राम और कृष्ण की कथा में है अमृत धारा

By विजय दर्डा | Updated: September 8, 2025 05:20 IST2025-09-08T05:20:50+5:302025-09-08T05:20:50+5:30

Rama and Krishna: दरअसल इस वक्त मेरे गृह नगर यवतमाल में प्रखर विद्वान कथाकार श्री मोरारी बापू राम कथा कह रहे हैं.

Rama and Krishna Amrit Dhara in story Ram and Krishna blog Dr Vijay Darda | राम और कृष्ण की कथा में है अमृत धारा

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Highlightsआयोजन की तैयारियों में व्यस्त था तो कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि आप तो जैन धर्म को मानने वाले हैं. धर्म इतने भागों में बंट चुका है कि धर्म के मूल्यों के एक होने की बात लोगों के दिमाग से उतर चुकी है.फिर, आपके नेतृत्व में रामकथा का ये आयोजन क्यों? मैं ऐसे सवालों का कारण समझता हूं.

Rama and Krishna: पौराणिक मान्यताओं में एक दिलचस्प संदर्भ आता है. एक दिन महर्षि वाल्मीकि ने नारद जी से पूछा कि क्या पृथ्वी पर ऐसा कोई व्यक्ति है, जो सर्वगुण संपन्न हो और जिसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जा सके? नारद जी तीनों लोक में भ्रमण करते थे और दुनिया के पहले पत्रकार के रूप में जानकारियों से सदैव लैस रहते थे. उन्होंने पलक झपकते ही इक्ष्वाकु वंश के श्रीराम का नाम लिया. वही श्रीराम पिछले हजारों वर्षों से हमारे हृदय में न केवल  भगवान केरूप में विराजमान हैं बल्कि हमारी प्रेरणा के प्रमुख स्रोत भी बने हुए हैं. आप सोच रहे होंगे कि अचानक मुझे प्रभु श्रीराम के इस संदर्भ की याद क्यों आ गई और आपके साथ इसे क्यों साझा कर रहा हूं? दरअसल इस वक्त मेरे गृह नगर यवतमाल में प्रखर विद्वान कथाकार श्री मोरारी बापू राम कथा कह रहे हैं.

जब मैं आयोजन की तैयारियों में व्यस्त था तो कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि आप तो जैन धर्म को मानने वाले हैं. फिर, आपके नेतृत्व में रामकथा का ये आयोजन क्यों? मैं ऐसे सवालों का कारण समझता हूं. धर्म इतने भागों में बंट चुका है कि धर्म के मूल्यों के एक होने की बात लोगों के दिमाग से उतर चुकी है.

मैं बड़ी सहजता से जवाब देता हूं कि धर्म के मूल को समझिए तो ही बात समझ में आएगी कि जैन धर्म का कोई अनुयायी प्रभु श्रीराम की कथा से क्या अर्जित कर रहा है? सबसे पहले मेरी मां वीणा देवी दर्डा और बाद में मेरी पत्नी ज्योत्सना ने धर्म के मूल तत्वों को समझते हुए मुझसे कहा था कि आराधना के मार्ग अलग हो सकते हैं लेकिन सभी धर्मों का उद्देश्य एक है.

प्रभु श्रीराम और प्रभु श्रीकृष्ण का जीवन मानव जाति के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है. हमें कथा करानी चाहिए. तब तक साध्वी प्रीति सुधा जी का चातुर्मास हम करा चुके थे और हमने महसूस किया था कि उनके प्रवचनों को सुनने के लिए जैनियों के साथ ही बड़ी संख्या में दूसरे धर्मों के लोग भी आए थे.

जब हमने श्री रमेश भाई ओझा की श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया तब भी सभी धर्मों के लोगों ने बड़ी संख्या में शिरकत की. अब यही बात मैं श्री मोरारी बापू की श्रीराम कथा में भी महसूस कर रहा हूं. श्री मोरारी बापू हों, श्री रमेश भाई ओझा हों, जया किशोरी जी हों या इन जैसे अन्य संतों के प्रति समाज में एक अलग तरह की विश्वसनीय धारणा है कि ये संत समाज को बेहतर दिशा देने का काम कर रहे हैं.

मगर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो संतत्व का चोला पहन कर जादूगर की तरह चमत्कार दिखाते हैं और उसे दैवीय शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं. कई बार राजनीति अपने फायदे के लिए इनका उपयोग भी करती है लेकिन इससे समाज का बहुत अहित होता है. चमत्कार की इस प्रवृत्ति से शायद ही कोई धर्म बचा हो. धर्म में ‘हम बेहतर’ की प्रवृत्ति ने भी समाज और धर्म का बहुत अहित किया है.

ऐसे आयोजन के पीछे मेरा उद्देश्य धार्मिक कतई नहीं है बल्कि उद्देश्य यह है कि  समाज को संस्कारित करने के लिए हमें कुछ करना चाहिए.  क्योंकि किसी भी राष्ट्र के लिए वास्तविक शक्ति उसकी संस्कृति में निहित होती है लेकिन आज क्या हो रहा है? हमारी युवा पीढ़ी को संस्कृति और संस्कारों का वह मार्ग दिखाया ही नहीं जा रहा है जो हमारी सबसे बड़ी पूंजी है.

सैकड़ों सालोें की गुलामी के बावजूद यदि हमारा वजूद बचा रहा है तो उसका मुख्य तत्व हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार ही हैं. भारतीय संस्कृति इस धरती को एक परिवार मानती है और विश्व के हर जीव के कल्याण की बात करती है. मैंने करीब-करीब सभी धर्मों को समझने की कोशिश की है, मनन और विश्लेषण किया है.

इसलिए मैं धार्मिक और आध्यात्मिक समरसता की बात करता हूं. जब मैं श्री मोरारी बापू को सुनता हूं तो प्रभु श्रीराम के आदर्श आचरण मुझे प्रेरित करते हैं. आप रामचरितमानस पढ़िए तो प्रभु श्रीराम के अद्भुत व्यक्तित्व से रूबरू होंगे. विज्ञान की कसौटियों पर पूरी तरह खरे उतरते हैं प्रभु श्रीराम.

उनके भीतर पिता की आज्ञा का सम्मान तो है ही, जिसने वनवास दिलाया उस कैकेयी के प्रति भी अथाह आदर कितनी बड़ी बात है! सौम्य, विनम्र, मितभाषी, सत्यवादी, कुशाग्र, धैर्यवान और साथ में बेहद साहसी भी! आज समाज जाति-पांति की बेड़ियों और महिलाओं की प्रताड़ना से परेशान है लेकिन प्रभु श्रीराम ने सबरी के जूठे बेर खाकर समतामूलक समाज की रचना, महिलाओं के प्रति सम्मान और जाति-पांति के बंधनों को तोड़ने का कितना बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया. बगैर किसी साधन के ऐसी सेना तैयार कर ली जिसने रावण जैसे महारथी को परास्त कर दिया.

युवाओं को प्रबंधन और नेतृत्व क्षमता की ऐसी सीख और कहां मिलेगी? यही बात मुझे भगवान श्रीकृष्ण में भी नजर आती है. रणक्षेत्र में जब वे अर्जुन के सारथी थे तो सामने कौरवों की विशाल सेना थी. इधर वे अकेले थे लेकिन पांडवों की विजय रच दी. प्रबंधन का यह कितना बड़ा उदाहरण है! मानव के रूप में अपनी पूरी जिंदगी में वे कठिनाइयों से जूझते रहे लेकिन श्रीकृष्ण का मुख कभी मलिन नहीं हुआ.

हमारे युवा प्रभु श्रीकृष्ण से आंतरिक शक्ति  को संयोजित करना सीख सकते हैं. खुद की क्षमताओं पर विश्वास करना सीख सकते हैं. श्रीमद्भागवत और रामचरितमानस में पूरी जिंदगी के सूत्र समाए हुए हैं. सच्चे संत हमें इन्हीं सूत्रों से अवगत कराते हैं. मुझे विश्वास है कि श्री मोरारी बापू के सान्निध्य में यह जो आयोजन हो रहा है वह जाति-पांति और धार्मिक विषमताओं से परे, समाज को एक सूत्र में बांधने में सफल होगा.

Web Title: Rama and Krishna Amrit Dhara in story Ram and Krishna blog Dr Vijay Darda

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