कहते हैं समय के साथ सभी की प्रथमिकताएं बदल जाती हैं। पहले स्कूल की पढ़ाई फिर कॉलेज के क्लासेस और ऑफिस का काम, इंसान की जिंदगी में समय के साथ हर चीजों की जरुरतें और प्रायोरिटी बदलती जाती है। खास बात ये है कि इन बिजी शेड्यूल ने लोगों को इतना बिजी कर दिया है कि अब रिश्तों की भी प्राथमिकताएं होने लगी हैं। शादी से पहले मां-बाप शादी के बाद सास-ससुर, पति और बच्चे। रिश्तों के इस डोर को भी आज के रूटीन ने जकड़ लिया है। लोगों के पास अब अपनों के लिए ही समय नहीं बचा रह गया है। इस बात का असर दोस्ती जैसे खास रिश्ते पर भी पड़ता है इसका एहसास तब हुआ जब बचपन की एक दोस्त को पास रहते हुए भी मुझसे मिलने का मौका नहीं मिला।
असम की रहने वाली गरीमा से मेरी दोस्ती की शुरूआत स्कूल से थी। वो एक दिन स्कूल ना आती तो मैं पूरे दिन रोया करती थी और जिस दिन मैं ना स्कूल जाती वो बहुत रोया करती थी। ये दोस्ती गहरी होते-होते इतनी गहरी हो गई की सारा स्कूल हम दोनों को बिछड़ी बहनें कहकर बुलाने लगा। याद है मुझे जब पहली बार मुझे स्कूल वाला प्यार हुआ था तो सबसे पहले उसे ही बताया था। सच कितने पागल हुआ करते थे हम, पहले प्यार में लिखा वो पहला लव लेटर हो या गेम्स पीरियड में अपने पहले प्यार के साथ खेलने का इंतजार, मेरी हर चीज में मेरा साथ देती थी गरिमा।
फिर समय बदला और हमने अलग-अलग कॉलेज में एडमिशन ले लिया। इसके बावजूद भी हमारी दोस्ती परवान पर ही रही। इसमें बहुत बड़ा हाथ सोशल साइट्स का भी रहा। डेली मैसेज पर बातें करना एक-दूसरे को कॉलेज में घटी हर चीजे बताना हमारी आदत में शुमार हो गया।
कॉलेज खत्म हुआ तो हमने अपनी फिल्ड की जॉब ढूंढ ली। मैं पत्रकार बन गई और वो इंजीनियर। धीरे-धीरे काम के लोड के बीच हमारे बीच की बात कहीं दबने लगी। अब पहले जैसे तो नहीं लेकिन हफ्ते में दो-तीन बार बात हो जाया करती थी। जब मैं कॉल करूं तो पहली बार में वो कभी फोन नहीं उठाती थी।
मुझे लगता था शायद काम में बिजी हो गई होगी लेकिन ऑफिस टाइमिंग के बाद भी उसकी सिर्फ मैसेज आता कि सॉरी यार काम था। अब हफ्ते के बाजाय महीने में सिर्फ एक या दो बार बात हो जाती थीं। धीरे-धीरे वो भी बंद हो गई।
हाल ही में एक कॉमन फ्रेंड से पता चला कि इन दिनों वो दिल्ली में ही पोस्टेड है। मैंने कॉल लगाकर उसे मिलने के लिए कहा तो अभी तक दर्जनों बहाने बनाकर बस टालती रही। नहीं आज काम है, नहीं कजंन्स के साथ बाहर जा रही हूं, वीक ऑफ नहीं है और भी बहुत कुछ। भला हो इस सोशल मीडिया का जो हमें सच्चाई से रूबरू कराता है। उसके सोशल प्रोफाइल पर जब मैंने गौर किया तो पता चला कि अब उसकी प्रायोरिटीज बदल चुकी हैं। शायद मुझसे ज्यादा जरूरी उसके वो दोस्त हो चुके हैं जिनके साथ वो अपना सारा समय बिताती थी।
ऐसा नहीं था कि हम दोनों को मिलने के लिए कहीं दूर जाना पड़ता बल्कि सिर्फ एक मैट्रो स्टेशन तक की दूरी ही तय करनी पड़ती। मगर अब मैंने ठान लिया है दुबारा मिलने के लिए मैं उसे फोर्स नहीं करूगीं। शायद मुझे समझ आ गया है कि अब उसकी प्राथमिकता मैं नहीं।