राकेश माथुर
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा. इस तिथि को हिंदू नववर्ष का पहला दिन माना जाता है. हिंदू कैलेंडर में विक्रम संवत प्रमुख माना जाता है. साथ में शक संवत भी प्रमुख है. अंग्रेजी सन् 2025 में विक्रम संवत 2082 है तथा शक संवत 1947 है. लेकिन क्या हिंदू नववर्ष और अंंग्रेजी नववर्ष में 100 साल का भी अंतर नहीं है? लेकिन भारत में ईसा मसीह से करीब 600 साल पहले बुद्ध और महावीर हुए. 300 साल ईसा पूर्व मगध में मौर्य साम्राज्य था जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी. सम्राट अशोक हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म का बहुत दूर तक विस्तार किया. तो क्या उस समय हिंदू नहीं थे या उनका कोई कैलेंडर नहीं था!
वेदों व अन्य धर्मग्रंथों में सैकड़ों राजा-महाराजाओं का उल्लेख है, उनकी लड़ाइयों का उल्लेख है. सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग का उल्लेख है. महाभारत के युद्ध का उल्लेख मिलता है तो राजा रामचंद्र और लंका नरेश रावण के बीच हुए युद्ध का उल्लेख है. तो क्या उस समय कोई कैलेंडर नहीं होते थे?
असल में पहले जितने भी राजा-महाराजा होते थे वे अपने नाम से संवत चलाया करते थे. एक राजा के हटने या मरने के बाद दूसरा राजा अपने नाम से संवत शुरू कर देता था. इसलिए एक संवत से दूसरे संवत के बीच निरंतरता नहीं रहती थी. श्रीराम का अपना अलग संवत था और श्रीकृष्ण का अपना अलग. इनके अलावा कलियुग संवत, सप्तर्षि संवत, वीर निर्वाण संवत, शक संवत, गुप्त संवत आदि भी प्रचलित रहे हैं.
उनमें से शक संवत को भारत ने आजादी के बाद राष्ट्रीय कैलेंडर का हिस्सा बनाया, शेष काल के साथ ही विलुप्त होते गए. राजस्थान के कुचामन सिटी निवासी पं. घीसालाल शर्मा ने अपने पास विरासत में मिले दस्तावेज के आधार पर श्रीराम संवत के प्रचलन का दावा किया था. पंडित घीसालाल शर्मा ने विक्रम संवत के पहले बुद्ध संवत और कृष्ण संवत प्रचलित रहने का भी दावा किया है.
युधिष्ठिर संवत् की शुरुआत ईसा पूर्व 3138-39 में हुई थी. इसे युधिष्ठिर ने प्रवर्तित किया था. युधिष्ठिर संवत् महाभारत के घोर संग्राम के बाद महाराज युधिष्ठिर के सिंहासन पर आरूढ़ होने के समय से आरंभ होता है. कलियुग के आरंभ से 37 वर्ष पूर्व यह संवत् आरंभ हुआ था. श्री कृष्ण संवत का अर्थ है जिस दिन श्री कृष्ण ने इस धरती का त्याग किया था.
युगाब्द संवत का अर्थ है महाभारत के युद्ध और श्री कृष्ण के संसार त्याग के बाद राजा परीक्षित और जनमेजय के शासन काल के दौरान कलियुग का आरंभ और द्वापर युग के अंत की तिथि. श्रीकृष्ण के देह त्याग कर निजधाम रवाना होने की जानकारी गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास स्थित श्रीभालका तीर्थ में दी गई है.
इसमें कहा गया है कि श्रीकृष्ण 3102 वर्ष ईसापूर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन यहां से निजधाम चले गए थे. अर्थात श्रीभालका तीर्थ के हिसाब से यदि हम 2025 में 3102 जोड़ें तो हमें श्रीकृष्ण संवत मिलना चाहिए. यह 5127 होगा. लेकिन आज कोई भी हिंदू श्रीकृष्ण संवत या श्रीराम संवत का उपयोग नहीं करता. मैं जब श्रीभालका तीर्थ गया था तो मुझे उसकी जानकारी देने वाले एक पंडितजी थे.
लेकिन वे मेरे साथ वहां अंदर तक नहीं गए. बाद में पता चला कि उस स्थान को मृत्युस्थली माना जाता है और वहां से आने के बाद स्नान-ध्यान वैसे ही करना पड़ता है जैसे श्मशान से लौटने के बाद करते हैं. श्रीकृष्ण संवत की शुरुआत श्रीकृष्ण द्वारा धरती छोड़ निजधाम जाने से हुई थी, और भगवान श्रीकृष्ण से बिछुड़ने का वर्ष आज कोई याद नहीं रखना चाहता. इसलिए हम केवल उनकी जन्मतिथि ही मनाते हैं.