ब्लॉग: अपनी ही पार्टी के दबाव के आगे हार गए बाइडेन
By आकाश चौरसिया | Updated: July 23, 2024 09:45 IST2024-07-23T09:41:08+5:302024-07-23T09:45:21+5:30
ट्रम्प अमेरिका के भविष्य को लेकर जहां अपनी कल्पना को स्पष्ट रूप से रखने में सफल रहे थे, वहीं बाइडेन अपनी मौजूदा नीतियों को लेकर पीठ थपाथपा रहे थे जो मतदाताओं को रास नहीं आया और चुनाव पूर्व अनुमानों में पूर्व राष्ट्रपति को बढ़त मिलती दिखाई देने लगी थी।

फोटो क्रेडिट- (एक्स)
अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव की दौड़ से जो बाइडेन हट गए हैं।चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व राष्ट्रपति तथा रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प के घायल हो जाने के बाद उपजी सहानुभूति लहर ने संभवत: बाइडेन को मैदान छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बढ़ती उम्र तथा खराब स्वास्थ्य को लेकर पहले भी उनकी जीत की संभावना पर सवाल उठ रहे थे लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति सारे आरोपों को खारिज कर रहे थे। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे का मुकाबला बताया जा रहा था। चुनाव के पहले दोनों प्रत्याशियों के बीच होने वाली परंपरागत बहस में भी ट्रम्प का पलड़ा भारी रहा था।
ट्रम्प अमेरिका के भविष्य को लेकर जहां अपनी कल्पना को स्पष्ट रूप से रखने में सफल रहे थे, वहीं बाइडेन अपनी मौजूदा नीतियों को लेकर पीठ थपाथपा रहे थे जो मतदाताओं को रास नहीं आया और चुनाव पूर्व अनुमानों में पूर्व राष्ट्रपति को बढ़त मिलती दिखाई देने लगी थी। तभी से डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों का एक वर्ग बाइडेन को उम्मीदवारी से हटाने के लिए दबाव डालने लगा था। उस वक्त भी अधिकांश डेमोक्रेटिक सांसद बाइडेन के पक्ष में ही थे लेकिन पिछले एक माह के दौरान बाइडेन के स्वास्थ्य में गिरावट साफ झलकी।वह चलते वक्त कई बार लड़खड़ाते दिखे, वह भाषण में कई बातें भूलने लगे और कई बार उन्हें बोलने तक में तकलीफ हुई।
राष्ट्रपति पद की बहस में तो वह ट्रम्प के सामने बुरी तरह लड़खड़ा गए। रही-सही कसर पिछले हफ्ते ट्रम्प पर चुनाव प्रचार के दौरान हुए हमले ने पूरी कर दी। जानलेवा हमले के बाद ट्रम्प ने जिस साहस अैर धैर्य का परिचय दिया, उसने अमेरिकी जनता का दिल जीत लिया।अमेरिका के मतदाता दो ध्रुवों में बंटे हुए हैं। उनकी निष्ठा या तो रिपब्लिक पार्टी के साथ है या डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ लेकिन जब उम्मीदवार की काबिलियत की बात होती है तो वे दलगत निष्ठा से ऊपर उठकर उस व्यक्ति को पसंद करते हैं, जिसके हाथ में वे देश का भविष्य सुरक्षित देखते हैं। अपने पिछले कार्यकाल में यूरोपीय संघ, चीन तथा रूस के प्रति ट्रम्प का रवैया अमेरिकी जनता को पसंद नहीं आया था और उन्होंने मध्यमार्गी बाइडेन को तरजीह दी थी।
बाइडेन अपने वर्तमान कार्यकाल में अमेरिका की जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे। विशेषकर रूस-यूक्रेन युद्ध तथा इजराइल-हमास संघर्ष को रोकने में बाइडेन की ढुलमुल नीति ने अमेरिकी जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को कम कर दिया था। दूसरी ओर फिर से राष्ट्रपति पद की दावेदारी में उतरे ट्रम्प ने इन दोनों वैश्विक मसलों पर अपनी नीति स्पष्ट की। उम्र के लिहाज से ट्रम्प भी बुजुर्गों की श्रेणी में ही आते हैं लेकिन वह शारीरिक रूप से एकदम फिट हैं।वह घोर दक्षिणपंथी हैं और किसी भी मामले में नर्म फैसले लेना पसंद नहीं करते।इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले सप्ताह के गोलीकांड के बाद ट्रम्प के प्रति चल रही सहानुभूति लहर ने डेमोक्रेटिक पार्टी को प्रत्याशी बदलने पर विवश कर दिया।
बाइडेन हालांकि बार-बार कह रहे थे कि वह चुनाव मैदान से नहीं हटेंगे लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी को साफ नजर आ रहा था कि अगर बाइडेन को मैदान में उतारा गया तो शर्मनाक हार का सामना करना पड़ सकता है। पार्टी के दबाव में अंतत: बाइडेन को मैदान छोड़ना ही पड़ा।उनकी जगह पार्टी ने नए प्रत्याशी के नाम पर मंथन किया और उसके प्रमुख नेताओं ने बाइडेन की भरोसेमंद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पसंद घोषित कर दिया। कमला भारतीय मूल की हैं और भारतीय संस्कृति में उनकी गहरी आस्था है।सर्वेक्षणों से यह तथ्य भी सामने आया है कि सहानुभूति लहर पर सवार होने के बावजूद ट्रम्प को कमला हैरिस ही तगड़ी टक्कर दे सकती हैं।अमेरिकी राजनीति तथा प्रशासन में भारतवंशियों का अच्छा-खासा प्रभुत्व है।
अमेरिकी समाज पर भी भारतवंशी गहरा प्रभाव डाल रहे हैं। ऐसे में कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती हैं।बाइडेन ने भी उम्मीदवारी से हटने के बाद कमला हैरिस के नाम की वकालत की है। अगर वह डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार बनती हैं तो निश्चित रूप से ट्रम्प की राह कठिन कर सकती हैं।लेकिन बाइडेन के हटने से ट्रम्प की जीत की संभावना निश्चित रूप से मजबूत हुई है।