निरंकार सिंह का ब्लॉग: सामाजिक समता के अग्रदूत थे संत रैदास

By निरंकार सिंह | Updated: February 16, 2022 18:33 IST2022-02-16T18:32:24+5:302022-02-16T18:33:29+5:30

संत गुरुरविदास का जन्म संवत 1456 में काशी के पास मांडुर ग्राम में माघ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था.

Nirankar Singh blog: Sant Ravidas pioneer of social equality | निरंकार सिंह का ब्लॉग: सामाजिक समता के अग्रदूत थे संत रैदास

सामाजिक समता के अग्रदूत थे संत रैदास

संत रैदास अथवा गुरुरविदास देश के उन महान संतों में से एक हैं जिन्होंने अपनी तपस्या और आत्मबल से वह स्थान प्राप्त कर लिया था जिसके कारण सभी वर्गो के लोग उन्हें आदर और सम्मान देते हैं. 

संत के साथ-साथ वह एक महान दर्शनशास्त्री, कवि, समाज सुधारक  भी थे. वह मध्यकाल के ‘भक्ति आंदोलन’ के प्रणोता गुरु रामानंद के शिष्य थे. कबीर भी रामानंद के ही शिष्य थे और दोनों समकालीन माने जाते हैं. इसलिए इन संतों ने सामाजिक कुरीतियों, जाति-पांति, छुआछूत की अमानवीय व्यवस्था पर गहरा प्रहार किया है. 

देश में पीड़ित और पददलित जनता को आशा और उम्मीद का नया मार्ग दिखाया है. वे सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, गरीबों-शक्तिहीनों एवं असहायों के प्रेरणास्नेत गुरु रामानंद के सिर्फ भक्त ही नहीं थे बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक चिंतन करने के पश्चात मानव जाति को दिशा देने वाले और ऊपर उठाने वाले संत थे. 

इन संतों ने मानव जाति के उत्थान के लिए कुरीतियों को दूर किया. अपने समय के ताकतवर हाकिमों, समाज के ठेकेदारों को ललकारा और मानवतावादी आध्यात्मिक चिंतन का प्रचार-प्रसार किया.
संत गुरुरविदास का जन्म संवत 1456 में काशी के पास मांडुर ग्राम में माघ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था. 

उन्होंने किसी पाठशाला से कोई शिक्षा नहीं प्राप्त की थी, किंतु स्वाध्याय और तपस्या से उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था. गुरुमुखी लिपि का विकास किया जिसका विस्तार बाद में सिख गुरुओं ने किया. संत रविदास के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का आचरण ठीक नहीं है तो वह अवश्य नर्क का भोगी होगा. जिसका व्यक्तिगत आचरण पवित्र नहीं है तो वह कुछ भी करे उससे उसको कोई लाभ नहीं मिलेगा. सभी चीजों से श्रेष्ठ पवित्रता है. 

वह सभी व्यक्तियों को एक समान मानते थे. उनके यहां ऊंच-नीच का कोई भेदभाव नहीं था. भारतीय साहित्य के इतिहास में उनका योगदान अद्वितीय है. वह कवि भी थे और भक्ति साहित्य में उनके द्वारा रचित दोहों का विशेष उल्लेख मिलता है. 

उन्होंने कहा है कि सुरति और शब्द का आश्रय लेने वाला जीव नाम भक्ति द्वारा शीघ्र ही मुक्त हो सकता है, इसमें कोई संशय नहीं है. उन्होंने कर्मकांड से मुक्त होकर सिर्फ नाम को सर्वोच्च स्थान दिया है. नाम स्मरण और नाम महात्म्य को ब्रह्म प्राप्ति का एकमात्र साधन सिद्ध किया है.

Web Title: Nirankar Singh blog: Sant Ravidas pioneer of social equality

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