हद तक ब्रिटेन भी दोषी है. इन दोनों ने मिलकर 1953 में ईरान में प्रधानमंत्नी मोहम्मद मोसादेग का तख्तापलट किया. अमेरिका इस बात से नाराज था कि मोसादेग ने ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण  कर दिया. 

मोसादेग को हटाए जाने का फायदा वहां के शाह रजा पहलवी को मिला. वे अमेरिका के पिट्ठ की तरह थे. ईरान के ज्यादातर लोगों को अमेरिका का यह हस्तक्षेप पसंद नहीं आया और अयातुल्लाह खुमैनी नाम के शख्स को इसी का फायदा मिला. वे इस्लामिक क्रांति के प्रतीक के तौर पर उभरे. हालांकि 1979 में इस्लामिक क्रांति के पहले वे इराक और पेरिस में निर्वासित जीवन जी रहे थे. क्रांति के बाद वे सत्ता में आए. पहलवी ईरान छोड़कर चले गए. ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध समाप्त हो गए. 

इसी बीच एक बड़ी घटना हुई.  ईरानी छात्नों के एक समूह ने अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया. खुमैनी चाहते तो दूतावास में बंधक बनाए गए 52 अमेरिकी नागरिकों को तत्काल छुड़ा सकते थे लेकिन उन्होंने चुप्पी साध ली. यह बंधक प्रकरण 444 दिनों तक चला. छात्र यह मांग कर रहे थे कि शाह रजा पहलवी को अमेरिका वापस सौंपे. उस वक्त शाह न्यूयॉर्क में कैंसर का उपचार करवा रहे थे. 

अमेरिका ने दोस्ती निभाई और शाह को नहीं सौंपा. हालांकि बाद में मिस्र में उनकी मौत हो गई. जब रोनाल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तभी बंधकों की रिहाई संभव हो पाई. 444 दिनों का वह बंधक प्रकरण अभी भी अमेरिका को सालता है. यही कारण है कि अमेरिका किसी भी सूरत में ईरान को या तो तबाह कर देना चाहता है या फिर वह चाहता है कि ईरान में सत्ता उसकी मनमर्जी से चले. दरअसल ईरान पर काबू पाने की चाहत का बड़ा कारण इजराइल और सऊदी अरब भी हैं जो अमेरिका के चहेते हैं और ईरान उन्हें फूटी आंखों नहीं सुहाता है. 

जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो उन्होंने 2015 में यूरोपीय देशों के साथ मिलकर ईरान  से समझौता किया था कि वह परमाणु हथियार नहीं बनाएगा. यह  बड़ी राजनीतिक कामयाबी थी लेकिन सत्ता में आते ही डोनाल्ड ट्रम्प ने इस समझौते को रद्द कर दिया. यहीं से ताजा समस्या शुरू हुई है और यह मामला इतनी आसानी से सुलझने का सवाल ही पैदा नहीं होता. ईरान भी चुपचाप बैठने वाला नहीं है क्योंकि उसके लिए तो यह वजूद का सवाल बन गया है. वह झुकने को तैयार नहीं है. चीन को छोड़ दें तो ज्यादातर देशों ने चुप्पी साध रखी है. अमेरिका का कोई विरोध नहीं कर रहा है. इतना तय है कि यदि जंग हुई तो यह पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित होगा.

Web Title: nuclear weapon: Will Iran really destroy America?

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