फिलिस्तीन में कब तक जारी रहेगी बर्बरता?, अलग-थलग पड़ते जा रहे इजराइल-अमेरिका

By राजेश बादल | Updated: September 25, 2025 05:20 IST2025-09-25T05:20:17+5:302025-09-25T05:20:17+5:30

ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने तो साफ-साफ कहा है कि ब्रिटेन फिलिस्तीनियों और इजराइलियों के बीच शांति और द्वि-राष्ट्र समाधान को पुनर्जीवित करने के लिए फिलिस्तीन को मान्यता दे रहा है.

How long will barbarism continue Palestine Israel and America are becoming isolated blog rajesh badal | फिलिस्तीन में कब तक जारी रहेगी बर्बरता?, अलग-थलग पड़ते जा रहे इजराइल-अमेरिका

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Highlightsब्रिटेन एकदम खुलकर फिलिस्तीन के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है.1947 से पहले बरतानवी हुकूमत गुलाम भारतीयों के ऊपर करती थी. फिलिस्तीन का गाजा क्षेत्र भीषण अकाल की चपेट में है.

इटली जल रहा है. फिलिस्तीन को समर्थन देने की मांग के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर आए हैं. वहां की बहुसंख्यक आबादी फिलिस्तीन को मान्यता देने के पक्ष में है. इन लोगों का सवाल है कि जब ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे 150 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं तो इटली को क्यों हिचक हो रही है? वे कहते हैं कि फिलिस्तीन को अपना नैतिक और राजनीतिक सहयोग नहीं देने का अर्थ मध्य युग की सामंती बर्बरता को स्वीकार करना है. इटली के साथ केवल जर्मनी खड़ा नजर आ रहा है. मगर ब्रिटेन एकदम खुलकर फिलिस्तीन के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है.

ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने तो साफ-साफ कहा है कि ब्रिटेन फिलिस्तीनियों और इजराइलियों के बीच शांति और द्वि-राष्ट्र समाधान को पुनर्जीवित करने के लिए फिलिस्तीन को मान्यता दे रहा है. यह स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि इजराइल फिलिस्तीनियों पर वैसे ही जुल्म कर रहा है, जैसे 1947 से पहले बरतानवी हुकूमत गुलाम भारतीयों के ऊपर करती थी.

संयुक्त राष्ट्र की ओर से माना गया है कि फिलिस्तीन का गाजा क्षेत्र भीषण अकाल की चपेट में है और इजराइल वहां अरसे से क्रूर नरसंहार कर रहा है. दो साल में इजराइल ने फिलिस्तीन के 65000 निर्दोष लोग मार डाले हैं. कह सकते हैं कि बीते दशकों में इजराइल ने अजगर की तरह फिलिस्तीन का इलाका निगला है और फिलिस्तीन अपने स्वतंत्र अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रहा है.

आंकड़े कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में से 150 राष्ट्र फिलिस्तीन को अलग देश बनाए जाने के पक्ष में हैं.  डेढ़ सौ देश एक तरफ और फैसला करने वाले केवल पंद्रह देश. पांच वीटो पावर वाले सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और शेष अस्थायी सदस्य हैं. इन पंद्रह मुल्कों को फैसला करना है कि संयुक्त राष्ट्र अनुच्छेद-4 के तहत एक नए देश के रूप में फिलिस्तीन को मान्यता दे अथवा नहीं.

अब दो ही सूरतों में फिलिस्तीन अलग देश बन सकता है. एक यह कि पंद्रह में से 9 देश फिलिस्तीन को अलग देश के रूप में मंजूर करें और दूसरा यह कि स्थायी पांच देशों में से कोई वीटो का इस्तेमाल नहीं करे. हालांकि यह शायद ही कभी संभव होगा. आपको याद होगा कि पिछली बार सुरक्षा परिषद में जब प्रस्ताव आया था तो अमेरिका ने इजराइल से गहरी दोस्ती के चलते ताबड़तोड़ वीटो कर दिया था.

संदर्भ के तौर पर यह भी ध्यान में होना चाहिए कि 1948 में जब इजराइल अस्तित्व में आया था तो अमेरिका ने सिर्फ 9 मिनट में उसे मान्यता दी थी. इससे पहले 1947 में जब फिलिस्तीन का विभाजन हुआ था और इजराइल टूट कर अलग यहूदी देश बना था तो भारत ने संयुक्त राष्ट्र में सबसे पहले विरोध किया था. उसके बाद से यही इजराइल फिलिस्तीन पर कब्जा करने की कोशिशें करता रहा है.

भारत ने तो आधी सदी पहले 1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को और 1988 में फिलिस्तीन देश को मान्यता दे दी थी. वैसे तो भारत ने 1950 में इजराइल को मान्यता दे दी थी, लेकिन 1992 तक उसके इजराइल के साथ कोई कूटनीतिक या राजनयिक रिश्ते नहीं थे. जहां तक भारत और फिलिस्तीन के आपसी संबंधों की बात है तो यह मुद्दा भारतीयों के लिए भावनात्मक भी है.

फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले गैर अरब देशों में भारत पहला देश था. मार्च 1980 में इस अभागे मुल्क के साथ भारत ने पूर्ण राजनयिक रिश्ते शुरू किए थे.  हालांकि इससे पांच बरस पहले 1975 में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने राजधानी दिल्ली में एक पूर्णकालिक कार्यालय प्रारंभ किया था. यह संगठन 1964 में शुरू किया गया था.

संस्था के अध्यक्ष यासिर अराफात भारत को अपना दूसरा घर मानते थे और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी बड़ी बहन का मान देते थे. एक रोचक किस्सा है.  जब मार्च 1983 में वे गुट निरपेक्ष सम्मेलन में भारत आए तो जॉर्डन के शाह का भाषण उनसे पहले हो गया. इससे यासिर खफा हो गए और उन्होंने सम्मेलन के बहिष्कार का फैसला किया.

वे विमानतल जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि इंदिरा गांधी और फिदेल कास्त्रो वहां पहुंच गए.  कास्त्रो ने कहा कि तुम इंदिरा के दोस्त हो और उसी को नीचा दिखाना चाहते हो. यासिर ने कहा कि इंदिरा उनकी बड़ी बहन हैं, दोस्त नहीं. इसके बाद उन्होंने स्वदेश लौटने का कार्यक्रम रद्द कर दिया.  इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने आए थे और उन्हें फूट-फूट कर रोते हुए देखा गया था.

वे ऐसे शख्स थे, जिन्होंने राष्ट्राध्यक्ष नहीं होते हुए भी संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था. उन दिनों फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन(पीएलओ) को अमेरिका समर्थक लॉबी आतंकवादी संगठन मानती थी. लेकिन भारत ने कभी अपने खुले समर्थन से परहेज नहीं किया. फिलिस्तीन के साथ हिंदुस्तानी संबंधों का अतीत आजादी से भी पहले का है.

सन्‌ 1938 में महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘फिलिस्तीन का अरबों से वैसा ही संबंध है जैसा इंग्लैंड का अंग्रेजी से या फ्रांस का फ्रेंच से. भारतीयों के कष्ट भी फिलिस्तीनियों के दुखों से अलग नहीं है.’’ पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गुलामी के दिनों में जेल से अपनी बेटी इंदिरा गांधी को अनेक खत लिखे थे.

एक पत्र में उन्होंने लिखा था कि भारत की साम्प्रदायिक समस्या और फिलिस्तीन की समस्या अलग नहीं हैं. इसीलिए भारत ने अपनी विदेश नीति में सदैव फिलिस्तीन का समर्थन किया है. भारत ने 1996 में गाजा में अपना कार्यालय खोला था, जिसे 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया.

यासिर अराफात गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन में शिरकत करने भारत आए थे. उसके बाद से आज तक भारत के फिलिस्तीन से संबंध मधुर रहे हैं. कुल मिलाकर इन दिनों अखिल विश्व फिलिस्तीन के साथ खड़ा है और इजराइल-अमेरिका अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं.    

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