क्या लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं डोनाल्ड ट्रम्प?, अमेरिकियों के ललाट पर चिंता की लकीरें
By विकास मिश्रा | Updated: September 2, 2025 05:15 IST2025-09-02T05:15:25+5:302025-09-02T05:15:25+5:30
2021 में यूरोपीय थिंक टैंक इंटरनेशनल आइडिया ने एक रिपोर्ट जारी की थी और कहा था कि अमेरिका अब पिछड़ता हुआ लोकतंत्र है.

file photo
अमेरिकी बड़े गर्व से कहते हैं कि उनका देश दुनिया का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है. इधर हम भारतीय इस बात का गर्व करते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि लोकतंत्र पर गर्व करने वाले ये दोनों देश इस वक्त छत्तीस के मूड में हैं और तानाशाही की राह पर चलने वाले देश मजे ले रहे हैं. लेकिन इस वक्त एक बड़े सवाल पर गंभीर चर्चा हो रही है कि क्या अमेरिका में लोकतंत्र कमजोर हो रहा है? इस पर गंभीर चर्चा भले ही अभी शुरू हुई हो लेकिन अमेरिकियों के ललाट पर चिंता की लकीरें कोई चार साल पहले ही उभरनी शुरू हो गई थीं.
2021 में यूरोपीय थिंक टैंक इंटरनेशनल आइडिया ने एक रिपोर्ट जारी की थी और कहा था कि अमेरिका अब पिछड़ता हुआ लोकतंत्र है. उस रिपोर्ट को अन्निका सिल्वा लिएंडर और उनकी टीम ने तैयार किया था. लोकतंत्र की स्थिति का पैमाना जानने के लिए उन्होंने पांच बिंदुओं पर रिसर्च की. रिसर्च केवल अमेरिका को लेकर नहीं थी बल्कि दुनिया के दूसरे देशों को लेकर भी की गई थी.
अमेरिका को लेकर उनका आकलन था कि वहां पहले की तुलना में लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा है. खासतौर पर डोनाल्ड ट्रम्प ने उस वक्त चुनाव हारने के बाद जिस तरह से आलोचना शुरु की और उनके समर्थकों ने राजधानी की सड़कों पर उत्पात मचाया. यह बात सही भी है कि डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों का वह हमला लोकतंत्र का बचाव नहीं बल्कि लोकतंत्र पर हमला था.
ट्रम्प जब सत्ता में थे तब अमेरिकी कांग्रेस भी ट्रम्प पर वो नियंत्रण नहीं कर पाई जो उसे करना चाहिए था. दूसरे कार्यकाल में यदि ट्रम्प के नजरिये का विश्लेषण करें तो एक बात साफ समझ में आती है कि वो जो कहें सही, बाकी सब बकवास! अभी ताजा मामला यह है कि अमेरिका की एक अपीलीय अदालत ने ट्रम्प के टैरिफ के खिलाफ फैसला दिया है.
किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में न्यायालय के फैसले का सम्मान किया जाता है लेकिन ट्रम्प तो कोर्ट पर ही बिफर पड़े हैं. उन्होंने कहा है कि इस तरह का फैसला अमेरिका के लिए घातक साबित होगा. अदालत ने कहा है कि ट्रम्प के पास टैरिफ लगाने का अधिकार ही नहीं है. यह अधिकार केवल अमेरिकी कांग्रेस के पास है. यह पहली बार नहीं है जब ट्रम्प ने अदालत को ही धमकी दी है.
वे ऐसा पहले भी करते रहे हैं. वैसे टैरिफ के खिलाफ यह फैसला अभी तत्काल लागू नहीं होगा क्योंकि ट्रम्प के पास सर्वोच्च अदालत में अपील करने का वक्त है.दरअसल ट्रम्प को लगता है कि उनके ऊपर कोई है ही नहीं. इसलिए वे बेलगाम तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे हैं और इसका खामियाजा सबसे ज्यादा अमेरिका ही भुगतने वाला है.
ज्यादातर संस्थानों को लोकतंत्र का समर्थक माना जाता रहा है. इसमें वहां के विश्वविद्यालयों से लेकर वायस ऑफ अमेरिका तक शामिल हैं. पिछले महीनों में आपने देखा ही है कि ट्रम्प ने किस तरह वहां के विश्वविद्यालयों की नकेल कसने की कोशिश की. वह तो भला हो ऑक्सफोर्ड जैसे संस्थान का जिसने झुकने से इनकार कर दिया.
राजनीति में एक कहावत भी है कि विरोधियों की यदि नकेल कसनी हो तो सबसे पहले विश्वविद्यालयों की नकेल कसो क्योंकि विद्रोह की चिंगारी वहीं से पैदा होती है. दुनिया के कई तानाशाह यह नुस्खा आजमाते रहे हैं. यही नुस्खा ट्रम्प ने आजमाया तो क्या आश्चर्य? आपने देखा ही है कि अमेरिका के जिन राज्यों में ट्रम्प की पार्टी सरकार में नहीं है, वहां उन्होंने सुरक्षा के नाम पर हस्तक्षेप की कोशिश की है.
अब ताजा उदाहरण वायस ऑफ अमेरिका को लेकर है. इस मीडिया संस्थान की स्थापना इसीलिए की गई थी कि जो लोग तानाशाही में जी रहे हैं उन तक यह बात पहुंचनी चाहिए कि उनकी सरकारें उन्हें क्या नहीं बता रही हैं. वायस ऑफ अमेरिका को अमेरिकी कूटनीति का भी बड़ा हिस्सा माना जाता था
लेकिन इसी मार्च में ट्रम्प ने एक निर्देश पर हस्ताक्षर किए कि यूएस एजेंसी फॉर ग्लोबल मीडिया में कर्मचारियों की संख्या न्यूनतम कर दी जाए! करीब 13 हजार कर्मचारियों वाले इस संस्थान पर वॉयस ऑफ अमेरिका, रेडियो फ्री यूरोप/रेडियो लिबर्टी, रेडियो फ्री एशिया और मिडिल ईस्ट ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क्स के संचालन का दायित्व है.
ट्रम्प और एलन मस्क ने इन संस्थानों पर पक्षपात का आरोप लगाया था और उसके बाद संसाधनों में कटौती कर दी गई. अब ताजा मामला यह है कि यूएस एजेंसी फॉर ग्लोबल मीडिया में 500 से ज्यादा पद समाप्त कर दिए गए हैं. माना यह जा रहा है कि ट्रम्प ने अपनी नीतियों की आलोचना से क्रुद्ध होकर यह कदम उठाया है.
माना यह जा रहा है कि भारत के साथ ट्रम्प ने जो सलूक किया है उससे अमेरिका के अर्थशास्त्री और पत्रकार बेहद नाराज हैं. वे ट्रम्प को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि करीब दो दशक की कूटनीतिक मेहनत के बाद दोनों देशों के बीच एक कामचलाऊ रिश्ता बना था. उस रिश्ते को विश्वसनीय बनाने की जरूरत थी क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार तो है ही, बड़ी आर्थिक ताकत भी बन चुका है.
मगर ट्रम्प को वो सारे लोग अपने दुश्मन नजर आते हैं जो उनकी किसी भी रूप में आलोचना करते हैं. एक तानाशाह के यही तो लक्षण होते हैं. भगवान न करे, ट्रम्प के ये लक्षण ज्यादा मजबूत हों. लेकिन यदि ऐसा हो गया तो वह पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी होगी. वैसे भी दुनिया में लोकतंत्र के प्रसार से ज्यादा तानाशाही का प्रसार हो रहा है.