अपनी वैचारिक पहचान तलाशने की कोशिश करता नेपाल, शासकों को एक कठोर सबक मिला

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 20, 2025 05:34 IST2025-09-20T05:34:52+5:302025-09-20T05:34:52+5:30

Nepal Protests: पिछले सोलह साल से राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक अपंगता से ध्वस्त नेपाल में संदेश स्पष्ट है : जो सत्तारूढ़ शासक जनता को धोखा देते हैं.

Nepal Protests Nepal tries find its ideological identity rulers learned a harsh lesson blog Prabhu Chawla | अपनी वैचारिक पहचान तलाशने की कोशिश करता नेपाल, शासकों को एक कठोर सबक मिला

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Highlightsलोगों द्वारा हटाए जाते हैं, जिनकी वे अनदेखी करते हैं. वैसे में हिंसा ही परिवर्तन की आवाज बनती है. यह सामूहिक गुस्से का, नेताओं द्वारा छले गए परेशान लोगों का अनुभवहीन और नेतृत्वविहीन विस्फोट था. देश का सत्तारूढ़ गठबंधन इसके दबाव से ढह गया और ओली ने सिर्फ इस्तीफा ही नहीं दिया.

प्रभु चावला

नेपाल के शासकों को एक कठोर सबक मिला है. जब वादे टूटते हैं और लोगों का विश्वास आहत होता है, तब सत्ता बिखर जाती है. सोशल मीडिया की प्रचंड ताकत से लैस नेपाल के युवाओं ने सरकार गिरा दी. नतीजतन केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देकर भागना पड़ा. भ्रष्टाचार, परिवारवाद और नेपाल की आर्थिक बदहाली के बीच राजनीतिक एलीटों द्वारा संपत्ति जमा करने की होड़ से क्षुब्ध इन युवाओं ने अनियंत्रित सत्ता को बेनकाब कर दिया. पिछले सोलह साल से राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक अपंगता से ध्वस्त नेपाल में संदेश स्पष्ट है : जो सत्तारूढ़ शासक जनता को धोखा देते हैं,

वे उन्हीं लोगों द्वारा हटाए जाते हैं, जिनकी वे अनदेखी करते हैं. वैसे में हिंसा ही परिवर्तन की आवाज बनती है. नेपाल की हिंसा को क्रांति नहीं कह सकते. यह सामूहिक गुस्से का, नेताओं द्वारा छले गए परेशान लोगों का अनुभवहीन और नेतृत्वविहीन विस्फोट था. देश का सत्तारूढ़ गठबंधन इसके दबाव से ढह गया और ओली ने सिर्फ इस्तीफा ही नहीं दिया, बल्कि उनके छिप जाने की भी खबरें हैं.

नेपाली युवाओं के गुस्से के हिंसक दृश्य विनाशकारी थे. मंत्रियों को निशाना बनाया गया और सरकारी भवनों को आग के हवाले कर दिया गया. यह अशांति एक गहरी बीमारी के साथ-साथ उस राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अविश्वास का संकेत करती है, जिसने न सिर्फ सोलह साल में चौदह सरकारें दीं, बल्कि दुखद यह भी कि हर सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकार की तुलना में नाकारा साबित हुई.

वर्ष 2008 में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी गणतंत्र के लिए अपने राजतंत्रात्मक अतीत से छुटकारा पाने वाला नेपाल आज अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है. नेपाल के मौजूदा संकट की जड़ें उसके अस्थिर राजनीतिक इतिहास में हैं. वर्ष 2008 में राजशाही को खत्म कर नेपाल ने पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में खुद को एक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी गणतंत्र के रूप में स्थापित किया.

नेपाल में स्थायित्व और प्रगति के नए युग का वादा बहुत आकर्षक था, पर वह छलावा ही साबित हुआ. वर्ष 2008 से आज तक वहां कोई सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है और अंदरूनी प्रतिद्वंद्विता, भ्रष्टाचार और अवसरवादी गठबंधनों के दबाव से गिरती रही है. मौजूदा संकट इन सबका मिला-जुला परिणाम है.

युवाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन की शुरुआत सोशल मीडिया पर सरकारी प्रतिबंध के खिलाफ हुई थी. निरंतर सत्ता संघर्ष और समन्वयकारी एजेंडे के अभाव में शासन व्यवस्था अपंग हो गई है, जिस कारण नेपाल के बाहरी ताकतों से प्रभावित होने की आशंका बहुत बढ़ गई है. इनमें से चीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के हस्तक्षेप के आरोप ज्यादा खतरनाक हैं, जो नेपाल में भारत का असर कम करने के लिए सक्रिय हैं. चीन ने जहां बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिये नेपाल में भारी निवेश किया है,

वहीं पाकिस्तान नेपाल सीमा के जरिये भारत के खिलाफ साजिश रचने में लगा है. आर्थिक रूप से नेपाल भीषण संकट में है. बेरोजगारी की दर वहां 19.2 फीसदी है. राजनेताओं के भव्य रहन-सहन और आम जनों के मुश्किल जीवन के अंतर को ही उन युवाओं ने अपने आंदोलन का आधार बनाया, जो भ्रष्टाचार और परिवारवाद को सारी बुराइयों की जड़ मानते हैं.  

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