लघु भारत गुयाना में भारतवंशी राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली
By विवेक शुक्ला | Updated: September 9, 2025 05:21 IST2025-09-09T05:21:24+5:302025-09-09T05:21:24+5:30
गुयाना की आर्थिक प्रगति और तेल संसाधनों के प्रबंधन की दिशा में एक नया अध्याय खोलेगी, बल्कि भारत और गुयाना के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंधों को भी नई ऊर्जा प्रदान करेगी.

file photo
धाराप्रवाह भोजपुरी बोलने वाले मोहम्मद इरफान अली भारत से हजारों किलोमीटर दूर दक्षिण अमेरिका के टापू देश गुयाना के रविवार को फिर से राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. गुयाना को लघु भारत भी कहते हैं. पिछले 1 सितंबर को हुए आम चुनावों में इरफान अली की पार्टी पीपुल्स प्रोग्रेसिव पार्टी/सिविक (पीपीपी/सी) ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी. यह जीत न केवल गुयाना की आर्थिक प्रगति और तेल संसाधनों के प्रबंधन की दिशा में एक नया अध्याय खोलेगी, बल्कि भारत और गुयाना के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंधों को भी नई ऊर्जा प्रदान करेगी.
इरफान अली ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पुरखे उत्तर प्रदेश के बस्ती से गिरमिटिया मजदूर के रूप में गुयाना गए थे. गुयाना का इतिहास रहा है कि यहां पर मतदान के समय भारतवंशी मुख्य रूप से (पीपीपी/सी) को और अफ्रीकी-गुयाना मूल की जनता पीपल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) के हक में ही वोट देते हैं. वैसे पीएनसी में डोनाल्ड रामोतार जैसे भारतवंशी नेता भी हैं.
एक बात की निशानदेही करना जरूरी है कि गुयाना में अब भारतवंशी राजनीतिक रूप से बिखर गए हैं. वे पहले एक दल विशेष के साथ ही खड़े होते थे. इसके चलते वहां पर भारतवंशी बेहतर स्थिति में थे. इस बार भी भारतवंशियों के वोट बिखरे हैं. इरफान अली के फिर से देश का राष्ट्रपति बनने के बावजूद गुयाना के भारतवंशियों को एकजुट होना होगा.
गुयाना की आबादी में भारतीय मूल के लोगों की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है. इनके पुरखे गिरमिटिया मजदूर के रूप में यहां आए थे. कह सकते हैं कि इरफान अली उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी शुरुआत गुयाना के शिखर भारतवंशी नेता छेदी जगन ने की थी. वे 1961 में गुयाना के प्रधानमंत्री चुने गए. उनसे पहले कोई भारतवंशी भारत से बाहर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बना था.
ब्रिटिश सरकार 1817 से लेकर 1920 तक गुयाना के गन्ने के खेतों में मजदूरी कराने के लिए भारत से मजदूरों को लेकर आई थी. आज के गुयाना में ज्यादातर भारतीय, अफ्रीकी और कुछ चीनी मूल के लोग हैं. तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मारीशस, सूरीनाम, फीजी, गुयाना और त्रिनिडाड एवं टौबेगो को लघु भारत कहती थीं, क्योंकि इन सब देशों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारतवंशियों का है.
छोटा होने के बावजूद गुयाना पर सारी दुनिया की नजरें रहती हैं. इसका कारण यह है कि इधर कच्चे तेल के अकूत भंडार मिले हैं. ब्रिटिश राज से मई 1966 में गुयाना आजाद हो गया था. उसके बाद से भारत और गुयाना के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण रहे हैं. बात उस गुयाना की भी जान लें जहां से भारतीय मूल के महान क्रिकेटर जैसे रोहन कन्हाई, एल्विन कालीचरण और शिवनारायण चंद्रपाल वगैरह खेले. ये तीनों वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे हैं.