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Kabul airport attack: काबुल हमले का संदेश समझे विश्व समुदाय

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 28, 2021 10:13 IST

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अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हुए बम धमाकों ने पूरी दुनिया को कुछ स्पष्ट संदेश दिया है. इस हमले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि आईएस काबुल हवाई अड्डे पर हमला कर सकता है. 

इन्होंने अपने नागरिकों को काबुल हवाई अड्डे पर न जाने के प्रति अलर्ट भी जारी कर दिया. बावजूद इसके हमला कैसे हो गया? अमेरिका और नाटो देशों को यह भी पता था कि पिछले दिनों ही तालिबान ने आईएस के चार आतंकवादियों को पकड़ा था. उनका क्या हुआ, किसी को नहीं पता. संभव है उनका काम तमाम कर दिया गया हो. 

आम खबर ये थी कि काबुल हवाई अड्डे पर जाने के लिए अब कई स्तर की सुरक्षा व्यवस्था की गई है. फिर आत्मघाती बम विस्फोटक और बंदूक लिए आतंकवादी कैसे वहां पहुंच गया? विश्व भर में जो देश आतंकवाद से पीड़ित हैं या आतंकवादियों के रडार पर हैं या जो आतंकवाद का अंत करना चाहते हैं, वे विचार करें कि पूर्व चेतावनी और जानकारी रहते हुए भी बड़े देश अगर उनके खिलाफ पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था नहीं कर सकते तो क्या होगा? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन  ने चेतावनी देते हुए यह तो कह दिया है कि हम माफ नहीं करेंगे, हम नहीं भूलेंगे, हम चुन-चुन कर मारेंगे, आपको इसका अंजाम भुगतना ही होगा. किंतु वे करेंगे क्या, इसके संदर्भ में कोई स्पष्ट संकेत उन्होंने नहीं दिया है. वे यह भी कह रहे हैं कि काबुल हवाई अड्डे पर हुए हमलों में तालिबान और आईएस के बीच मिलीभगत का अब तक कोई सबूत नहीं मिला है. 

इसका मतलब क्या है? उनकी घोषणा यह भी है कि हम अफगानिस्तान में अमेरिकी नागरिकों को बचाएंगे तथा अफगान सहयोगियों को बाहर निकालेंगे और हमारा मिशन जारी रहेगा. अमेरिका पूरी तरह वापसी के निर्णय पर कायम है तथा अभी उसका उद्देश्य केवल अपने नागरिकों तथा सहयोगियों को वहां से बाहर निकालना है. 

उनके बयान का अर्थ यह भी है कि वे तालिबान के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने जा रहे हैं. आईएस-के ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. आईएस-के और तालिबान के बीच हिंसक संघर्ष लंबे समय से चल रहा है. एक समय अलकायदा मुख्य था. 

उसी अलकायदा के अंदर से विद्रोह करके अल बगदादी निकला और उसने आईएस की स्थापना की. धीरे-धीरे अलकायदा कमजोर हुआ और विश्व भर में वैसी मानसिकता के लोग आईएस से जुड़ने लगे. अलकायदा हाशिए पर चला गया, आईएस मुख्य संगठन बना.

आतंकवादी समूहों के बीच व्यापक मतभेद व शत्नुता का इससे बड़ा उदाहरण कुछ नहीं हो सकता. इराक में आतंकवादी समूह ने एक-दूसरे के विरुद्ध भी हमला किया है. अफगानिस्तान तो इनका सबसे भयंकर उदाहरण बना है. 

तालिबान और आईएस एक ओर अमेरिका और नाटो के साथ अफगान सेना के भी विरुद्ध आतंकवादी हमले करते रहे तो एक-दूसरे के विरुद्ध भी. तालिबान ने अपना केंद्रबिंदु अफगानिस्तान को ही बनाया और अमेरिका के साथ समझौता कर लिया. इस कारण आईएस ही नहीं, विश्व भर के अनेक समूह तालिबान के विरुद्ध हैं. 

उनका मानना है कि तालिबान ने ओसामा बिन लादेन और उसके जैसे दूसरे नेताओं के विचारों को तिलांजलि दे दी है. आने वाले समय में अफगानिस्तान में कुछ और समूह भी तालिबान के विरुद्ध हिंसक सक्रियता दिखा सकते हैं. दुर्भाग्य से इस समय अफगानिस्तान में तालिबान के हिंसक आधिपत्य को लेकर विश्व में जिस तरह का मतभेद है वैसा ही मतभेद आतंकवादी समूहों को लेकर भी रहा है. 

रूस खुलेआम तालिबान के साथ काम करने की इच्छा जता रहा है, बातचीत कर रहा है. चीन ने तो उनके प्रतिनिधिमंडल को पहले बीजिंग बुलाया, चीनी प्रतिनिधि मंडल काबुल गया. बड़ी शक्तियों के बीच यही मतभेद आतंकवादी समूहों का हौसला बढ़ाने वाला है. 

सीरिया और इराक में अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों का आपसी मतभेद आईएस के खात्मे में बहुत बड़ी बाधा रहा. हैरत की बात है कि अमेरिका को यह पता है कि सारे आतंकवादी समूह उसके जानी दुश्मन हैं, फिर भी उसने विशेष सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न तो कोई अंतरराष्ट्रीय बैठक बुलाई, न नाटो के देशों के साथ मिलकर प्रबंध ही किया. 

इस हमले के बाद भी जो बाइडेन के नेतृत्व वाला अमेरिकी प्रशासन इस दिशा में कदम उठाना तो छोड़िए विचार करने के लिए भी तैयार नहीं है. हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्नी एंटनी ब्लिंकन का बयान है कि अमेरिका इस दिशा में विचार कर रहा है कि काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए ताकि 31 अगस्त के बाद भी वहां से कोई निकलना चाहे तो सुरक्षित निकल सके, दूसरे देशों के विमानों का आवागमन हो सके. 

लेकिन जब आपके सैनिक वापस ही आ जाएंगे, अफगान सेना ने हथियार डाल दिया है तो यह व्यवस्था किसके जिम्मे होगी? अफगानिस्तान में आंतरिक और आपसी  संघर्ष की यह नए सिरे से  शुरुआत है. आगे इससे भी भीषण संघर्ष देखने को मिलेगा और यह अफगानिस्तान तक सीमित नहीं रह सकता. इसलिए विश्व समुदाय खतरे को समङो तथा नए सिरे से तालिबान और अफगानिस्तान को लेकर अपनी नीति बनाए.

लेखक- अवधेश कुमार

टॅग्स :अफगानिस्तानतालिबानUSAKabul
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