अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता की जिद से ईरान और इजराइल के बीच 12 दिनों से चल रहा भीषण युद्ध फिलहाल तो रुक गया है लेकिन संघर्ष विराम और संबद्ध मुद्दे को लेकर अनेक सवाल अनुत्तरित हैं. क्या यह युद्धविराम जारी रहेगा, इस युद्ध से ईरान का परमाणु कार्यक्रम कितना प्रभावित हुआ, आखिर इस संघर्ष से ईरान और इजराइल दोनों को ही क्या हासिल हुआ और दोनों ही देश अपनी-अपनी जीत का दावा करते हुए जश्न कैसे मना रहे हैं? ईरान संघर्ष विराम के बाद भी दावा कर रहा है कि वह अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखेगा और ईजराइल ने कहा है कि वह इस बात पर जोर देता रहेगा कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो. हालांकि इजराइल के खास मित्र अमेरिका का कहना है कि वह ईरान में सत्ता परिवर्तन नहीं अपितु उसका परमाणु कार्यक्रम बंद करवाना चाहता है.
निश्चित तौर पर युद्धविराम अनिश्चितता के घेरे में है. वैसे नवीनतम घटनाक्रम के अनुसार अमेरिका अगले सप्ताह ईरान के साथ परमाणु वार्ता कर सकता है. नेतन्याहू भले जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन पेंटागन की शुरुआती खुफिया रिपोर्ट और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों से ईरान का परमाणु कार्यक्रम ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है.
हालांकि ट्रम्प ने इसे खारिज किया है. कुछ विशेषज्ञों का भी मानना है कि 12 दिनों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गहरा झटका लगा है. वैसे अहम बात यह है कि एक तरफ जहां अमेरिका, इजराइल सहित अनेक देश ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम को बंद करने के लिए दबाव बना रहे हैं, वहीं इजराइल परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर न करके परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन चुका है.
बहरहाल, परमाणु बम पूरी दुनिया के अस्तित्व के लिए विनाशकारी हैं. निरस्त्रीकरण पूरी दुनिया के लिए हो और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर सभी देशों पर समान रूप से रोक लगना जरूरी है. एक पूर्व राजदूत के अनुसार इजराइल का पहला लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से नष्ट करना था लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने में वह पूरी तरह से कामयाब नहीं रहा.
अभी तक कोई भी रेडियो एक्टिविटी नहीं मिली है. इजराइल को इस बात का अंदाजा नहीं था कि ईरान की तरफ से इतना कामयाब हमला हो पाएगा. ऐसे में 12वां दिन आते-आते इजराइल को भी लगने लगा कि सीजफायर हो जाए तो ज्यादा अच्छा है. वैसे इस युद्ध के दोनों देशों की घरेलू राजनीति पर प्रभाव दिखने शुरू हो गए हैं,
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर अपने देश में भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अनियमाताओं के आरोप लगने की वजह से उनका जनाधार लगातार कम होता जा रहा था. देश के मौजूदा माहौल में अपनी साख बेहतर होती देख वे वहां मध्यावधि चुनाव निर्धारित अवधि से एक वर्ष पूर्व ही कराने की सोच रहे हैं. बहरहाल, इस युद्ध में कौन जीता, सवाल यह नहीं है. मुद्दा यह है कि हासिल क्या हुआ. उम्मीद की जानी चाहिए कि संघर्षरत दोनों पक्ष विवाद सुलझाने के लिए डिप्लोमेसी के मूल मंत्र ‘बातचीत’ का रास्ता अपनाएंगे.