America First and Viksit Bharat: ट्रम्प का ‘अमेरिका फर्स्ट’, मोदी का ‘विश्वगुरु’
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 21, 2025 01:26 PM2025-01-21T13:26:49+5:302025-01-21T13:30:22+5:30
America First and Viksit Bharat: नरेंद्र मोदी 3.0 के आने के कुछ ही महीनों बाद. अब चार साल तक अप्रत्याशित यू-टर्न और विचारधाराओं का टकराव फिर से चलन में रहेगा.

America First and Viksit Bharat
America First and Viksit Bharat: वैश्विक राजनीति के गोलार्ध वर्तमान में ऐसे गठबंधनों के समूह द्वारा संचालित हैं जो राष्ट्रवादी हितों के प्रतीक हैं. ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘विकसित भारत’ इसके दो उदाहरण हैं. घोटाले, महाभियोग और आपराधिक दोषसिद्धि की असंभव बाधाओं को पार करने के बाद 78 वर्षीय डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरी बार व्हाइट हाउस में प्रवेश किया, नरेंद्र मोदी 3.0 के आने के कुछ ही महीनों बाद. अब चार साल तक अप्रत्याशित यू-टर्न और विचारधाराओं का टकराव फिर से चलन में रहेगा. कभी-कभी कूटनीति दूसरे तरीकों से रात्रिभोज का रूप धारण कर लेती है.
भारत के राजनयिक से राजनेता बने विदेश मंत्री एस. जयशंकर ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए. ट्रम्प अब अपनी जीत की खुशी को इस घोष वाक्य से आगे ले जाएंगे - मेक अमेरिका ग्रेट अगेन एंड अगेन. दूसरे गोलार्ध में, मोदी का मिशन भारत को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विश्वगुरु बनाना है. अमेरिका एक वैश्विक सामरिक और आर्थिक शक्ति है.
लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद, भारत का अंतरराष्ट्रीय दायरा बदल गया है. वह पहले से ज्यादा मुखर है और दुनिया में अपनी वैध जगह को छोड़ने को तैयार नहीं है. वैश्विक स्तर पर उच्च स्थान पर पहुंचने के लिए मोदी का भारत कूटनीतिक रूप से दोनों पक्षों से संबंध रखने की नीति अपनाता है, ताकि वह लचीले ढंग से आक्रामक हो सके.
वर्तमान लोकलुभावन प्रतिमान को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है कि ‘कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता, केवल स्थायी महत्वाकांक्षा होती है.’ ट्रम्प की अप्रत्याशितता उनके अस्थिर वादों और धारणाओं, दोनों के लिए एक चुनौती है. इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्थिरता के लिए बड़ा जोखिम पैदा होता है.
भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान मोदी-ट्रम्प की पुरानी दोस्ती के फिर से जागृत होने की उम्मीद कर रहा है. दोनों पहले तीन बार मिल चुके हैं. उनके तालमेल ने वैश्विक नेताओं को यह विश्वास दिलाया है कि वे एक-दूसरे के सबसे अच्छे मित्र हैं और मिलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साझा द्विपक्षीय एजेंडा आगे बढ़ाएंगे.
ट्रम्प 1.0 के दौरान ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ और अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रम्प’ जैसे कार्यक्रमों ने वैश्विक भाईचारे का संकेत दिया, जिसके साथ भारत अमेरिका के सबसे मजबूत सहयोगियों में से एक बन गया. 2020 में ट्रम्प हार गए, और इसके साथ ही मोदी ने ‘व्हाइट हाउस में एक दोस्त’ खो दिया. हालांकि मोदी ने रिश्ते को फिर से बेहतर बनाने के मौके को हाथ से जाने नहीं दिया.
ट्रम्प की जीत की आधिकारिक घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर मोदी बधाई देने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय नेताओं में से एक थे. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया: ‘‘जैसा कि आप अपने पिछले कार्यकाल की सफलताओं को आगे बढ़ा रहे हैं, मैं भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए हमारे सहयोग को नए सिरे से आगे बढ़ाने की आशा करता हूं.
आइए हम सब मिलकर अपने लोगों की बेहतरी के लिए और वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए काम करें.’’ कहना आसान है, करना मुश्किल. 2016 से ही ट्रम्प अमेरिकियों के भौतिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करने का दावा करते रहे हैं. मोटरसाइकिल से लेकर डॉलर तक, वे इस बात पर अटल हैं कि अमेरिका को महान बनाने वाली कौन सी चीज है.
2016 से ही,‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ ट्रम्प की प्राथमिक परियोजना है, जो मोदी के विकसित भारत की तरह ही है. बराक ओबामा के नारे ‘यस, वी कैन’ की तरह अब नारा है, ‘ट्रम्प विल फिक्स इट’. क्या ट्रम्प भारत के साथ रिश्तों को ठीक रखेंगे? क्या वे भारतीय छात्रों के लिए वीजा की सीमा तय करेंगे? ट्रम्प ने संकेत दिया है कि कम छात्रों को ही अमेरिकी विश्वविद्यालयों में जाने के लिए वीजा मिलेगा.
क्या वे हार्ले-डेविडसन बाइक पर टैरिफ कम करने की अपनी मांग दोहराएंगे? क्या वह भारत को चीन और रूस से दूर रहने के लिए मजबूर करेंगे? ट्रम्प का पहला कार्यकाल अमेरिका फर्स्ट नीति द्वारा चिह्नित था जो संरक्षणवाद का ही दूसरा नाम था. उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ कहा. 2019 में, उनके प्रशासन ने भारत पर अनुचित व्यापार नीतियों का आरोप लगाते हुए वरीयताओं की सामान्यीकृत प्रणाली को वापस ले लिया. 2020 में ट्रम्प ने कहा था, ‘‘भारत बहुत ज्यादा टैरिफ लगाता है. हम पारस्परिक कर व्यवस्था चाहते हैं. इसलिए, अगर भारत हमसे कुछ शुल्क लेता है, तो हम भी उनसे वही शुल्क लेंगे.’’
ट्रम्प 2.0 अपनी बात पर अमल कर सकते हैं. डॉलर के विकल्प के लिए भारत की सहयोगात्मक खोज ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को खुश नहीं किया है. 70 वर्षीय इस शंकालु व्यक्ति को ब्रिक्स के आर्थिक एजेंडे के बारे में विशेष रूप से संदेह है. उन्हें संदेह है कि भारत डॉलर का विकल्प ढूंढ़ने के विद्रोह में एक निष्क्रिय भागीदार है.
ट्रम्प के विजेता घोषित होने के दो सप्ताह बाद, उन्होंने ब्रिक्स को उसकी मुद्रा योजना के बारे में चेतावनी दी. उन्होंने एक्स पर लिखा: ‘‘हमें इन देशों से प्रतिबद्धता की जरूरत है कि वे न तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे, न ही ताकतवर अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए किसी दूसरी मुद्रा का समर्थन करेंगे, वरना उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ेगा.”
ब्राजील, चीन, रूस और दक्षिण अफ्रीका ने ज्यादातर इस खतरे को नजरअंदाज कर दिया, जबकि जयशंकर ने एक अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में स्पष्ट किया, “‘मुझे ठीक से पता नहीं है कि इसके (ट्रम्प की टिप्पणी के) पीछे क्या कारण था, लेकिन हमने हमेशा कहा है कि भारत कभी भी ‘डी-डॉलराइजेशन के पक्ष में नहीं रहा है. अभी, ब्रिक्स मुद्रा का कोई प्रस्ताव नहीं है.”
ट्रम्प वास्तव में भारत से कह रहे थे कि वह अमेरिका के साथ अन्य देशों से स्वतंत्र होकर व्यवहार करे, अन्यथा परिणाम भुगतने होंगे. चूंकि ट्रम्प को अपने विश्वासों के बारे में कोई भ्रम नहीं है, इसलिए भारत को उनकी नीतिगत अस्थिरता से निपटने के लिए एक अभिनव कूटनीतिक रणनीति की आवश्यकता है.
कूटनीतिक ट्रम्प भारतीय मूल के व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों पर रख रहे हैं: तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया निदेशक बनाया गया है, विवेक रामास्वामी गवर्नमेंट एफिशियंसी डिपार्टमेंट में सह-प्रमुख बनाए गए हैं, काश पटेल को एफबीआई का प्रमुख बनाया जाएगा, जय भट्टाचार्य को स्वास्थ्य का प्रबंधन सौंपा जाएगा और श्रीराम कृष्णन एआई का महत्वपूर्ण पद संभालेंगे.
यहां एक बात ध्यान में रखना जरूरी है कि इन लोगों का नाम और खानदान भले ही भारतीय हो, लेकिन अपनी प्राथमिकताओं में वे पूरी तरह से अमेरिकी हैं. अमेरिका से संबंधों में 2020-24 का समय भारत के लिए ‘न लाभ न हानि’ का था. अब ट्रम्प का 2024-28 का कार्यकाल भारत और अमेरिका के लिए द्वंद्व का समय होगा.
चार साल पहले, मोदी ने ट्रम्प का हाथ थामकर घोषणा की थी “अगली बार, ट्रम्प सरकार!” क्या वह हाथ मुट्ठी में बदलेगा, या मोदी के पास ट्रम्प कार्ड होगा, यह तय करेगा कि दक्षिण एशिया अमेरिका फर्स्ट के साथ किस तरह जुड़ता है.