नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉग: अद्वितीय शहादत चार साहिबजादों की
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Updated: December 27, 2019 10:03 IST2019-12-27T10:03:11+5:302019-12-27T10:03:11+5:30
आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद सिंहजी के शूरवीर और मुगल सेना के बीच कई माह से घमासान युद्ध जारी था. ऐसे में औरंगजेब ने गुरुजी को पत्र लिखा कि यदि आप आनंदपुर का किला खाली कर दें तो आपको बिना किसी रोक-टोक के यहां से जाने दिया जाएगा.

नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉग: अद्वितीय शहादत चार साहिबजादों की
गुरु गोबिंद सिंहजी को सरवंस दानी कहा जाता है अर्थात उन्होंने अपने सारे वंश को मानवता की सेवा, रक्षा के लिए कुर्बान कर दिया था. गुरुजी के चार पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह थे. चारों साहिबजादों के लिए आनंदपुर साहिब में ही शिक्षा का प्रबंध किया गया था. अध्ययन के साथ उन्हें युद्ध कला की भी शिक्षा दी जाती थी.
आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद सिंहजी के शूरवीर और मुगल सेना के बीच कई माह से घमासान युद्ध जारी था. ऐसे में औरंगजेब ने गुरुजी को पत्र लिखा कि यदि आप आनंदपुर का किला खाली कर दें तो आपको बिना किसी रोक-टोक के यहां से जाने दिया जाएगा. गुरुजी को औरंगजेब पर विश्वास तो नहीं था लेकिन उसे आजमाने के लिए उन्होंने किला छोड़ देना स्वीकार कर लिया. किले से निकलते ही मुगल सेना टूट पड़ी.
सरसा नदी के किनारे फिर युद्ध हुआ और इस युद्ध में गुरुजी का परिवार बिछड़ गया. उनके छोटे सुपुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह अपनी दादी माता गुजरीजी के साथ चले गए. बड़े दोनों साहिबजादे युद्ध लड़ते-लड़ते गुरुजी के साथ नदी पार करके चमकौर की गढ़ी में जा पहुंचे. 21 दिसंबर 1704 को यहां भयानक युद्ध हुआ जो चमकौर का युद्ध कहलाता है. गुरुजी के साथ मात्र 40 सिख थे और मुगलों की लाखों की सेना थी.
साहिबजादा अजीत सिंह जो 17 वर्ष के थे और साहिबजादा जुझार सिंह जो 14 वर्ष के थे, पिता की आज्ञा लेकर मैदाने जंग में उतरे. अपने पराक्रम से मुगल सेना के अनगिनत शत्रुओं को मौत के घाट उतारते हुए शहादत प्राप्त की.
छोटे साहिबजादे 8 वर्षीय जोरावर सिंह तथा 6 वर्षीय फतेह सिंह दादी माता गुजरीजी के साथ एक झोपड़ी में ही रात बिताने लगे. इस खबर को सुनकर गुरुजी के लंगर का सेवक गंगू माताजी के पास पहुंचा और आश्वासन देकर अपने घर ले गया.
उसकी नीयत में खोट आ गई और उसने मुरिंडे के कोतवाल को जानकारी दे दी. माताजी व साहिबजादों को सरहंद के बस्सी थाने ले जाया गया. सरहंद में रात को माताजी व साहिबजादों को बेहद ठंडे बुर्ज में रखा गया. अगले दिन नवाब वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहा. इस पर साहिबजादों ने स्पष्ट इंकार किया. दरबार में मौजूद काजी ने फतवा जारी किया कि इन्हें जिंदा ही नींव में चिनवा दिया जाए.
जब दीवार बच्चों के सीने तक आ गई तो एक बार फिर काजी और नवाब ने उन्हें धर्म परिवर्तन को कहा, लेकिन साहिबजादों ने स्पष्ट इंकार कर दिया. 27 दिसंबर 1704 को दोनों छोटे साहिबजादे शहीद हुए और उधर ठंडे बुर्ज में माताजी ने प्राण त्यागे. इस तरह एक सप्ताह में गुरुजी के चारों साहिबजादे व माताजी देश-धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हुए.