माजिद पारेख
चंद्र कैलेंडर के तीसरे महीने के बारहवें दिन हजरत मोहम्मद पैगंबर साहब (स.) का जन्मदिन मनाया जाता है. पैगंबर मोहम्मद साहब ने नम्रता की भावना में सर्वशक्तिमान ईश्वर के संदेश को फैलाने के लिए अपना मिशन शुरू किया. प्रतिशोधपूर्ण हिंसा मानव की प्रवृत्ति है. अहिंसा, जो अपने दुश्मनों से भी मोहब्बत कर सकती है, उसके लिए दिव्य सशक्तिकरण की जरूरत होती है.
यह दिव्य अभिषेक उन लोगों में ही होता है जो हर विपत्ति में धैर्य बनाए रखते हैं जैसा हजरत मोहम्मद पैगंबर साहब (स.) पर अवतरित की गई पवित्र किताब 41/34, 35 का सार कहता है... ‘‘अच्छाई और बुराई कभी समान नहीं हो सकती. बुराई को अच्छाई से ही दूर किया जा सकेगा. फिर जिसके और आपके बीच, पुरानी दुश्मनी भी हो, घनी दोस्ती में बदल जाएगी.
यह सिद्धांत ऊंचे मनोबल, धैर्य और आत्म-संयम के अभ्यास वालों में होता है.’’ दुनिया भर में लाखों मुसलमान नमाज पढ़ने के बाद हजरत मोहम्मद पैगंबर साहब (स.) द्वारा सिखाई गई यह दुआ करते हैं. पैगंबर साहब के लिए, अमन व शांति एक रणनीति नहीं बल्कि उनका लक्ष्य था. शांति और समृद्धि स्थापित करने के अपने अभ्यास में वह किसी भी व्यक्ति को तीन बुनियादी बातों पर संसार के मालिक का संदेश देते थे.
अल्लाह की एकता, कयामत के दिन जवाबदेही की जिम्मेदारी और इस दुनिया में नैतिक जीवन जीने के उसूल. शांति के प्रति प्रतिबद्धता उनकी जीवनशैली थी. पैगंबर साहब युद्ध में भी लोगों के बीच मेल-मिलाप के लिए जाने जाते थे. यहां तक कि जब अपने वतन मक्का से पलायन करके मदीना पहुंचे तो वहां शांति की जो स्थापना की, वह इंटरनेट पर मदीना चार्टर नामी दस्तावेज में देखा जा सकता है.
यह मदीना चार्टर दुनिया का एक जीवित लिखित संविधान साबित हुआ क्योंकि इसने मदीना शहर में रहने वालों को पूर्ण धार्मिक अधिकार और आंतरिक स्वायत्तता प्रदान की. पवित्र कुरान 23/52 में संसार के मालिक का मानव जाति के लिए संदेश है कि ऐ आदम के बेटो!
वास्तव में, तुम्हारा यह समुदाय एक ही समुदाय है, और मैं ही तुम्हारा एक अकेला पालनहार हूं, सो मेरे प्रति सचेत रहते हुए जीवन गुजारना. इस आयत की बुनियाद पर पैगंबर मोहम्मद (स.) ने एक बहुलवादी समाज की बेहतरी और विकास के लिए व्यक्तिगत कानूनों और धर्मनिरपेक्षता की न सिर्फ अवधारणा स्थापित की बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना को भी फिर से स्थापित किया.