India Bangladesh Relationship: कुछ समय पूर्व भारत के साथ प्रगाढ़ संबंध वाले बांग्लादेश में हाल में शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट और यूनुस सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से वहां भारत विरोधी तौर-तरीकों, विशेष तौर पर हिंदू अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के चलते संबंध लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. भारत वहां अल्पसंख्यकों, विशेषतौर पर हिंदू अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर लगातार चिंता जता रहा है. भारत-बांग्लादेश अनेक मर्तबा उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरते रहे हैं लेकिन कुल-मिलाकर रिश्ते दोस्ताना ही रहे.
हाल के कुछ वर्षों में, विशेष तौर पर शेख हसीना के कार्यकाल के समय दोनों देशों के संबंधों को नई गति मिली, विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ा. लेकिन गत अगस्त में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के बनने के बाद भारत-बांग्लादेश के संबंधों में कड़वाहट शुरू हुई और पिछले दिनों वहां हिंदू अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, उन के घरों, मंदिरों पर बढ़ते हमलों और आगजनी की घटनाओं के बीच हाल ही में वहां इस्कॉन के प्रमुख नेता चिन्मय कृष्णदास की गिरफ्तारी के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी काफी बढ़ गई है.
आखिर भारत के बेहद करीबी रहे बांग्लादेश के साथ रिश्ते कब फिर से उसी मुकाम पर पहुंचेंगे, रिश्तों में ये तल्खियां कब खत्म होंगी? लगता तो यही है कि जब तक वहां चुनाव नहीं होते तब तक संबंध सामान्य नहीं होंगे. भारत और बांग्लादेश चार हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी सीमा साझा करते हैं और दोनों के बीच गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते हैं. बांग्लादेश की सीमा भारत और म्यांमार से लगती है लेकिन उसकी 94 प्रतिशत सीमा भारत से लगती है. बीते कुछ सालों में बांग्लादेश भारत के लिए एक बड़ा बाजार बनकर उभरा है.
दक्षिण एशिया में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. बहरहाल बेहद तनावपूर्ण आंतरिक असंतोष से गुजर रहे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का जिस तरह से उत्पीड़न किया जा रहा है, उससे न केवल भारत बल्कि इंग्लैंड ने भी कूटनीतिक स्तर पर गहरी चिंता जताई है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि न केवल यूनुस सरकार बल्कि वहां आम चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार दोनों देशों की जनता के बीच अपनेपन से भरे गहरे भावनात्मक, सामाजिक रिश्तों के साथ द्विपक्षीय सहयोग की महत्ता समझेगी. देखना होगा कि चुनावों तक क्या रिश्तों में तल्खियां यूं ही जारी रहेंगी और फिर चुनावों के बाद नई सरकार भारत के साथ सकारात्मक सोच के साथ कैसे रिश्ते रखती है.