त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने से फिर दिखी पीएम नरेंद्र मोदी की कार्यशैली! दूसरे भाजपाई मुख्यमंत्रियों में भी चिंता, अब किसकी बारी
By हरीश गुप्ता | Published: March 18, 2021 10:36 AM2021-03-18T10:36:11+5:302021-03-18T10:36:11+5:30
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की बतौर मुख्यमंत्री कुर्सी चली गई। अगले साल राज्य में चुनाव है। ऐसे में ये फैसला बहुत अहम माना जा रहा है। आलम ये है कि दूसरे बीजेपी प्रशासित राज्यों में भी मुख्यमंत्रियों की चिंता बढ़ गई है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को जिस तत्परता से हटाया गया है, उससे कुछ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में दहशत दिखाई दे रही है. 48 घंटों के अंदर ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के उत्तराधिकारी तीरथ सिंह रावत की भाजपा हाईकमान ने ताजपोशी कर दी.
रावत को जिस तरीके से हटाया गया, वह प्रधानमंत्री की कार्यशैली का स्पष्ट संकेत देता है और इससे कई मुख्यमंत्रियों, खासकर गुजरात के विजय रूपाणी के माथे पर चिंता की लकीरें आ गई हैं.
राज्य में 2022 में चुनाव होने वाले हैं और कहा जाता है कि कांग्रेस के कमजोर होने तथा स्थानीय निकाय चुनावों में जीत के बावजूद चीजें जिस तरह से हो रही हैं, उससे मोदी खुश नहीं हैं. ऐसा महसूस किया जा रहा है कि रूपाणी कैडर और लोगों को प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं.
मोदी दूरदृष्टि संपन्न व्यक्ति हैं और जानते हैं कि एक कमजोर प्रशासक लंबे समय तक लोगों को अपने साथ जोड़े नहीं रख सकता है. यह भी महसूस किया जा रहा है कि एक कद्दावर नेता को गुजरात भेजे जाने की जरूरत है जिसमें पूरी पार्टी को साथ लेकर आगे बढ़ने की क्षमता हो.
सूत्रों और प्रधानमंत्री के भरोसेमंद नौकरशाहों का कहना है कि दिल्ली से ‘बैक सीट’ ड्राइविंग हमेशा के लिए नहीं हो सकती है. गुजरात पीएम का गृह राज्य है और वे एक ऐसा नेता चाहते हैं जो उन पर ज्यादा बोझ डाले बिना भाजपा की जीत सुनिश्चित कर सके.
रघुबर दास और खट्टर को नहीं हटाने का अफसोस!
प्रधानमंत्री के एक करीबी सहयोगी ने बताया कि उन्हें उस दिन के लिए पछतावा है जब उन्होंने झारखंड में रघुबर दास को नहीं हटाया जिसके परिणामस्वरूप राज्य में नुकसान हुआ, जबकि राज्य के विधायकों, सांसदों और अन्य लोगों से पहले ही प्रतिकूल रिपोर्ट मिल चुकी थी.
प्रधानमंत्री ने उनकी बात नहीं सुनी थी क्योंकि उनका मुख्यमंत्री पर भरोसा था और वे उनको काम करने के लिए पर्याप्त समय देना चाहते थे. उन्होंने हरियाणा से प्रतिकूल प्रतिक्रिया मिलने के बावजूद अपने साथी संघ प्रचारक मनोहरलाल खट्टर को नहीं हटाया था.
नतीजतन भाजपा हार गई और भारी कीमत चुकाकर गठबंधन सरकार बना सकी. रावत की विदाई सिर्फ एक शुरुआत हो सकती है क्योंकि मुख्यमंत्रियों के प्रदर्शन की समीक्षा की जा रही है. लेकिन यह एक अनुमान ही है.
असम, मध्यप्रदेश रडार पर
असम और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी आंच महसूस कर रहे हैं. यह पहली बार है जब मौजूदा मुख्यमंत्री को चुनाव अभियान में भाजपा के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया गया है. सर्बानंद सोनोवाल ने असम में पांच साल तक शासन किया और हाईकमान 2016 में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हेमंत बिस्व शर्मा को पुरस्कृत करने पर विचार कर रहा है.
हाईकमान को मध्यप्रदेश से भी प्रतिकूल फीडबैक मिल रहा है. 2018 में शिवराज सिंह चौहान ने तो राज्य को गंवा ही दिया था. वह तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से जुड़े विधायकों के दलबदल के कारण ही भाजपा की सरकार बनी और चौहान मुख्यमंत्री बन पाए.
भाजपा को राज्य में एक युवा चेहरे की जरूरत है. यदि भाजपा बंगाल में चुनाव जीतती है तो बदलाव जल्द हो सकता है क्योंकि मध्यप्रदेश के दो दिग्गज - नरोत्तम मिश्र और कैलाश विजयवर्गीय - वहां डेरा डाले हुए हैं. अगर भाजपा नहीं जीतती है तो चौहान का भाग्य अधर में लटका रह सकता है.
मोदी सरकार में कैबिनेट फेरबदल में देरी क्यों
पता चला है कि मंत्रिमंडल फेरबदल में इसलिए देरी हो रही है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने 2021 और 2022 में राज्यों में चुनाव होने वाले राज्यों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है. पांच राज्यों में इस साल मई में चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जाएगी जबकि अन्य सात राज्यों में 2022 में चुनाव होने वाले हैं.
इसमें भाजपा शासित छह राज्य गुजरात, गोवा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं. कांग्रेस शासित राज्य पंजाब में भी चुनाव होना है. मोदी चाहते हैं कि इन राज्यों में बड़े अंतराल से जीत हासिल हो ताकि राज्यसभा में भाजपा को आगे मजबूती मिल सके.
अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने, चीन को आगे नहीं बढ़ने देने, जम्मू-कश्मीर पर नियंत्रण और कोविड को काबू में रखने जैसी सफलताओं के साथ मोदी चाहते हैं कि भाजपा न केवल जीते बल्कि बेहतर ढंग से जीते.
एक बार कार्ययोजना तय हो जाने के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल बड़े अंतर से जीतने वाले राज्यों पर स्पष्ट ध्यान देने के साथ होगा. चुनौती निस्संदेह बड़ी है.
संघ में भी बदलाव की बयार
संघ में भी बदलाव की बयार बह रही है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक 19 और 20 मार्च को बेंगलुरु में हो रही है.
कोविड के कारण बैठक को नागपुर से बेंगलुरु स्थानांतरित कर दिया गया है और प्रतिनिधियों की संख्या 525-550 तक सीमित कर दी गई है.
बैठक में संघ के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति, संघ के महासचिव सुरेश ‘भैयाजी’ जोशी के उत्तराधिकारी का चयन हो सकता है, जो इस पद को पिछले 12 वर्षो से संभाल रहे हैं.
ऐसी अटकलें हैं कि भैयाजी जोशी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं है और वे बहुत ज्यादा यात्रएं करने में असमर्थ हैं.