Brahmaputra River: दोस्ती में दगा करने की चीन की नहीं जा रही आदत?, ब्रह्मपुत्र नदी से क्या होगा असर
By प्रमोद भार्गव | Updated: January 6, 2025 05:34 IST2025-01-06T05:34:04+5:302025-01-06T05:34:04+5:30
Brahmaputra River: गलवान में 2020 में घटी सैन्य घटना से पहले की स्थिति बहाल रखने पर भी सहमति बन गई थी.

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Brahmaputra River: अक्तूबर 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मधुर बातचीत और विवादित स्थलों को लेकर समझौते की कड़ियां आगे बढ़ने से ऐसा लगने लगा था कि भारत और चीन के रिश्ते पटरी पर आ रहे हैं. लेकिन दोस्ती में दगा करने के आदी चीन ने फिर वही कटुता पैदा करने वाली हरकतें शुरू कर दीं. चीन ने होतान प्रांत में दो नये जिले बनाने की घोषणा की है. इन जिलों की सीमा का विस्तार भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में आता है. इसके पहले चीन ने तिब्बत क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर 137 अरब डाॅलर की लागत से दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की घोषणा भी की है. ये विवादित घोषणाएं ऐसे समय में की गई हैं, जब दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों ने लगभग पांच साल बाद फिर से सीमाओं के संदर्भ में बातचीत शुरू की है.
इसी बातचीत के चलते दोनों देश पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से पीछे हटने पर सहमत हुए थे. गलवान में 2020 में घटी सैन्य घटना से पहले की स्थिति बहाल रखने पर भी सहमति बन गई थी. सनद रहे कि चीन ने अक्साई चिन के करीब 40000 वर्ग किमी क्षेत्र पर पहले से ही कब्जा किया हुआ है.
लद्दाख में 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुर्गम गलवान नदी घाटी में चीनी सैनिकों की दगाबाजी के चलते 20 भारतीय वीर सपूतों को शहीद होना पड़ा था. चीन के भी 40 से अधिक सैनिक मारे गए थे. 20 अक्तूबर 1975 के बाद 2020 में पहली बार इतना बड़ा हिंसक सैन्य संघर्ष भारत-चीन सीमा विवाद के परिप्रेक्ष्य में घटा था.
1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंगला क्षेत्र में असम राइफल्स की पेट्रोलिंग पार्टी पर चीनी सैनिकों ने घात लगाकर हमला किया था. इसमें हमारे चार सैनिक शहीद हुए थे. अब बातचीत के बाद सेनाओं के पीछे हटने से लग रहा था कि स्थाई शांति बहाल हो जाएगी. परंतु लद्दाख के इसी क्षेत्र में दो नये जिलों की घोषणा से स्पष्ट हुआ है कि चीन की विस्तारवादी मंशा यथावत है.
हालांकि भारत और चीन के बीच 1993 में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने चीन यात्रा के दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने की दृष्टि से एक समझौता किया था. समझौते की शर्तों के मुताबिक निश्चित हुआ था कि एक तो दूसरे पक्ष के खिलाफ बल या सेना के प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी. दूसरे, दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां नियंत्रण रेखा पार नहीं करेंगी.
यदि भूलवश एक पक्ष के जवान नियंत्रण रेखा पार कर लेते हैं तो दूसरी तरफ से संकेत मिलते ही नियंत्रण रेखा के उस पार चले जाएंगे. तीसरे, दोनों पक्ष विश्वास बहाली के उपायों के जरिये नियंत्रण रेखा के इलाकों में काम करेंगे. सहमति से पहचाने गए क्षेत्रों में कोई भी पक्ष सैन्य अभ्यास के स्तर पर कार्य नहीं करेगा. इसके बावजूद गलवान में सैन्य संघर्ष हो गया था.