श्रीकृष्ण ने समर्पण को ही माना था प्रेम की बुनियाद
By विशाला शर्मा | Updated: August 15, 2025 08:10 IST2025-08-15T08:09:39+5:302025-08-15T08:10:45+5:30
कृष्ण उद्धव के पास होते हैं तो माधव बन जाते हैं. भागवत के कृष्ण ब्रह्म हैं तो गीतगोविंद में नटवर होकर गोपीवल्लभ हैं,

श्रीकृष्ण ने समर्पण को ही माना था प्रेम की बुनियाद
भारतीय साहित्य कृष्ण के बगैर अधूरा है. सूर, मीरा, रसखान, बिहारी जैसे कृष्णभक्त कवियों की एक अद्भुत परंपरा हमारे यहां रही है. मीरा अपने आराध्य देव को अपने प्रेमी ही नहीं पति के रूप में स्मरण करती हैं, ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई.’ वहीं रसखान का भी संपूर्ण काव्य कृष्णभक्ति से ओतप्रोत है, ‘मानुष हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन.’ बाल और किशोर रूप में विभिन्न प्रकार की लौकिक एवं अलौकिक लीलाएं दिखाने वाले यशोदानंदन आज भी हमें प्रिय लगते हैं.
कृष्ण ने इस राष्ट्र के भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं चारित्रिक निर्माण के लिए अपने जीवन को समर्पित किया है. कृष्ण ने प्रत्येक व्यक्ति के प्रेम को समर्पित भाव से अपनाया. जब उन्होंने बालपन की देहरी को पार किया तो उनके जीवन के रंगमंच पर राधा का अवतरण हुआ. यहां दार्शनिकों के लिए राधा भक्ति का स्वरूप है जो प्रेम में समर्पित होकर परमात्मा को भी वश में कर लेती है.
वे समझाना चाहते हैं कि प्रेम का आधार समर्पण है जो डूबना सिखाता है. वह हमें बेखबर करता है. इसके विपरीत शक्ति को संभालने वाले को सावधान रहने की आवश्यकता है.
ऊंच-नीच और जाति-पांति की बेड़ियों को काटने का अदम्य साहस कृष्ण में था. समाजवाद की स्थापना करने वाले कृष्ण स्त्रियों को बेड़ियों से मुक्त करते हैं और संदेश देते हैं कि स्त्री का अपमान विनाश को आमंत्रण देना है. बात बहन सुभद्रा के विवाह की हो अथवा द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने की कोशिश पर उनकी पुकार की अथवा गोपियों की स्वतंत्रता की, महिलाओं के प्रति सम्मान, उन्हें साथ लेकर चलने का भाव कृष्ण के व्यक्तित्व को संपूर्ण बनाता है.
कृष्ण की बाल लीलाएं आज भी हमें प्रिय हैं.
माखन चोरी और गोपियों के साथ रहने वाले सूरदास के कृष्ण यशोदा के लाल हैं तो दूसरी ओर वे नीति कुशल नरेश एवं धर्मोपदेश देने वाले अवतारी पुरुष भी हैं. इस धरती पर सर्वाधिक पर्याय नामों के साथ कृष्ण को हम याद करते हैं- जब हम कान्हा शब्द का उच्चारण करते हैं तो मन में एक चंचल नटखट बालक की तस्वीर उभरती है. भारतवर्ष की हर माता अपने बालक में बालगोपाल की छवि देखती है. माखन खाने के बाद भी ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’ कह कर मां को मना लेते हैं तब यशोदानंदन माखन चोर कहलाते हैं.
वे रासमंडप में होते हैं तो बिहारी बन जाते हैं. राधा के साथ जुड़कर राधेश्याम अथवा राधेकृष्ण कहलाते हैं. जब गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाते हैं तो वह गिरधारी कहलाते हैं. कृष्ण उद्धव के पास होते हैं तो माधव बन जाते हैं. भागवत के कृष्ण ब्रह्म हैं तो गीतगोविंद में नटवर होकर गोपीवल्लभ हैं, महाभारत में नीति विशारद है और शिशुपाल वध के कृष्ण वीर नायक हैं. वे मनमोहन और रसिक शिरोमणि हैं, कामदेव को लज्जित करने वाले सुजान भी हैं और योगेश्वर भी. वे रणछोड़ भी कहलाते हैं तो मरुभूमि पर रसधार बहाने वाली मीरा के पति भी हैं.