क्या फिर सैन्य शासन की ओर बढ़ रहा पाकिस्तान ?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 20, 2025 07:24 IST2025-08-20T07:23:41+5:302025-08-20T07:24:45+5:30

हालांकि 2008 के बाद सेना वहां सीधे सत्ता में नहीं है लेकिन सरकार उसी की होती है.

Is Pakistan heading towards military rule again | क्या फिर सैन्य शासन की ओर बढ़ रहा पाकिस्तान ?

क्या फिर सैन्य शासन की ओर बढ़ रहा पाकिस्तान ?

पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष और खुद को फील्ड मार्शल घोषित करवा चुके आसिम मुनीर के एक वक्तव्य ने प्रबुद्ध पाकिस्तानियों के कान खड़े कर दिए हैं. दरअसल एक पाकिस्तानी पत्रकार से बातचीत करते हुए मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान के लिए उनके पास एक बेहतरीन आर्थिक रोड मैप है और पाकिस्तान उस रास्ते पर चल कर बहुत तरक्की करेगा.

निश्चित रूप से किसी राजनेता ने यह वक्तव्य दिया होता तो पाकिस्तानियों को खुशी होती लेकिन एक सेना अध्यक्ष के मुंह से ऐसी बात निकलने से यह शंका जन्म लेगी ही कि क्या ये बंदा सत्ता संचालित करने के बारे में सोच रहा है? इस तरह की बात पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के मुंह से आनी चाहिए थी न कि किसी सेना अध्यक्ष के मुंह से! मुनीर उस पत्रकार से ऐसे बात कर रहे थे जैसे कि वे ही पाकिस्तान के असली नेतृत्वकर्ता हों! वैसे यह बात सही भी है कि पाकिस्तान में सरकार किसी भी पार्टी की हो, उसका कोई वजूद नहीं होता.

वहां असली सत्ता हमेशा ही सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथों में होती है. पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के कुछ ही दिनों बाद सेना ने एक तरह से सत्ता का अपहरण कर लिया. तब से लेकर आज तक सत्ता उनके कब्जे में है. यदि किसी नेता ने सत्ता को छुड़ाने की कोशिश की तो उसका हश्र क्या हुआ, यह किसी से छिपा नहीं है.

पाकिस्तान का जन्म जिन परिस्थितियों में हुआ उसने सेना को यह मौका दे दिया कि वह खुद को पाकिस्तानियों की नजर में हीरो साबित करने के लिए षड्यंत्र रचे. 1947-48 में कबाइलियों के रूप में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला किया. भारत जब तक हस्तक्षेप करता तब तक कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान लूट चुका था. उस हिस्से को हम पाक अधिकृत कश्मीर के रूप में जानते हैं.

इससे पाकिस्तानी सेना के प्रति पाकिस्तानियों में विश्वास बढ़ा. 1951 में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या के बाद राजनीतिक नेतृत्व कमजोर हुआ और इसका फायदा सेना को मिला. राजनीतिक अस्थिरता के बीच 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इसकंदर मिर्जा ने प्रधानमंत्री फिरोज खान नून को सत्ता से हटाते हुए संसद को भी भंग कर दिया और जनरल अयूब खान को सत्ता सौंप दी.

कमाल देखिए कि केवल तेरह दिन बाद ही अयूब खान ने मिर्जा का तख्ता पलट दिया. इसके साथ ही सैन्य शासन का युग शुरू हो गया. बाद में लोकतांत्रिक सरकारें लौटीं लेकिन वे केवल नाम के लिए ही लोकतांत्रिक थीं. फिर जनरल जिया उल हक और जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी तख्तापलट किया. इन वर्षों में सेना ने खुद को आर्थिक रूप से भी मजबूत किया.

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तानी सेना 50 से अधिक कंपनियों की मालिक है और उसका साम्राज्य रीयल एस्टेट से लेकर बैंकिंग, सीमेंट उद्योग और पेट्रोल पंप के रूप में न केवल पाकिस्तान बल्कि विदेशों में भी फैला है. जरा सोचिए कि ऐसी स्थिति में वहां की सेना सत्ता में न रहे तो उसके हित कैसे सधेंगे? हालांकि 2008 के बाद सेना वहां सीधे सत्ता में नहीं है लेकिन सरकार उसी की होती है.

2018 में इमरान खान भी सेना के समर्थन से ही सत्ता में आए थे. फिर सेना से लड़ने की जुर्रत कर बैठे तो आज जेल में हैं. पिछले साल के चुनाव भी सेना की छत्रछाया में हुए इसलिए शहबाज की कोई कीमत नहीं है. मगर जिस तरह से मुनीर ने खुद को फील्ड मार्शल घोषित कराया और जो भाषा वे बोल रहे हैं, उससे यह आशंका बढ़ गई है कि कहीं वे पाकिस्तान के अगले तानाशाह तो नहीं बनने जा रहे हैं?

Web Title: Is Pakistan heading towards military rule again

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