Happy Chhath Puja 2024: भक्ति के रस में डूबी एक लोकवंदना 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 6, 2024 12:56 IST2024-11-06T12:54:47+5:302024-11-06T12:56:33+5:30

Happy Chhath Puja 2024 Kharna Wishes: छठ का समय आता है, मानो मेरे अंदर एक अलग ऊर्जा और उल्लास का संचार हो जाता है.

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Highlightsमेरे पूर्वजों, मेरे गांव और हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है.छठ पूजा का धार्मिक पक्ष अत्यंत पवित्र और गहन है. सूर्य का आवाहन अदिति द्वारा किया गया था और सूर्य ने मार्तंड नाम से जन्म लिया.

Happy Chhath Puja 2024 Kharna Wishes: लोक आस्था का महापर्व, छठ पर्व मेरा सबसे प्रिय पर्व है इसलिए भी क्योंकि छठ लोक का पर्व है और यह अपने भीतर पौराणिकता, धार्मिकता, लोक संस्कृति और प्रकृति की आराधना का अनोखा संगम समेटे हुए है. इस पर्व में सूर्यदेव की पूजा के माध्यम से हम अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, अपनी आस्थाओं को पोषित करते हैं. यह पर्व सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि यह ईश्वर के प्रति लोक आस्था के जनज्वार जैसा है, जो पीढ़ियों से हमें विरासत में मिला है. जब भी छठ का समय आता है, मानो मेरे अंदर एक अलग ऊर्जा और उल्लास का संचार हो जाता है.

यह पर्व हमारी लोक संस्कृति और पहचान का वह हिस्सा है, जो मुझे मेरे पूर्वजों, मेरे गांव और हमारी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है. हम बिहारियों के लिए तो छठ पर्व हमारी सांस्कृतिक पहचान है. यह हमारा बड़का पर्व है. बिहारी जहां-जहां गए, अपना छठ पर्व भी लेकर गए. छठ पूजा का धार्मिक पक्ष अत्यंत पवित्र और गहन है. ऋग्वेद से लेकर स्कंद पुराण तक, सूर्य की उपासना का यह पर्व हमारे शास्त्रों में प्राचीनतम स्वरूपों में वर्णित है. प्राचीन कथाओं में देवताओं और असुरों की रक्षा हेतु सूर्य का आवाहन अदिति द्वारा किया गया था और सूर्य ने मार्तंड नाम से जन्म लिया.

उन्हीं सूर्यदेव के उगते और डूबते स्वरूप की आराधना छठ पर्व के मुख्य अनुष्ठान में होती है. हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य को प्राणों का आधार माना और उनकी उपासना से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति का मार्ग दिखाया. इस पर्व की पवित्रता ही इसका सबसे बड़ा आकर्षण है. छठ पर्व का धार्मिक महत्व तो अद्वितीय है ही, इसमें सांस्कृतिक रंग भी कम नहीं.

हमारे समाज में छठ न केवल पूजा है बल्कि एक सामाजिक घटना बन चुका है, जहां सब एक साथ मिल पूजा करते हैं. बचपन से मैंने अपने घर में नानी, दादी, मां और अन्य रिश्तेदारों को छठ व्रत करते देखा है. उस समय जो सामूहिक उत्साह का माहौल होता था, वह अनुभव मेरे भीतर आज भी जीवित है.

छठ पर्व की एक खास विशेषता इसके साथ गाए जाने वाले भक्ति-लोकगीत हैं, जो पूजा को न केवल आध्यात्मिक बल्कि संगीतात्मक रूप में भी समृद्ध करते हैं. बचपन से मैंने पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी और पद्मभूषण शारदा सिन्हा जैसी महान कलाकारों के कंठों से छठ गीतों को सुना और सीखा. उनके गाए ‘कांचहिं बांस के बहंगिया’ और ‘केरवा जे फरेला घवद से’ जैसे गीत हर छठ के समय मन को उन्हीं पुरानी भावनाओं से भर देते हैं. इन गीतों को सुनते ही मानो छठ का माहौल चारों ओर फैल जाता है. बाद में मुझे इन गीतों को सीखने और गाने का सौभाग्य अपने गांव घर की बुजुर्ग महिलाओं से मिला.

मां, नानी, चाचियों और मौसियों ने मुझे सिखाया कि इन गीतों में हमारी आत्मा, हमारी संस्कृति की ध्वनि समाहित है. छठ के गीत भोजपुरी ही नहीं, बिहार की अन्य लोक भाषाओं-मैथिली, अंगिका, वज्जिका आदि में भी खासे गाए और सुने गए हैं. लेकिन उनका मूल सुर और स्वर रवींद्र संगीत की तरह अक्षुण्ण रहा है. मेरे मन में एक खास जगह है इन छठ गीतों की, क्योंकि ये केवल शब्द नहीं, हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति हैं. छठ गीतों के कई रूप और शैलियां हैं. मैथिली, अंगिका, वज्जिका और मगही बोलियों में गाए जाने वाले इन गीतों का अंदाज और भाव दोनों अपने-अपने ढंग के होते हैं.

भोजपुरी में जैसे ‘कोपि कोपि बोलेली छठी माई,’ तो मगही में ‘चलs चलs अरघ के बेरिया’ जैसे गीतों में लोक संस्कृति की गूंज है. आज संगीत कंपनियों और सोशल मीडिया के माध्यम से ये गीत पूरी दुनिया में बजते हैं, लेकिन उस पुराने दौर की सादगी और भक्ति भरी धुन आज भी दिल को छू जाती है. आज के युवा कलाकार भी छठ गीतों को नई धुनों पर गाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जो कर्णप्रियता और आत्मीयता पारंपरिक धुनों में है, वह अनमोल है. छठ पर्व भारतीय लोक संस्कृति में सबसे ज्यादा भक्ति भाव, नेम धर्म और पवित्रता के साथ मनाया जाता है इसीलिए इस पर्व के अवसर पर गाये जाने वाले भक्ति के गीत भी घरों, घाटों और गांवों-चौबारों में काफी प्रचलित हैं. आकाशवाणी के माध्यम से ये गीत जब घर-घर में पहुंचे, तो इनकी लोकप्रियता ने एक नया आयाम छू लिया.

बाद में ये दूरदर्शन, मंचों और फिर संगीत कंपनियों से होते हुए आज निजी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए हैं. आज बाजार में छठ गीतों का स्वरूप बदल चुका है. कई कंपनियों ने इन गीतों को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है, जहां अनुराधा पौडवाल, उदित नारायण, सोनू निगम जैसे कलाकारों की आवाजें भी इन गीतों में गूंजने लगी हैं.

परंतु जो सरलता, भावुकता, और अपनत्व पुराने गीतों में है, उसे कोई छू नहीं सकता. जिन कलाकारों के छठ गीत घाटों पर ज्यादा बजते और सुने जाते हैं वे हैं-विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा, भरत शर्मा व्यास, कल्पना पटवारी, विजया भारती आदि, परंतु छठ गीतों की लोकप्रियता के मामले में पद्मभूषण शारदा सिन्हा सर्वोपरि हैं.

मेरे लिए छठ के गीत, चाहे वह नए हों या पुराने, अपनी पवित्रता में संजीवनी की तरह हैं. कई नए गीतकार भी छठ गीतों को अपने ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं. परंतु पारंपरिक गीतों से जुड़ी आस्था और भक्ति को बनाए रखना हम सबका कर्तव्य है. जरूरी है कि इस पर्व पर गाए जाने वाले गीत पवित्रता की सीमा में ही रहें, तो उनके माध्यम से छठ और छठ गीतों की गरिमा बची रहेगी.

जब सूर्य के डूबने और उगने पर अर्घ्य देने का समय आता है, घाट पर खड़े होकर मैं महसूस करती हूं कि यह क्षण कितना विराट है. मुंबई में जुहू बीच पर छठ का बड़ा आयोजन संजय निरुपम पिछले तीन दशकों से करते आ रहे हैं. उस कार्यक्रम की शुरुआत 17 सालों तक मेरे गाये छठ गीतों से होती रही है.

जन आस्था के उस समंदर में गोता लगाते हुए श्रोता दर्शक चारों ओर गूंज रहे छठ गीतों के मधुर स्वर को सुन जिस तरह भक्तिरस से आह्लादित व तरंगित हो उठते हैं, वह देखने लायक होता है. छठ गीत न केवल छठ का पर्याय हैं बल्कि हमारी उस आत्मीयता के प्रतीक हैं जो हमें हमारी माटी से जोड़ते हैं. यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि वह बंधन है जो मुझे अपने पूर्वजों और अपने लोक से जोड़ता है.

इस पर्व में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग भी शामिल होते हैं. छठ का यह अनूठा पर्व आज देश की सीमाओं को पार कर विदेशों तक अपनी जगह बना चुका है. मुझे गर्व है कि मैं इस परंपरा का हिस्सा हूं, और हर वर्ष छठ के आते ही मेरे अंदर का यह भाव और मजबूत हो जाता है कि हमारी संस्कृति, हमारी आस्था और हमारा लोक कभी पुराना नहीं होता.

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