Israeli strikes Gaza: दुनिया ने कई तरह के विभाजनों, संघर्षों और तनावों से गुजरते हुए 2025 में प्रवेश किया है. ये विभाजन और संघर्ष सामान्य नहीं दिख रहे क्योंकि कहीं विचारधाराओं के रूप में हैं तो कहीं क्षेत्रीय हैं और कहीं सभ्यतागत, जो निरंतर तनावों और संघर्षों को बढ़ावा दे रहे हैं. इन्हें आप यूरेशिया में रूस और यूक्रेन युद्ध के रूप में देख सकते हैं जबकि मध्य-पूर्व में इजराइल-हमास से लेकर इजराइल-हिजबुल्ला और अंततः इजराइल-ईरान तनाव और टकराव के रूप में. इन टकरावों को सामान्यतया लघु स्तर के युद्धों के रूप में स्वीकार किया जा सकता है लेकिन इनके प्रभाव विस्तृत हैं.
ये धीरे-धीरे दुनिया को बड़े युद्ध की ओर ले जाते हुए प्रतीत हो रहे हैं. यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि मध्य-पूर्व एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है और रूस-यूक्रेन युद्ध ‘रेड लाइन’ को पार कर ‘न्यू वॉर जोन’ में पहुंचते हुए दिखाई दे रहे हैं. इससे दक्षिण एशिया भी अछूता नहीं है जहां एक तरफ कूटनीतिक संघर्ष की स्थिति है तो दूसरी तरफ आंतरिक संघर्ष जो दक्षिण एशिया को आर्थिक और कूटनीतिक क्षति पहुंचा रहे हैं. एशिया-प्रशांत भी युद्ध की आशंकाओं की चपेट में है जहां दो बड़ी शक्तियां आमने-सामने आ सकती हैं.
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि वर्ष 2025 दुनिया को किस दिशा में ले जाएगा? मध्य-पूर्व पूरे इतिहास में सबसे अधिक संक्रमणशील क्षेत्र रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में ऐतिहासिक शक्तियां निरंतर अपनी चालों के जरिये नये-नये खेल खेलती रही हैं जो अब तक थमे नहीं हैं. वर्ष 2024 ने भी ऐसे कई खेल देखे और जाते-जाते सीरिया में असद शासन को समाप्त होते भी देख लिया.
डेमस्कस में अब विपक्षी मिलिशिया तहरीर अल-शाम काबिज है और राष्ट्रपति बशर अल-असद मॉस्को की शरण में हैं, जहां सूत्रों के अनुसार जहर देने की कोशिश भी हुई है. लेकिन तहरीर अल-शाम का शासन पूरे सीरिया पर नहीं है बल्कि सीरिया विद्रोहियों के लिए टुकड़ों में विभाजित नजर आ रहा है जिसमें से अधिकांश भाग पर अभी भी सीरियाई शासन का नियंत्रण है.
जो विद्रोही गुट सीरिया पर नियंत्रण स्थापित करने में कामयाब हुए हैं, उनमें एकता नजर नहीं आ रही है. जाहिर है कि अभी टकराव का दौर चलेगा. तो क्या यह कहना उचित होगा कि सीरिया की समस्या का अंत नहीं हुआ बल्कि नई शुरुआत हुई है? दक्षिण एशिया भी बढ़ते विभाजनों और टकरावों से पूरी तरह से अछूता नहीं रहा.
आंतरिक संघर्षों की झलक तो मालदीव, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल आदि सभी में दिख रही है लेकिन बांग्लादेश में जो हुआ वह सामान्य आंतरिक संघर्ष की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. सही अर्थों में तो यह तख्तापलट है जिसमें मोहरा तो बांग्लादेशी छात्र रहे लेकिन असल गेम जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी ताकतों और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने खेला.
ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि यदि प्रोटेस्ट केवल छात्रों का ही होता तो परिणाम प्रधानमंत्री शेख हसीना को पदच्युत करने तक ही सीमित होता लेकिन प्रोटेस्टर्स द्वारा बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमाएं तोड़ना, वहां के अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना और अब शेख मुजीबुर्रहमान को फादर ऑफ नेशन के रूप में पाठ्य पुस्तकों से हटाने का षडयंत्र कुछ और संकेत करता है.
तात्पर्य यह हुआ कि बांग्लादेश सरकार और प्रोटेस्टर्स के बीच ‘चेक एंड मेट’ में बांग्लादेश ही हार गया. बहरहाल ये स्थितियां यह इशारा तो कदापि नहीं करतीं कि 2025 को उत्तराधिकार में शांति, सम्पन्नता और विकास मिला है. मिला है तो संघर्षों का अनवरत चलने वाला एक सिलसिला, जिसका अंतिम छोर फिलहाल नजर नहीं आ रहा.