हम प्रायः यह मानकर चलते हैं कि पृथ्वी के संकट सीमाओं में बंधे रहते हैं, जैसे अफ्रीका का ज्वालामुखी अफ्रीका की समस्या, एशिया की हवा एशिया का प्रश्न और भारत का प्रदूषण भारत की नियति. परंतु अफ्रीका के उत्तरी पूर्वी देश इथियोपिया में हैली गुब्बी ज्वालामुखी के अचानक हुए अप्रत्याशित विस्फोट ने इस धारणा को बदल दिया.
इथियोपिया में ज्वालामुखी के चलते उत्तर भारत का धुंधला हुआ आसमान केवल एक वैज्ञानिक घटना नहीं थी बल्कि यह पर्यावरण और नीति-निर्माण के प्रति हमारे सामूहिक आत्मसंतोष पर प्रकृति का प्रहार था. यह पृथ्वी का स्पष्ट संदेश है कि यदि हम वैश्विक खतरों को स्थानीय चश्मे से देखते रहेंगे तो हम केवल पीछे ही रहेंगे, हारेंगे भी और चेतावनी मिलने पर भी जागेंगे नहीं.
23 नवंबर को इथियोपिया के अफार क्षेत्र में स्थित हैली गुब्बी ज्वालामुखी करीब बारह हजार वर्षों की नींद के बाद अचानक फटा. यह विस्फोट केवल अफ्रीका की घाटियों को नहीं हिला रहा था, यह पूरी दुनिया को यह बताने आया था कि पृथ्वी अभी भी गतिशील है और जितना हम उसे समझ चुके हैं, वह उससे कहीं अधिक अनिश्चित, विशाल और परस्पर-निबद्ध है.
दिल्ली, जो पहले ही गंभीर प्रदूषण से जूझ रही है, इस राख-आच्छादित आसमान के नीचे एक बार फिर यह साबित कर रही थी कि यह शहर कितना नाजुक और ‘सैचुरेटेड’ हो चुका है. हवा इतनी बोझिल है कि उसमें कोई भी बाहरी कण, चाहे वह इथियोपिया का हो या थार के रेगिस्तान का, स्थानीय प्रदूषण को तुरंत विकृत कर देता है. यह वह हवा है, जो अपने ही कचरे में डूबी हुई है और ऊपर से यदि वैश्विक कण भी उतर आएं तो उसका संतुलन तुरंत टूट जाता है. इस घटना का सबसे जोखिमपूर्ण पहलू उड्डयन क्षेत्र में सामने आया.
डीजीसीए ने एडवाइजरी जारी की, एयर इंडिया ने उड़ानें रद्द की, मार्ग बदले गए, ईंधन गणना दोबारा की गई. यह सब सही था लेकिन यह प्रतिक्रिया भी उतनी ही स्पष्ट थी कि हम घटना पर प्रतिक्रिया देने में तो सक्षम हैं पर उससे पहले जोखिम की पहचान करने में अभी भी उतने परिपक्व नहीं हुए, जितनी इस युग की आवश्यकता है. हमें यह स्वीकार करना होगा कि भारत का उड्डयन तंत्र केवल स्थानीय आंधी, धूल, धुंध या बारिश तक सीमित नहीं है, उसे अब ज्वालामुखियों, जंगलों की आग, धूल के वैश्विक तूफानों और दूरस्थ महासागरीय चक्रवातों तक अपनी निगरानी बढ़ानी होगी.
भारत जैसे देश के लिए यह चुनौती और भी गहरी है क्योंकि यहां वायु गुणवत्ता पहले ही बदलते मौसम के साथ लड़खड़ाती रहती है और हर बाहरी कारक उसकी नाजुकता को बढ़ा देते हैं. इस घटना से यह सवाल भी उठते हैं कि क्या भारत के पास वह एकीकृत चेतावनी तंत्र है, जो आईएमडी, सीएक्यूएम, डीजीसीए, स्वास्थ्य मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय को एक ही प्लेटफॉर्म पर तुरंत जोड़ सके?
भारत यदि इस नए वायुमंडलीय युग में सुरक्षित रहना चाहता है तो उसे अपनी पर्यावरणीय संरचनाओं, चेतावनी प्रणालियों, वैज्ञानिक निगरानी और नीति-निर्माण को वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप पुनर्गठित करना होगा. इथियोपिया का ज्वालामुखी विस्फोट बहुत दूर हुआ था पर उसने भारत के आसमान पर जो प्रश्न लिखे, वे बेहद निकट और बेहद गंभीर हैं.