साक्षात्कारः राजा चार्ल्स के सामने कैसी हैं चुनौतियां, भारत में अंग्रेजों की विरासत से निजात पाने...पूर्व राजनयिक नटवर सिंह से विशेष बातचीत यहां पढ़ें

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 14, 2022 08:55 AM2022-09-14T08:55:49+5:302022-09-14T08:55:49+5:30

केंद्रीय मंत्री रहे पूर्व राजनयिक नटवर सिंह ने बताया कि प्रिंस चार्ल्स 5-6 बार भारत आए। भारत से उनका विशेष लगाव था। उनकी पहली यात्रा 1975 में हुई। तब उनके चाचा और भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन उनके साथ थे। यहां पर बहुत सी वार्ताओं और समारोह में भाग लिया था। पोलो का मैच भी खेला था। लेकिन वे लॉर्ड माउंटबेटन की हिदायतों से परेशान थे।

exclusive Interview former diplomat Natwar Singh there are bigger challenges in front of King Charles | साक्षात्कारः राजा चार्ल्स के सामने कैसी हैं चुनौतियां, भारत में अंग्रेजों की विरासत से निजात पाने...पूर्व राजनयिक नटवर सिंह से विशेष बातचीत यहां पढ़ें

साक्षात्कारः राजा चार्ल्स के सामने कैसी हैं चुनौतियां, भारत में अंग्रेजों की विरासत से निजात पाने...पूर्व राजनयिक नटवर सिंह से विशेष बातचीत यहां पढ़ें

Highlightsक्वीन एलिजाबेथ तीन बार भारत आईं - 1961, 1981 और 1983 में। प्रिंस चार्ल्स भी 5-6 बार भारत आए, भारत से उनका विशेष लगाव था।

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मृत्यु के बाद चार्ल्स फिलिप आर्थर जॉर्ज अब ब्रिटेन के राजा बन चुके हैं। कैसे थे महारानी और उनके भारत के साथ रिश्ते और किन चुनौतियों का सामना उन्हें करना पड़ेगा, इस बारे में लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता ने बात की केंद्रीय मंत्री रहे पूर्व राजनयिक नटवर सिंह से। मुख्य अंश...

क्वीन एलिजाबेथ के भारत के साथ कैसे संबंध रहे?
वे तीन बार भारत आईं - 1961, 1981 और 1983 में। उनकी आखिरी दोनों यात्राओं को मैंने बहुत करीब से देखा। 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुझे कॉमनवेल्थ देशों के सम्मेलन का मुख्य कोऑर्डिनेटर बना दिया था। इस सम्मेलन का उद्घाटन महारानी ने ही किया था। मैं लगातार उनके साथ रहा।

क्या इस दौरान कोई यादगार घटना हुई?
महारानी तब मदर टेरेसा को राष्ट्रपति भवन में एक इन्वेस्टिचर समारोह आयोजित कर ब्रिटेन का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ मेरिट देना चाहती थीं। हेमवती नंदन बहुगुणा ने इंदिराजी को पत्र लिखकर इसका विरोध किया। उनका कहना था यह समारोह केवल राष्ट्रपति ही आयोजित कर सकते हैं। इंदिराजी ने गंभीरता समझ इसका जिम्मा मुझे दिया। मैंने महारानी को बताया कि यह समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित नहीं हो सकता। उन्होंने कहा सभी निमंत्रण पत्र जा चुके हैं, मीडिया को सूचित किया जा चुका है। अब यह नहीं रुक सकता। मैंने इंदिराजी से परामर्श किया। उनकी ओर से मैंने एक बार फिर उन्हें सूचित किया कि समारोह तो आयोजित हो जाएगा लेकिन विपक्ष इस बारे में चर्चा भारत की संसद में करेगा। वे भी समझ गईं। नहीं चाहती थीं कि उनका नाम भारत की संसद में उछले। समारोह रद्द कर दिया गया। लेकिन भारत से विदा लेने से पहले उन्होंने मुझे एक तोहफा दिया जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है।

और प्रिंस चार्ल्स?
वे भी 5-6 बार भारत आए। भारत से उनका विशेष लगाव था। उनकी पहली यात्रा 1975 में हुई। तब उनके चाचा और भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन उनके साथ थे। यहां पर बहुत सी वार्ताओं और समारोह में भाग लिया था। पोलो का मैच भी खेला था। लेकिन वे लॉर्ड माउंटबेटन की हिदायतों से परेशान थे। कभी उन्हें कपड़ों को लेकर टोकते थे तो कभी किसी और बात पर। चलते समय हवाई अड्डे पर जब मैंने उन्हें दोबारा भारत आने का निमंत्रण दिया तो प्रिंस चार्ल्स ने धीमे से कहा, मैं आऊंगा अवश्य लेकिन बगैर माउंटबेटन के। मैंने मुस्कुराकर कहा कि सर यह फैसला तो आप ही करेंगे।

बतौर राजा चार्ल्स के सामने क्या चुनौतियां होंगी?
बतौर युवराज उन्होंने 73 सालों तक महारानी की कार्यशैली को बहुत करीब से देखा है। 2022 की दुनिया 1952 से बहुत अलग है। उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्य में बहुत से उपनिवेश थे। अब एक भी नहीं है। उनके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है। इसलिए भी कि ब्रिटेन में प्रधानमंत्री भी एकदम नई हैं। पदभार ग्रहण किए उन्हें अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ है।

उन पर किस तरह की जिम्मेदारियां होंगी?
भले ही अब ब्रिटेन का वैसा रौबदाब न हो लेकिन फिर भी दुनिया के राजनीतिक मानचित्र में उसका एक अहम स्थान है। कॉमनवेल्थ में 54 देश हैं। उन्हें सभी राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात करना और संवाद कायम करना होगा। साथ ही यूरोप के राष्ट्राध्यक्षों से भी मिलना होगा। अमेरिका से संबंध बनाए रखने के प्रयास करने होंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हर सप्ताह उनसे मिलने आते हैं। उन्हें देश की प्रगति के बारे में सूचित करते हैं। उसकी तैयारी उनको करनी होगी।

क्या ब्रिटेन के राजा नाममात्र के राष्ट्राध्यक्ष नहीं हैं?
कोई भी राष्ट्राध्यक्ष जो ब्रिटेन आता है वह राजा से मुलाकात करता ही है। उसके लिए तैयारी करनी ही पड़ती है कि वह क्या कहेगा और उन्हें उसका क्या उत्तर देना होगा। खुद भी अपने देश में या बाहर दौरे पर जाते हैं तो उसकी तैयारी करनी पड़ती है। देश के संवैधानिक प्रमुख होने के कारण सरकार द्वारा बहुत से कागज रोज उनके पास भेजे जाते हैं जिन पर उनके हस्ताक्षर जरूरी होते हैं।

भारत में आजादी से पहले के ब्रिटिश राज के खिलाफ जैसा माहौल बन रहा है, वह राजा चार्ल्स के लिए कैसा होगा?
देखिए किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति इंडिया गेट से तो 1957 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही हटवाई थी। तब से यह जगह खाली थी। आज वहां सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाई गई है। मेरे बस में होता तो मैं वहां महात्मा गांधी की मूर्ति लगाता। सड़कों के नाम भी बदले जा रहे हैं।

क्या वह गुलामी की मानसिकता दूर करने में सहायक होंगे?
सबसे पहले तो अंग्रेजों की विरासत अंग्रेजी से निजात पानी होगी। जब तक आप सारा काम अंग्रेजी में कर रहे हैं तब तक आप गुलामी की मानसिकता से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? चीन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन जैसे बहुत से राष्ट्र अपनी भाषा में सारा काम करते हैं तो भारत में अंग्रेजी को सर्वोच्च दर्जा क्यों प्राप्त है? सबसे पहले गुलामी की मानसिकता के प्रतीक राष्ट्रपति भवन को तोड़ा जाना चाहिए जहां से अंग्रेज वायसराय भारत पर राज करते थे। फिर नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक को। अगर राजपथ का नाम इसलिए बदला गया है क्योंकि उसका पहले नाम किंग्सवे था तो तार्किक रूप से अगला नंबर जनपथ का है क्योंकि उसका पहले नाम क्वींसवे था।

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