Israel-Hamas War: अरब देश मौखिक समर्थन तो खूब दे रहे हैं लेकिन गाजा के लिए कुछ खास कर नहीं रहे. गाजा में स्थितियां नरक जैसी हैं. इजराइली हमले में गाजा में जो लोग भी मारे जा रहे हैं, वे मुस्लिम हैं लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस्लाम की आवाज बुलंद करने वाले अरब देश गाजा पट्टी के लोगों की चीख सुनने की भी कोशिश नहीं कर रहे हैं. इतना ही नहीं अरब देशों को न चीन के लाखों वीगर मुसलमानों की सिसकी सुनाई दे रही है और न ही अफगानिस्तान की आधी आबादी के क्रंदन को अपने कानों तक पहुंचने दे रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों है?
यदि आप विश्लेषण करेंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि ज्यादातर अरब मुल्कों में राजशाही है और ऐसी सत्ता आम आदमी के हितों को लेकर कभी नहीं चलती है. राजसत्ता को पता है कि चीन के बगैर अब उनका काम नहीं चल सकता. चीन पैसे वाला मुल्क तो है ही, ताकतवर भी बहुत है इसलिए उससे उलझने का ये खतरा मोल नहीं ले सकते. इसलिए वीगर मुसलमानों की फिक्र करने का झंझट कौन मोल ले?
अफगानिस्तान की महिलाओं के हकों की बात करने जाएंगे तो दुनिया इन अरब मुल्कों में महिलाओं की आजादी को लेकर सवाल करने लगेगी. इसलिए बेहतर है कि चुप्पी साध ली जाए. ये दोनों दूर भी हैं इसलिए फिक्र करने का कोई मतलब नहीं है! लेकिन गाजा के साथ ऐसा नहीं है. हालांकि गाजा पट्टी की सीमा केवल मिस्र से मिलती है.
दूसरी सीमा पर इजराइल है जो लगातार हमले कर रहा है. हमले में अभी तक 60 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. लाखों घायल हुए हैं और इनके उपचार की कोई व्यवस्था बची नहीं है. गाजा में अस्पतालों को हमास ने सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की तो इजराइल ने इन अस्पतालों को ही उड़ा दिया.
गाजा में हालात ऐसे हैं कि किस वक्त कहां से बम और मिसाइल आ गिरे और जिंदगी खत्म हो जाए, इसी खौफ में हर पल बीत रहा है. इजराइल पर केवल अमेरिका ही दबाव डाल सकता है लेकिन वह तो उसकी हरसंभव मदद में जुटा हुआ है. बमों से बचने के लिए लोग इधर से उधर भाग रहे हैं. लाखों लोग बेघर हो गए हैं लेकिन इन्हें कोई भी अरब देश आसरा देने को तैयार नहीं है.
गाजा के लोग इतने बेसहारा क्यों हो गए और अरब देश मदद क्यों नहीं कर रहे हैं, इसे समझने के लिए गाजा पट्टी को समझना होगा. 1948 में जब इजराइल का निर्माण हुआ तो गाजा पट्टी वाला इलाका उसके पास नहीं था. करीब बीस साल तक उस इलाके पर मिस्र का शासन था. मगर 1967 में मिस्र, जॉर्डन, लेबनान, इराक और सीरिया सहित अन्य देशों ने इजराइल पर हमला कर दिया.
ये देश इजराइल का वजूद चाहते ही नहीं थे. इस जंग में इजराइल विजय हुआ और उसने दूसरे इलाकों के साथ गाजा पट्टी को भी अपने कब्जे में ले लिया. हमलावर देश देखते रह गए! इसके बाद इजराइल ने करीब 41 किलो मीटर लंबी गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर यहूदी बस्तियां बसाईं.
कोई उसे रोक नहीं पाया मगर 2005 में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दबाव में इजराइल ने अपने लोगों और अपनी सेना को गाजा से वापस बुला लिया. और गाजा का नियंत्रण फिलिस्तीन प्राधिकरण के पास चला गया. ऐसा लगा कि अब स्थितियां सामान्य हो जाएंगी लेकिन वास्तव में स्थितियां तो अब ज्यादा बिगड़ने वाली थीं.फिलिस्तीन में मूल रूप से दो दल सत्ता के दावेदार थे.
इनमें एक फतह था तो दूसरा हमास. ऐसा माना जाता है कि हमास ने हथियारों के बल पर अपने विरोधियों का सफाया किया और 2007 में गाजा इलाके में जीत हासिल की. उसके बाद से गाजा में कोई चुनाव हुआ ही नहीं है. हमास की स्थापना दरअसल 1987 में हुई जब गाजा व वेस्ट बैंक पर इजराइल के कब्जे के खिलाफ विद्रोह चल रहा था.
जिसे आज हम हमास के नाम से जानते हैं, मूल रूप से वह कभी मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा थी. हमास के हमलावर तेवर के कारण अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सहित कई देशों ने उसे आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल रखा है. यहां यह जानना जरूरी है कि गाजा पट्टी को छोड़ कर फिलिस्तीन के दूसरे इलाकों में हमास का कोई प्रभाव नहीं है.
इन इलाकों में फिलिस्तीन अथॉरिटी का शासन है जिसके राष्ट्रपति हैं मोहम्मद अब्बास और वे हमास की लगातार आलोचना करते रहे हैं.हमास के हमलावर तेवर ही वो एक प्रमुख कारण हैं जो अरब देशों को गाजा पट्टी से दूर रखता है. कोई भी देश यह क्यों चाहेगा कि हमास जैसे संगठन को उसके घर में फलने-फूलने का मौका मिले?
यदि अरब देश शरणार्थियों को अपने यहां शरण देते हैं तो हो सकता है कि उनमें हमास के लोग भी शामिल हों जो बाद में संकट पैदा करें! यहां यह जानना भी जरूरी है कि उस इलाके में ईरान को छोड़कर अमूमन सभी अरब देश सुन्नी हैं. कमाल की बात यह है कि ईरान शिया बहुल होते हुए भी सुन्नी बहुल हमास का असली मददगार और मास्टर माइंड बना हुआ है.
हमास को सारे हथियार ईरान से मिलते हैं. हो सकता है कि ईरान अपने दुश्मन देशों को परेशान करने के लिए हमास का उपयोग भविष्य में करे. ये सब ऐसे फैक्टर हैं जो अरब देशों को गाजा पट्टी को सहारा देने से रोकते हैं. एक और बड़ा कारण यह है कि अरब देश हर हाल में अमेरिका से दोस्ती बनाए रखना चाहते हैं.
यदि वे गाजा पट्टी की सहायता में खड़े होंगे तो संभव है कि अमेरिका नाराज हो जाए. आपको याद होगा कि आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन की पिछली बैठक में अल्जीरिया एक प्रस्ताव लेकर आया था कि अरब देश इजराइल के साथ सारे संबंध तोड़ लें, हवाई क्षेत्र प्रतिबंधित कर दें मगर उस प्रस्ताव को जिन देशों ने पारित नहीं होने दिया उनमें सऊदी अरब और यूएई के साथ वह जॉर्डन भी शामिल था जहां फिलिस्तीनियों की बड़ी आबादी रहती है. पिछले सप्ताह की ही एक घटना बताता हूं.
मिस्र के एक नागरिक ने एक अरब देश में फिलिस्तीन का झंडा लहराया तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया. सत्ता को पता है कि आज एक झंडा उठा है, कल और झंडे उठेंंगे और हो सकता है कि कल को राजशाही के खिलाफ भी ढेर सारे झंडे उठ जाएं! इसलिए ऐसे किसी पचड़े में पड़ना ही नहीं! सब सत्ता का खेल है हुजूर!