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ब्लॉगः भारतीय संस्कृति, सबको साथ लेकर चलने में विश्वास, अनेकता में एकता

By शक्तिनन्दन भारती | Updated: November 17, 2021 19:04 IST

धार्मिक और विभिन्न पंथ समुदाय में दुनिया के सभी पंथ धर्म संप्रदाय के लोग भारत में एक साथ सहिष्णुता के साथ रह रहे हैं।

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ठळक मुद्देकहा गया है कि "कोस कोस पर बदले पानी,चार कोस पर बानी।" शक कुषाण और ना जाने अन्य कितनी ही विदेशी जातियां भारत में कब से रह रही हैं।अपना मूल स्वरूप होकर पूर्णतया भारतीयता के रंग में रंग चुकी हैं।

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता आत्मसातीकरण की विशेषता है। भारतीयों ने सब कुछ अपनाया जो हमारे पास आया। चाहे वह नृजातीय समूह को कोई संस्कार हो कोई पर्व हो या कोई अन्य विधा।

 

ऐसा नहीं है कि भारत के पास या हमारी संस्कृति के पास अद्भुत और अनोखी चीजें नहीं हैं, पर हम सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। भारतीय संस्कृति के आत्मसातीकरण की प्रवृत्ति के कारण ही हम विविधता में एकता की भावना को मूर्त रूप दे सके हैं। भारतीय संस्कृति की विविधता के विषय में एक लोक कहावत प्रचलित है जिसमें कहा गया है कि "कोस कोस पर बदले पानी,चार कोस पर बानी।"

नृजातियविविधताओं में भारत देश में भूमध्यसागरीय प्रजाति से लेकर के आदिम जनजाति प्रजातियां भी पाई जाती हैं। धार्मिक और विभिन्न पंथ समुदाय में दुनिया के सभी पंथ धर्म संप्रदाय के लोग भारत में एक साथ सहिष्णुता के साथ रह रहे हैं। फारसी अपने मूल देश में अनुपलब्ध है अत्यंत कम मात्रा में है लेकिन भारत में बड़ी संख्या में निवास कर रहे हैं पारसी समुदाय कब से भारत में रह रहा है यह शोध का विषय है और इसमें विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं।

इसी तरह शक कुषाण और ना जाने अन्य कितनी ही विदेशी जातियां भारत में कब से रह रही हैं और किस रूप में आज विद्यमान हैं यह भी किसी को पता नहीं है यह अपना मूल स्वरूप होकर पूर्णतया भारतीयता के रंग में रंग चुकी हैं। भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। दुनिया का सबसे पुराना गणतंत्र लिच्छवी गणतंत्र माना जाता है।

वर्तमान में भी भारतीय गणतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह भारत की सांस्कृतिक विशेषता ही है जिसमें इतनी सांस्कृतिक विभिन्नता के बाद भी भारत एक सफल लोकतांत्रिक देश साबित हुआ है। कला, वास्तु कला, चित्रकला, इत्यादि क्षेत्रों में भारत की अलग ही पहचान है।सिन्धु सभ्यता की मूर्ति कला,धातुशिल्प के अतिरिक्त गुप्त और चोल स्थापत्य कला,मुगल चित्र व स्थापत्य कला का अद्भुत भंडार भारत की अमूल्य सांस्कृतिक विरासत में सम्मिलित हैं।

नृत्य गीत संगीत सुर ताल की अद्भुत विरासत परंपरा रूप में भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है और वैश्विक पटल पर छाई हुई है। विश्व के समस्त भाषा भाषिक समुदाय के आदिम रूप से लेकर वर्तमान रूप तक का समुदाय भारत में वर्तमान में विद्यमान है जो भारत की अद्भुत  सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। ह इन्हीं सब वजहों से किसी ने सच ही कहा है सच ही कहा है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। वर्तमान भारत और भारतीय संस्कृति विश्व फलक पर धीरे-धीरे छाने को अग्रसर है।

टॅग्स :दिल्लीCultural Heritage Trust
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