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Canada Justin Trudeau: अपने ही जांच आयोग से हुई कनाडा की किरकिरी?

By राजेश बादल | Updated: February 5, 2025 06:17 IST

Canada Justin Trudeau: ट्रूडो का नैतिक आधार इसीलिए कमजोर है. पहले कार्यकाल में उन्होंने अवश्य ही कुछ बेहतर भूमिका निभाई थी.

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ठळक मुद्देदूसरे कार्यकाल में उन्होंने सिर्फ अपनी अलोकप्रियता के बीज बोए हैं. इंदिरा गांधी की हत्या की घटना की झांकी कनाडा की सड़कों पर निकालने की इजाजत देते हैं. पिता और पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो की तरह ही वे खालिस्तान को समर्थन दे रहे हैं.

Canada Justin Trudeau: कनाडा अपनी अपरिपक्व आंतरिक तथा विदेश नीति के कारण इन दिनों मुश्किल में है. उस पर चौतरफा वार हो रहे हैं और वह बचाव करने में असहाय दिखाई देता है. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो फिलवक्त कामचलाऊ प्रधानमंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं. लेकिन वे अभी भी पूर्ण अधिकार संपन्न प्रधानमंत्री की तरह फैसले ले रहे हैं. यह एक लोकतांत्रिक देश के लिए मान्य सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है. ट्रूडो का नैतिक आधार इसीलिए कमजोर है. पहले कार्यकाल में उन्होंने अवश्य ही कुछ बेहतर भूमिका निभाई थी.

पर, दूसरे कार्यकाल में उन्होंने सिर्फ अपनी अलोकप्रियता के बीज बोए हैं. एक तरफ वे वैश्विक मंच पर लोकतांत्रिक संस्थाओं का सदस्य होते हुए भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घोषित आतंकवादी को अपनी संसद में श्रद्धांजलि देते हैं तो दूसरी तरफ संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की घटना की झांकी कनाडा की सड़कों पर निकालने की इजाजत देते हैं.

हत्या का समर्थन करने वालों को महिमामंडित करते हैं. अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो की तरह ही वे खालिस्तान को समर्थन दे रहे हैं. यह सबूत है कि सियासत के बुनियादी उसूलों और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर उनकी समझ अभी परिपक्व नहीं है. इसका ताजा उदाहरण उनकी सरकार के बनाए जांच आयोग की एक रपट है.

करीब सप्ताह भर पहले इस रपट के अंश सामने आए हैं. इसमें आयोग साफ कहता है कि कनाडा में चल रहे खालिस्तानी आंदोलन पर भारत की चिंताएं जायज हैं. रिपोर्ट यह भी कहती है कि कनाडा में खालिस्तानी उग्रवाद से उत्पन्न खतरे के बारे में भारतीय चिंता के कुछ आधार वैध और उचित हैं.

कनाडा के भीतर से खालिस्तानी आतंकवादी भारत को निशाना बना कर खतरे से संबंधित गतिविधियों में लगे हुए हैं. वे भारत में उग्रवादी हरकतों को प्रोत्साहित करते हैं, उग्रवादी गतिविधियों का समन्वय करते हैं और भारत में हिंसा के लिए उकसाते हैं. वे खालिस्तानी गतिविधियों के लिए पैसा भेजते हैं और भारतीय नागरिकों को भड़काने का काम करते हैं.

चूंकि वे कनाडा की नागरिकता हासिल कर चुके हैं इसलिए हिंदुस्तान के हाथ बंध जाते हैं. आयोग की यह रिपोर्ट 123 पन्नों की है और स्पष्ट कहती है कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में किसी भी विदेशी ताकत का हाथ होने के प्रमाण नहीं मिले हैं. अलबत्ता रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत खालिस्तान के लिए राजनीतिक प्रयास करने वालों और खालिस्तानी हिंसा करने वालों के बीच अंतर नहीं करता. यह एक अजीब सा तर्क है. देश के टुकड़े करने की साजिश करने वालों को राजनीतिक कैसे माना जा सकता है?

ऐसे में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का बयान उनके अपने देश में ही उपहास का बिंदु बन जाता है. ट्रूडो ने तो यहां तक कहा था कि भारतीय एजेंटों ने ही निज्जर को मारा है. कनाडा के पास इसके पुख्ता सबूत हैं. इसके बाद ट्रूडो के हुक्म पर भारतीय दूतावास ने छह भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था.

जवाबी कार्रवाई में भारत ने भी वैश्विक परंपरा के मुताबिक ऐसा ही किया. पंजाब पुलिस के अनुसार अभी भी कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादी लखबीर सिंह उर्फ लांडा, सतनाम सिंह उर्फ सत्ता नौशेरा, सतविंदर सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ तथा लॉरेंस बिश्नोई, हैप्पी पासिया और बीकेआई चीफ हरविंदर सिंह रिंदा के हैंडलर सक्रिय हैं.

इन्हें भारत अपने यहां लाकर उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहता है. मगर कनाडा सरकार सहयोग नहीं कर रही है. उल्टे अपने आयोग की रिपोर्ट पर सफाई देती है कि उस आयोग को तो निज्जर संबंधी मामलों की जांच का अधिकार ही नहीं था. भारत में कनाडा के उच्चायोग ने गुरुवार को अधिकृत रूप से एक बयान में यह बात कही.

जाहिर है कि जांच आयोग की इस रिपोर्ट ने ट्रूडो की छवि को धक्का पहुंचाया है. आजादी के बाद पहली बार कनाडा के साथ भारतीय संबंध इतने खराब दौर से गुजरे हैं. हालांकि आयोग की इस रिपोर्ट का एक हिस्सा विचित्र बात करता है. वह कहता है कि कनाडा के चुनावों में अनेक देश हस्तक्षेप किया करते हैं.

आयोग इस तथ्य की जांच भी कर रहा था. उसके अनुसार चीन, रूस, अमेरिका और भारत जैसे कई मुल्क कनाडा के चुनावों में दखल देते हैं. इस मासूम तर्क का क्या उत्तर दिया जा सकता है. आज के माहौल में कोई देश नहीं भी चाहे तो भी उसके नागरिक इतनी अधिक संख्या में होते हैं कि स्वाभाविक हस्तक्षेप जैसा वातावरण बन ही जाता है.

इसके अलावा उस देश के अपने हित भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं. मसलन नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका और पाकिस्तान के चुनावों में चीन स्वाभाविक अपेक्षा करेगा कि वहां ऐसी सरकारें बनें जो भारत के प्रति असहयोग वाली हों. इसी प्रकार कनाडा, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, इजराइल और फिलीपींस जैसे कई देशों में अमेरिका अपनी पिछलग्गू सरकारें बनवाना चाहेगा.

रूस भी भारत, पाकिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान, नॉर्वे, फिनलैंड, पोलैंड, अजरबैजान, बेलारूस और यूक्रेन में अपनी पसंद की हुकूमतों को क्यों नहीं लाना चाहेगा? ताजा उदाहरण तो पाकिस्तान का है, जो बांग्लादेश में इन दिनों खुलकर भारत विरोधी सरकार को समर्थन दे रहा है. ऐसे में कनाडा के आयोग की बात में कोई दम नहीं दिखाई देता.

खुद कनाडा दशकों तक अमेरिका का पिछलग्गू रहा है और अमेरिका खुल्लमखुल्ला वहां के चुनाव में दखल देता रहा है. कनाडा की मूल आबादी कम है और उसका भौगोलिक क्षेत्रफल बहुत बड़ा है. इस कारण वह अन्य राष्ट्रों के नागरिकों को अपने यहां बसने की दावत देता रहा है. दूसरे देशों के लोग वहां रहेंगे तो अपने देशों से कुछ तो सरोकार रखेंगे. यह बात कनाडा के कामचलाऊ प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को क्यों याद नहीं रखनी चाहिए?

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