डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: कनाडा कहीं पाकिस्तान न बन जाए!

By विजय दर्डा | Updated: September 25, 2023 07:50 IST2023-09-25T07:43:20+5:302023-09-25T07:50:06+5:30

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जब भारत पर एक खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का बेतुका आरोप लगा रहे हैं तब मुझे उनके पिता पियरे ट्रूडो की हठधर्मिता, वोट बैंक की राजनीति और उनकी खौफनाक बेवकूफियां याद आ रही हैं। पियरे ट्रूडो ने भी वही किया था जो जस्टिन कर रहे हैं।

Dr. Vijay Darda's blog: Canada may not become Pakistan! | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: कनाडा कहीं पाकिस्तान न बन जाए!

डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: कनाडा कहीं पाकिस्तान न बन जाए!

Highlightsजस्टिन ट्रूडो भारत पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का बेतुका आरोप लगा रहे हैंयदि जस्टिन ट्रूडो में थोड़ी भी परिपक्वता होती तो वे कमेटी बनाते, जांच का इंतजार करतेलेकिन आश्चर्यजनक तरीके से उन्होंने कनाडा की संसद में बेबुनियाद आरोप भारत पर मढ़ दिया

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जब भारत पर एक खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का बेतुका आरोप लगा रहे हैं तब मुझे उनके पिता पियरे ट्रूडो की हठधर्मिता, वोट बैंक की राजनीति और उनकी खौफनाक बेवकूफियां याद आ रही हैं। पियरे ट्रूडो ने भी वही किया था जो जस्टिन कर रहे हैं।

वे 1968 से 1979 तक और फिर 1980 से 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे। उस दौर में खालिस्तान आंदोलन बड़े हिंसक स्वरूप में था। बब्बर खालसा का चीफ तलविंदर सिंह परमार उर्फ हरदेव सिंह परमार भारत के खिलाफ आतंकवादी षड्यंत्रों को अंजाम दे रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परमार के प्रत्यर्पण की हरसंभव कोशिश की। पियरे ट्रूडो को बहुत समझाया लेकिन ट्रूडो ने परमार को भारत के हवाले नहीं किया।

साल 1985 में इसी परमार ने एयर इंडिया के विमान कनिष्क में बम प्लांट करने का षड्यंत्र रचा। कनिष्क ने कनाडा के मॉन्ट्रियल एयरपोर्ट से लंदन होते हुए नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी लेकिन 31 हजार फुट की ऊंचाई पर उसमें विस्फोट हो गया और 329 बेकसूर लोगों की मौत हो गई। उस समय तक दुनिया की वह सबसे लोमहर्षक आतंकवादी घटना थी।

उससे बड़ा आतंकी हमला 2001 में अमेरिका के ट्विन टावर पर हुआ जिसे हम 9/11 के नाम से जानते हैं। यदि पियरे ने परमार को भारत को सौंप दिया होता तो 329 लोगों की जान नहीं जाती। न केवल इतना बल्कि कनाडा सरकार ने हरसंभव कोशिश की कि विस्फोट के लिए जिम्मेदार हर आतंकी बच निकले।

शुरुआती दौर में ही यह स्पष्ट हो गया था कि बब्बर खालसा से जुड़ा इंद्रजीत सिंह रेयात, रिपुदमन सिंह मलिक, अजायब सिंह बागड़ी और हरदयाल सिंह बागड़ी इसमें शामिल था। भारत में सीबीआई चुपचाप इन सभी लोगों के खिलाफ आतंक के सबूत इकट्ठा करने में जुट गई ताकि कनाडा की कोर्ट में उन सबूतों को पेश किया जा सके लेकिन ऐसा वक्त आया ही नहीं। कनाडा की जांच एजेंसियां खेल कर गईं।

वहां के  कानून में प्रावधान है कि कोर्ट की अनुमति के बगैर यदि किसी की बातचीत रिकार्ड की जाती है तो वह मान्य नहीं होगा। कनाडा की जांच एजेंसियों ने दिखावे के लिए कुछ मामलों में तो कोर्ट की इजाजत ली लेकिन ज्यादातर मामलों में जानबूझ कर इजाजत ली ही नहीं. आतंकियों को इसका लाभ मिल गया।

अब जरा मौजूदा वक्त पर नजर डालिए। इसी साल 18 जून को एक खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या कर दी गई। ट्रूडो बिना किसी प्रमाण के यह आरोप लगा रहे हैं कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां जिम्मेदार हैं। ट्रूडो में यदि परिपक्वता होती तो वे कमेटी बनाते, जांच का इंतजार करते। यदि कोई प्रमाण होता तो कूटनीतिक स्तर पर मामला उठाते लेकिन उन्होंने आश्चर्यजनक तरीके से संसद में बेबुनियाद आरोप भारत पर मढ़ दिया।

दरअसल वे चाहते थे कि अपने बयान को लेकर वे चर्चा में आएं। निज्जर की हत्या के बाद जो प्रदर्शन हुए, जिस तरह से भारतीय डिप्लोमेट के फोटो चौराहों पर लगाकर उन पर हमले की बात की गई वह ट्रूडो सरकार के समर्थन के बगैर संभव ही नहीं था।

हकीकत तो यह है कि ट्रूडो खालिस्तान प्राप्त करने की मंशा से गठित न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह के हाथों में खेल रहे हैं। कनाडाई संसद के लिए 2021 में हुए चुनाव में ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो उभरी लेकिन बहुमत से 10 सीट पीछे रह गई। जगमीत सिंह की पार्टी के 25 सांसद हैं और उसने जस्टिन ट्रूडो को प्रधानमंत्री बना दिया। ट्रूडो को पता है कि सत्ता में फिर से लौट कर आना है तो जगमीत का साथ जरूरी है।

कनाडा में सिख तेजी से बढ़ती हुई कौम है। आबादी में 2.1 प्रतिशत भागीदारी है और राजनीति, व्यापार व्यवसाय से लेकर कनाडा की सेना तक में सिखों का अच्छा-खासा प्रभाव है। मुझे कई बार कनाडा जाने का और वहां के समाज को करीब से देखने-समझने का मौका मिला है। मैं वहां के भारतीय मूल के सांसदों से मिला हूं। वहां के सिख परिवारों में गया हूं।

मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया है कि वहां बसे सिख भी भारतीय सिखों की तरह शांतिप्रिय, कानून का पालन करने वाले और जिंदादिल लोग हैं। वे भले ही भारत से दूर रहते हैं लेकिन उनका दिल हिंदुस्तान में बसता है। यह कौम देशभक्त और शूरवीर कौम है। भारत के लिए मर मिटने वाली कौम है। मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए खालिस्तान का छाता लिए घूम रहे हैं। कनाडा में रहने वाले सिख कौम के आम लोगों का खालिस्तान के लिए उपद्रव से कोई लेना-देना नहीं है। दुर्भाग्य से ट्रूडो को लगता है कि सिख यानी खालिस्तान।

ट्रूडो खुले तौर पर खालिस्तान का समर्थन कर रहे हैं और उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फर्जी नाम दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने कनाडा को ऐसे करीब 25 लोगों की सूची सौंपी जो भारत के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं, भारत की अखंडता को प्रभावित करने की नापाक हरकत कर रहे हैं।

कनाडा को भारत ने इन आतंकवादियों के  खिलाफ पर्याप्त सबूत सौंपे और प्रत्यर्पण की मांग की लेकिन कनाडा ने कोई ध्यान नहीं दिया बल्कि जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में तो खालिस्तानी आतंकियों को कनाडा में दामाद की तरह रखा जा रहा है। ट्रूडो ने कनाडा में भारत के खिलाफ जनमत संग्रह को मौन सहमति देकर अपना इरादा जता दिया है। वे अपनी सत्ता के लिए देश को दांव पर लगा रहे हैं।

वे यह चाह रहे हैं कि भारत को इस कदर बदनाम किया जाए कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता की चाहत पर ग्रहण लग जाए। निज्जर की हत्या को लेकर वे अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के सामने चीख रहे हैं। यह उनका घृणित व्यवहार है। हालांकि उनकी कोई नहीं सुन रहा है। वैसे वे ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को नागरिकता दे रहे हैं लेकिन ट्रूडो के खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं।

सच तो यह है कि ट्रूडो आतंकवादियों को पनाह देकर भारत की संप्रभुता पर हमला कर रहे हैं। वे भूल रहे हैं कि भारत से तकरार लेना उनके लिए आग से खेलना साबित होगा। भारत और कनाडा के बीच बड़े व्यापारिक संबंध हैं। उनके यहां पढ़ने वाले विदेशी छात्रों में करीब 40 प्रतिशत छात्र भारत के हैं।

इस सारे प्रसंग में मुझे एक गंभीर चिंता हो रही है कि कनाडा का क्या हश्र होगा? क्या वह भी पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों को पैदा किया, उन्हें संरक्षण दिया। मुल्क में धार्मिक विद्वेष फैलाया। आज हालात क्या हैं? आतंक ने पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करके रख दिया है। ट्रूडो यह क्यों नहीं सोच पा रहे हैं कि ये खालिस्तानी आतंकवादी अंतत: कनाडा को ही तबाह करेंगे।

भारत में तो खालिस्तान बनना नामुमकिन है। किसी दिन कनाडा में ही खालिस्तान बनाने की मांग उठने लगी तो...? संभलिए मि. ट्रूडो! अपनी कुर्सी के लिए कनाडा को दांव पर मत लगाइए! पाकिस्तान बन जाएगा आपका कनाडा!

Web Title: Dr. Vijay Darda's blog: Canada may not become Pakistan!

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