China Plan Build Dam Brahmaputra river: ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण की चीनी चाल?, लागत अनुमान 137 अरब अमेरिकी डॉलर
By प्रमोद भार्गव | Updated: December 31, 2024 05:19 IST2024-12-31T05:19:30+5:302024-12-31T05:19:30+5:30
China Plan Build Dam Brahmaputra river: चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अधिकारी ने देते हुए कहा है कि ‘चीन सरकार ने यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रह्मपुत्र नदी का तिब्बती नाम) के निचले क्षेत्रों में एक जल विद्युत परियोजना के निर्माण को मंजूरी दी है.

सांकेतिक फोटो
China Plan Build Dam Brahmaputra river: चीन ने भारत के साथ मधुर संबंध बनाने के बीच एक नई विस्तारवादी चाल चल दी. उसने भारतीय सीमा के निकट तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े बांध को बनाने की स्वीकृति दे दी है. इस बांध परियोजना को दुनिया की सबसे बड़ी बांध संरचना परियोजना बताया जा रहा है. इसकी लागत का अनुमान 137 अरब अमेरिकी डॉलर है. यह जानकारी चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अधिकारी ने देते हुए कहा है कि ‘चीन सरकार ने यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रह्मपुत्र नदी का तिब्बती नाम) के निचले क्षेत्रों में एक जल विद्युत परियोजना के निर्माण को मंजूरी दी है. यह बांध हिमालय की एक विशाल घाटी में बनाया जाएगा. यहां ब्रह्मपुत्र नदी एक बड़ा मोड़ लेती हुई अरुणाचल प्रदेश और फिर बांग्लादेश में बहती है.
यह समाचार हांगकांग से प्रकाशित होने वाले साउथ चाइना माॅर्निंग पोस्ट में छपा है. भारत के प्रति चीन का आचरण हमेशा ही संदिग्ध रहा है. चीन इस नाते अपने हितों और विकास के लिए जो भी निर्णय लेता है, वे सीमाई देशों के लिए संकट का सबब बन जाते हैं. अब ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की उसकी मंशा ने भारत और बांग्लादेश की चिंता बढ़ा दी है.
बताया जा रहा है कि बांध में भरे पानी से चीन प्रतिवर्ष 300 अरब किलोवाट प्रतिघंटे बिजली पैदा करेगा. सिंचाई के लिए भी यह जल उपयोग में लाया जाएगा. इसके पहले से भी चीन ब्रह्मपुत्र के मूल उद्गम स्थल यारलुंग जांग्बो नदी पर 60 हजार मेगावाट क्षमता का जल विद्युत संयंत्र लगा रहा है. इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए वह विशालकाय बांध के निर्माण में लगा है.
आशंका है कि चीन इस बांध में भरे जाने वाले जल का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध जलयुद्ध के रूप में कर सकता है. इसकी काट के लिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग क्षेत्र में 11,200 मेगावाट क्षमता की पनबिजली परियोजना पर काम शुरू कर दिया है. 1.10 लाख करोड़ रुपए की इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (पीएफआर) भी बन गई है.
एक अन्य 9,380 मेगावाट क्षमता की पनबिजली परियोजना अरुणाचल में पहले से ही निर्माणाधीन है. इस पहल से चीन शिनजियांग के रेगिस्तानी इलाके को उपजाऊ भूमि में बदलना और इस क्षेत्र की आबादी को पेयजल उपलब्ध कराना चाहता है. दक्षिणी तिब्बत की यारलुंग जांग्बो नदी के जल प्रवाह को रेगिस्तान की ओर मोड़ा जाएगा.
इसे मोड़ने के लिए चीन के अभियंता ऐसी तकनीकों के परीक्षण में जुटे हैं, जिनका प्रयोग कर ब्रह्मपुत्र नदी के जलप्रवाह को 1000 किमी लंबी सुरंग बनाकर मोड़ दिया जाए. इस योजना के जरिये चीन की मंशा अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे तिब्बत से शिनजियांग में पानी ले जाने की है. इससे भारत सरकार के साथ दुनिया भर के पर्यावरण प्रेमी चिंतित हुए थे, क्योंकि सुरंग खुदाई से हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. लेकिन चीन ने अपने रुख में बदलाव नहीं किया. ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को लेकर चीन का भारत से ही नहीं बांग्लादेश से भी विवाद है.
इस नदी पर कई बांध बनाकर चीन ने ऐसे जल प्रबंध कर लिए हैं कि वह जब चाहे तब भारत और बांग्लादेश में पानी के प्रवाह को रोक दे और जब चाहे तब ज्यादा पानी छोड़कर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे इलाकों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर दे. चीन ने ऐसी हरकत करते हुए साल 2016 में भारत में जलापूर्ति करने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी जियाबुकू का पानी रोक भी दिया था.
चीन यदि बांधों से ज्यादा पानी छोड़ देता है तो इससे पूर्वोत्तर भारत की कृषि व्यवस्था तहस-नहस हो सकती है. एशिया की सबसे लंबी इस नदी की लंबाई 2900 किमी है. इसी की सहायक नदी जियाबुकू है, जिस पर चीन हाइड्रो प्रोजेक्ट बना रहा है. दुनिया की सबसे लंबी नदियों में 29वां स्थान रखने वाली ब्रह्मपुत्र 1625 किमी तिब्बत क्षेत्र में बहती है.
इसके बाद 918 किमी भारत और 363 किमी की लंबाई में बांग्लादेश में बहती है. समुद्री तट से 3300 मीटर की ऊंचाई पर तिब्बती क्षेत्र में बहने वाली इस नदी पर चीन 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत तीन पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण का प्रस्ताव पहले ही मंजूर कर चुका है और अब नए बांध निर्माण को मंजूरी दे दी है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पानी के उपयोग को लेकर कई संधियां हुई हैं. इनमें संयुक्त राष्ट्र की पानी के उपभोग को लेकर 1997 में हुई संधि के प्रस्ताव पर अमल किया जाता है. इस संधि के प्रारूप में प्रावधान है कि जब कोई नदी दो या इससे ज्यादा देशों में बहती है तो जिन देशों में इसका प्रवाह है, वहां उसके पानी पर उस देश का समान अधिकार होगा.
इस लिहाज से चीन को सोची-समझी रणनीति के तहत पानी रोकने या उसकी धारा बदलने का अधिकार है ही नहीं. लेकिन चीन संयुक्त राष्ट्र की इस संधि की शर्तों को मानने के लिए इसलिए बाध्यकारी नहीं है, क्योंकि इस संधि पर अब तक चीन ने हस्ताक्षर ही नहीं किए हैं. 2013 में एक अंतरमंत्रालय विशेष समूह गठित किया गया था.
इसमें भारत के साथ चीन का यह समझौता हुआ था कि चीन पारदर्शिता अपनाते हुए पानी के प्रवाह से संबंधित आंकड़ों को साझा करेगा. लेकिन चीन ने इस समझौते का पालन नहीं किया जबकि चीन अपने पड़ोसी देश लाओस, म्यांमार, कंबोडिया, थाईलैंड और वियतनाम से मेकांग नदी पर बने बांधों के आंकड़े साझा करता है. इस नदी पर चीन ने 11 बांध बना लिए हैं.
चीन जब चाहे तब ब्रह्मपुत्र का पानी रोक देता है, अथवा इकट्ठा छोड़ देता है. अरुणाचल में जो बाढ़ें आई हैं, उनकी पृष्ठभूमि में चीन द्वारा बिना किसी सूचना के पानी छोड़ा जाना रहा है. अतएव इस नए बांध के निर्माण के बाद यदि चीन के साथ गलवान और डोकलाम की तरह भू-राजनीतिक विवाद उत्पन्न होता है तो चीन इस बांध के जल को नियंत्रित या अधिक मात्रा में छोड़कर भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है.