गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः ढलती उम्र में बढ़ती बेचैनियों की समस्या का कैसे हो निदान!

By गिरीश्वर मिश्र | Published: July 14, 2019 02:24 PM2019-07-14T14:24:25+5:302019-07-14T14:24:25+5:30

कुछ चीजें निहायत अनिवार्य होती हैं जिन्हें बहुत चाह कर भी टाला नहीं जा सकता. आदमी की जिंदगी की सीमा भी उन्हीं में से एक है.

Girishwar Mishra's blog: How to diagnose the problem of increasing restlessness in the age of aging! | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः ढलती उम्र में बढ़ती बेचैनियों की समस्या का कैसे हो निदान!

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉगः ढलती उम्र में बढ़ती बेचैनियों की समस्या का कैसे हो निदान!

उम्र बढ़ने के साथ जीने का अहसास भी बदलता है. जवानी में आदमी जीता है पर जीने की रफ्तार कुछ इतनी तेज होती है कि आदमी कैसे जी रहा है इस पर रुक कर सोचने-विचारने की अक्सर फुर्सत ही नहीं मिलती. व्यक्ति केंद्र में रहता है घटनाओं के बीचोबीच, पर वृद्धावस्था में वह हाशिए पर पहुंच जाता है. जीवन के उत्तरार्ध में जब जीवन-सूर्य अस्ताचलगामी होने को आता  है तो जीने का अहसास घड़ी-घड़ी तीव्रतर और घना होता जाता है. तब बीता हुआ कल लंबा और आने वाला कल छोटा होने लगता है. जीने के मायने एक बार फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस होने लगती है. नौकरी पेशे वालों के लिए भागमभाग और दौड़ धूप वाली सक्रिय जिंदगी की परेशानियां खत्म होने के बाद एक नया अंतराल आता है जिससे जूझना अपने वजूद को लेकर एक मानसिक लड़ाई को जन्म देता है. 

आज भारतीय समाज में वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और समाज का ताना-बाना भी नया आकार ले रहा है. आजीविका का स्वरूप कुछ ऐसा हो रहा है कि प्राय: लोग अपने मूल स्थान और परिवेश से विस्थापित होते जा रहे हैं. इस तरह जीवन जीने के लिए जरूरी समर्थन और सहयोग के आवश्यक आधार खिसकते जा रहे हैं. शहरी जीवन की जटिलताएं सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर नई चुनौतियां पेश कर रही हैं. अभी तक यह माना जा रहा था कि बुजुर्ग अपनी अनुभव-संपन्नता से नई पीढ़ी को ज्ञान और कौशल से समृद्ध कर सकते हैं, पर आज की दिन-प्रतिदिन बदलती प्रौद्योगिकी और सब कुछ ‘ऑनलाइन’ डिलीवरी के दौर में नई पीढ़ी में ‘पुराने’ ज्ञान-कौशल का उपयोग करने को लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं दिखाई पड़ती. 

बुजुर्ग पीढ़ी के सोच-विचार और तौर-तरीकों  के प्रति आस्था के अभाव में पीढ़ियों के बीच की दूरी बढ़ रही है. यदि सेवामुक्त होने के साथ वृद्ध व्यक्ति को पेंशन आदि की सुविधा नहीं है तो उसकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. बुजुर्ग को परिवार के लोग अनावश्यक बोझ मानने लगते हैं. इस उदासीनता के चलते उनको वृद्धाश्रम में पहुंचा देने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं.

बुजुर्ग जिस भावनात्मक समर्थन के भूखे होते हैं वह न मिलने पर वे अवसाद का  शिकार होने लगते हैं. उम्र बढ़ने के साथ शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बलता भी बढ़ने लगती है. जनसंख्या में बुजुर्गो के बढ़ते हुए अनुपात को देखते हुए जरूरी हो गया है कि उनके लिए आवश्यक परामर्श, सहयोग और समाधान की व्यवस्था को लेकर सरकारी नीति और सामाजिक व्यवस्था  दोनों को  चुस्त-दुरुस्त किया जाए. 

Web Title: Girishwar Mishra's blog: How to diagnose the problem of increasing restlessness in the age of aging!

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