नरेंद्र कौर छाबड़ा का ब्लॉग: रंगों के पर्व की मूल भावना को समझें
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: March 29, 2021 11:26 AM2021-03-29T11:26:25+5:302021-03-29T11:27:27+5:30
इस पवित्र और खुशी के अवसर पर कुछ विकृत मानसिकता वाले लोग गलत आचरण, व्यवहार द्वारा वातावरण को दूषित करने से भी नहीं चूकते.
फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला, प्यार भरे रंगों से सजा होली पर्व भाईचारे का संदेश देता है. इस दिन लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर गले मिलते हैं और एक-दूजे को रंग लगाते हैं.
रंगोत्सव मनाने के एक रात पहले होली जलाई जाती है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार भक्त प्रह्लाद का पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का विरोधी था और प्रह्लाद विष्णु भक्त थे. जब उसने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका और वह नहीं माना, तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी.
होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था. वह प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई लेकिन विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई.
इस कथा का आध्यात्मिक दृष्टि से अर्थ है कि कलियुग के अंतिम चरण में धर्म की ग्लानि हो जाती है और हिरण्यकश्यप जैसे लोगों का बहुमत हो जाता है. ये लोग परमात्मा से विमुख होकर अपनी मनमानी करते हैं.
परमात्मा के मार्ग पर चलने वालों पर अत्याचार होते हैं और वे अल्पमत में होते हैं. प्रह्लाद ऐसे ही लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. प्रह्लाद का अर्थ है वह पहला व्यक्ति जिस को माध्यम बनाकर परमात्मा सब को आनंदित करते हैं.
होली शब्द में भी गहन अर्थ समाया हुआ है. हो+ली अर्थात जो बात बीत गई. हो+ली अर्थात मैं आत्मा परमात्मा की हो गई तथा होली अर्थात पवित्न. पूरा अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है जब हम बीती बातों को भुलाकर परमात्मा के रंग में रंग जाते हैं, उसके हो जाते हैं तो तन-मन से पवित्न हो जाते हैं.
इसी खुशी में एक-दूसरे पर रंग डालकर प्रसन्नता जाहिर करते हैं. इस पर्व पर रंग खेलने से तन-मन में उत्साह-उमंग खुशी पैदा होती है जो स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है.
इस पवित्र और खुशी के अवसर पर कुछ विकृत मानसिकता वाले लोग गलत आचरण, व्यवहार द्वारा वातावरण को दूषित करने से भी नहीं चूकते. मादक द्रव्यों का सेवन करना, हानिकारक रसायन मिले रंगों का प्रयोग करना, पुरानी दुश्मनी के चलते लड़ाई-झगड़े, हंगामा खड़ा करना आदि हरकतों से वे माहौल में प्रदूषण फैलाते हैं.
यह पर्व तो मनोविकारों को समाप्त करने का है. अत: इसके महत्व को बरकरार रखना हमारा कर्तव्य है. अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी खुशियां लाने का प्रयत्न करना चाहिए. यही होली की सार्थकता है.