अवधेश कुमार का ब्लॉग: चिंताजनक है नेपाल का राजनीतिक घटनाक्रम

By अवधेश कुमार | Published: May 19, 2021 12:32 PM2021-05-19T12:32:02+5:302021-05-19T12:33:25+5:30

नेपाल का पूरा घटनाक्रम भारत के लिए भी चिंता कारण होना चाहिए. नेपाल के कई प्रधानमंत्रियों ने भारत विरोधी तेवर अपनाए, लेकिन जिस सीमा तक केपी ओली गए, वैसा कभी नहीं हुआ.

Awadhesh Kumar blog: Why India to worry on Political developments in Nepal | अवधेश कुमार का ब्लॉग: चिंताजनक है नेपाल का राजनीतिक घटनाक्रम

नेपाल का राजनीतिक घटनाक्रम चिंताजनक (फाइल फोटो)

लगता है नेपाल की शीर्ष राजनीति में लंबे समय से जारी राजनीतिक ऊहापोह का अंत कठिन है. जिस तरह संसद के अंदर शक्ति परीक्षण में पराजित होने के बावजूद राष्ट्रपाति विद्या भंडारी ने केपी शर्मा ओली को पुन: प्रधानमंत्री नियुक्त किया उसके बाद तत्काल परिवर्तन की गुंजाइश नहीं दिखती. 

हालांकि किसी परिपक्व संसदीय लोकतंत्र में एक बार संसद में मुंह की खाने के बाद बिना बहुमत के उसी नेता को बिना बहुमत जुटाए पुन: प्रधानमंत्री बनाने का उदाहरण आपको नहीं मिलेगा. नेपाल की राजनीति का हल्का ज्ञान रखने वाले भी मानेंगे कि ओली को बहुमत मिलने की न संभावना थी और न है. यही नहीं उन्हें अपनी पार्टी के भी सभी सदस्यों का समर्थन प्राप्त नहीं है. 

ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री पद पर काबिज रहे, इससे बड़ी त्रासदी किसी लोकतंत्र के लिए कुछ नहीं हो सकती. 275 सदस्यों वाली नेपाली संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में 271 सदस्य हैं. दरअसल, नेपाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के दो-दो सांसद निलंबित हैं. बहुमत के लिए किसी को 136 मत चाहिए. ओली की पार्टी सीपीएन (यूएमएल) के 121 सदस्य हैं किंतु शक्ति परीक्षण मतदान में 124 ने ओली के विरोध में और केवल 93 ने पक्ष में मतदान किया. 

मतदान में 232 सांसदों ने हिस्सा लिया था. 15 सांसद तटस्थ रहे. ओली की पार्टी के माधव नेपाल और झालानाथ खनाल का समूह भी मतदान से अलग रहा. प्रतिनिधि सभा में अभी मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के पास 63, प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन माओवादी के पास 49 और जनता समाजवादी पार्टी के पास 32 सीटें हैं. अन्य पार्टियों के पास दो सांसद हैं.

नेपाल का दुर्भाग्य है कि सदन में पराजित करके भी विपक्ष ओली को प्रधानमंत्री पद से हटा नहीं सका. लगभग डेढ़ वर्षों से ओली सदन और पार्टी दोनों में बहुमत खोने के बावजूद प्रधानमंत्री बने हुए हैं. ऊपर से देखने पर घटनाक्रम सामान्य दिखता है. यानी जब विपक्षी दल बहुमत नहीं जुटा सके तो राष्ट्रपति के लिए उनको नियुक्त करने का ही विकल्प रह गया था. 

विपक्षी दलों- नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी केंद्र) और जनता समाजवादी पार्टी के एक धड़े ने राष्ट्रपति विद्या भंडारी से अपील की थी कि वो नई सरकार के गठन की प्रक्रिया आरंभ करें. संविधान की धारा 76 (2) के तहत किसी को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अधिकार है. 

अगर विपक्षी नेता एक नाम तय कर राष्ट्रपति के पास आते तो शायद स्थिति बदलती. राष्ट्रपति को यह देखना था कि निचले सदन यानी प्रतिनिधि सभा में किसे सबसे ज्यादा सांसदों का समर्थन है. उनके सामने एक ही व्यक्ति था जिसे संसद में कम ही सांसदों का सही समर्थन है. वैसे नेपाली संविधान में प्रधानमंत्री को ऐसा सदस्य कहा गया है जो दो या ज्यादा पार्टियों का समर्थन जुटा सके. 

कांग्रेस, सीपीएन-माओवादी, जनता समाजवादी पार्टी का ओली विरोधी धड़ा, मधेसी पार्टियां तथा ओली की सीपीएन-एमएल का माधव नेपाल एवं झालानाथ गुट मिल जाएं तो कभी भी स्थिर सरकार बन सकती है. नेपाली कांग्रेस ने शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में सरकार गठन का संकेत दिया. प्रचंड का समर्थन भी उन्हें मिल गया. 

कांग्रेस सीपीएन-एम, जनता समाजवादी पार्टी और सीपीएन-यूएमएल के माधव नेपाल वाले समूह के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना पद आगे बढ़ रही थी. किंतु मतभेद के कारण ये तय समय सीमा में निर्णय नहीं कर सके. यह तो मान लिया कि नेताओं को जिस जिम्मेवारी के साथ सरकार गठन के मामले में व्यवहार करना था नहीं किया लेकिन राष्ट्रपति विद्या भंडारी की भूमिका क्या रही? 

क्या ओली विरोधी दलों और नेताओं को केवल तीन दिनों का समय देना उचित था? संविधान में ऐसा नहीं लिखा. संभव है वो अगर ज्यादा समय देतीं तो वैकल्पिक सरकार गठन का कोई रास्ता निकल जाता.

नेपाल का पूरा घटनाक्रम भारत के लिए भी चिंता कारण होना चाहिए. नेपाल के कई प्रधानमंत्रियों ने भारत विरोधी तेवर अपनाए, लेकिन जिस सीमा तक ओली गए तथा भारत को नेपाल में निष्प्रभावी करने के लिए चीन की गोद में बैठ गए वैसा कभी नहीं हुआ. भारत के प्रति उनके रवैये के कारण भी वहां की राजनीति में उनका विरोध बढ़ा. 

यह भारत के लिए राहत की बात थी कि ओली द्वारा बार-बार आक्षेपित किए जाने के बावजूद वहां की राष्ट्रीय राजनीति के एक हिस्से में भारत का समर्थन कायम रहा. यह ऐसा समय है जब भारत को वहां कूटनीतिक दायरे में रहते हुए राजनीतिक स्थिरता के लिए काम करना चाहिए. नेपाल में राजनीतिक स्थिरता तथा शांति केवल उसके ही नहीं, हमारे हित में भी है.

Web Title: Awadhesh Kumar blog: Why India to worry on Political developments in Nepal

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