विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने 110 साल पहले कहा था कि पदार्थ और ऊर्जा अलग-अलग नहीं हैं, उन्हें एक-दूसरे में बदला जा सकता है. इटली के वैज्ञानिकों ने प्रकाश (ऊर्जा) को ठोस रूप में बदल कर आइंस्टीन की भविष्यवाणी को एक बार फिर सच साबित कर दिया है. यह खोज क्वांटम भौतिकी में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. इससे क्वांटम कम्प्यूटर और संचार प्रणाली में क्रांति आ सकती है. ऊर्जा के उत्पादन से लेकर कई क्षेत्रों में संभावनाओं के नए द्वार खुलेंगे.
आइंस्टीन के सिद्धांत से पहले माना जाता था कि पदार्थ और ऊर्जा भिन्न-भिन्न सत्ताएं हैं. किंतु आइंस्टीन के सापेक्षिता के विशिष्ट सिद्धांत के अनुसार दोनों एक ही मूल सत्ता के दो विभिन्न रूप हैं. उन्होंने पदार्थ और ऊर्जा को बदलने का गणितीय सूत्र भी दिया है. उनके सिद्धांत की पहली बार पुष्टि तब हुई जब परमाणु बम बना और उसका जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर विस्फोट किया गया. परमाणु बम में यूरेनियम से प्रचंड ऊर्जा पैदा हुई जिससे भारी विनाश हुआ था.
कई अरब वर्षों से सूर्य ऊर्जा का लगातार उत्सर्जन कर रहा है. इसका रहस्य भी ऐसी ही क्रिया में निहित है. आज विशिष्ट सापेक्षिता का ऊर्जा और पदार्थ संबंधी समीकरण अनेक प्रयोगों से प्रमाणित हो गया है. भौतिकी में इस सिद्धांत को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.
20वीं सदी तक, जब क्वांटम मैकेनिक्स और आइंस्टीन का विशिष्ट सापेक्षिकता का सिद्धांत आया तब जाकर प्रकाश की दोहरी प्रकृति यानी कण और तरंग दोनों के रूप का पता चला. लेकिन फिर भी इसे सीधे ‘ठोस’ बनाने का विचार अव्यावहारिक था क्योंकि इसके लिए अविश्वसनीय रूप से जटिल प्रक्रियाएं चाहिए थीं. पर अब इसे इटली के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया है.
ये सफलता न केवल प्रकाश के भौतिक गुणों को समझने में सहायक होगी, बल्कि यह नई क्वांटम सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के विकास में भी क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है.
इस अध्ययन से यह पता चला है कि प्रकाश न केवल तरल की भांति व्यवहार कर सकता है, बल्कि इसे एक अद्वितीय ठोस अवस्था में भी बदला जा सकता है. केवल ठोस ही नहीं बल्कि अब तक के प्रयोगों ने ये भी साबित किया है कि प्रकाश तरल पदार्थ की तरह प्रवाहित हो सकता है.
इस बार वैज्ञानिकों ने इसे एक नई अवस्था में बदला है जिसे ‘क्वांटम सुपरसॉलिड’ कहा जाता है. यह खोज दर्शाती है कि प्रकाश में कठोरता और प्रवाहशीलता दोनों गुण मौजूद हो सकते हैं, जो इसे पारंपरिक पदार्थों से अलग बनाता है.
प्रकाश के इस नए रूप को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक विशेष रूप से डिजाइन किए गए अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) पर एक लेजर बीम को केंद्रित किया. इस प्रक्रिया में प्रकाश और पदार्थ के बीच एक जटिल आंतरिक क्रिया हुई, जिससे प्रकाश के संकरण (हाइब्रिड) कणों का निर्माण हुआ, जिन्हें ‘पोलारिटॉन’ कहा जाता है. सुपरसॉलिड अवस्था एक दुर्लभ क्वांटम स्थिति है, जिसे प्राप्त करना बहुत मुश्किल माना जाता था.
पहले वैज्ञानिकों ने इस अवस्था को केवल बहुत ही कम तापमान (अत्यधिक ठंडे परमाणुओं) में ही संभव पाया. अब नए शोध में शोधकर्ताओं ने दिखाया कि यह सुपरसॉलिड अवस्था सामान्य परिस्थितियों में भी बनाई जा सकती है. उन्होंने एक विशेष रूप से डिजाइन की गई संरचना का उपयोग करके पोलारिटॉन को नियंत्रित किया. उन्हें इस नए रूप में बदला.